Monday, November 23, 2009
किस्सा राममंदिर का
Monday, November 16, 2009
हम हिन्दुस्तानी
हम हिन्दुस्तानी हैं। इसका हमें गर्व हैं। सबसे पहले हमें यह सोचना जरुरी हैं की,क्या हम अपनी विचारधारा का विभाजन कर रहें हैं? या देश का ? किसी भी हिन्दुस्तानी को गर्व के साथ कहना चाहिए की हम भारतीय हैं। आज हमारी भाषा, हमारा रहनसहन अलग हैं। हम कभी कभी यह गलती कर बैठते हैं की , सचिन जैसे महान खिलाड़ी को भी हम सीमारेखा के बोज़ तले दबा देते, और ओ कह नही सके की हम हिन्दुस्तानी हैं। कौन हैं इस के लिए जिम्मेदार? मैं यहाँ किसी एक आदमी का नाम नही लेना नही चाहता क्यूँ की इसमे हम सब शामिल हैं। ऐसी ख़बर को हम चस्का लगाकर सुनते, पढ़ते और देखते हैं। इसके साथ हमारा मीडिया भी उतना ही जिम्मेदार हैं। क्यूँ की एक हिन्दुस्तानी को यह बताने की नौबत क्यूँ आई की हिन्दुस्तानी हूँ। क्या हमें उस पर शक कर रहे हैं? या जानबुझकर महनायक को किसी विवादों में खिंचकर क्या साबित करना चाह्ते हैं ?
इन सभी बातों का मेरे पास जवाब हैं। हमारा मीडिया पहले चिंगारी लगाकर उसपे दिन रात तेल डालते रहता हैं। क्या इन सब बातों की कोई सीमा हैं ही नही ? आज भारत देश में हजारो समस्याए हैं। जो कही ऐसे गाँव हैं, जहाँ अभी तक पिने का पाणी, या सड़क आदि , ऐसे और बहुत ही मुद्दे हैं। जिसे मीडिया लोगों के सामने ला सकता हैं। लेकिन नही, हमारे मीडिया को सनसनीखेज किस्से चाहिए, जो की एक बड़ी ख़बर बनाकर उसे पेश कर सके। उसके लिए, किसी महान खिलाड़ी या महानायक का चुनाव करके अपने रेट के साथ साथ अपने समाचार पत्र या चैनल का भी जोर शोर से इस्तमाल करते हैं। प्रजातंत्र में मीडिया स्थान बहुत ही ऊँचा हैं। क्या हमारा मीडिया महान हस्तियों का इस्तमाल टीआरपि के लिए नही कर रहा हैं? शायद आज हमारे देशवाशियों को फिरसे राष्ट्र गीत सुनाने की जरुरत है। जिसमे सभी प्रान्तों का वर्णन हैं। क्या हमारा मीडिया का समतल इतना गिर गया की, किसी भी व्यक्ति का इस्तमाल कर के उस ख़बर को बढ़ा चढा कर लोगों को बताते हैं।
मीडिया में बहुत ही प्रतिस्पर्धा हैं लेकिन, इसका मतलब यह तो हरगिज़ नही की, ख़बर का इस्तमाल करके किसको दिखाना चाहते हैं, की हम भारतीय एक नही। हम मीडिया वाले से यह गुजारिश करना चाहतें हैं की, यह सभी खबरे हमारे पड़ोसी मुल्क के लोग भी देख रहे हैं। जो इसका फायदा जरुर उठाएंगे। आतंकवादी भी आपके ख़बरों का जायजा ले रहे हें। दुनीया में हमारा देश ही एक ऐसा देश है की, जहाँ वन्दे मातरम् के खिलाप आप कुछ भी कह सकते हैं। क्यूँ की हमने कई सीमाए बनाई है। जिसे हम देश से भी बड़ा समझते हैं। जैसा की हमारा राज्य देश से बड़ा हैं। या हमारे वसूल,हमारे नियम और हमारी मान्यताए , क्या यह सब देश से बड़े हैं? या हमारा मीडिया इससे बड़ा हैं? सुनो देश यानि एक जमीं का टुकड़ा नही बल्कि देश यानि हम लोग। हम हिन्दुस्तानी।
Saturday, November 14, 2009
चाय साब! पेशल चाय!
रातोरात टेंट तैयार हो गया और लोगों के बैठने का भी इंतजाम भी हो गया. नेता को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी और पूरा मैदान लोगोसे भर गया. कुछ समझदार लोग अभी अभी आ रहे थे शायद उन्हें पता था की मंत्री का वक्त यानि बेवक्त की बरसात. उसके बाद हमारे मंत्री साहब आ गए ओ भी तक़रीबन दो घंटे देरीसे. मंत्री का स्वागत बाल गोपलोने गाना गाकर किया. सरपंच ने मंत्री साहब को नारियल देकर, गले में पुष्प माला दालकर मंत्रीजी के हाथ में कैंची थमा दी. मन्त्री जी ने रिब्बन काट कर बालभवन के उदघाटन किया . मंत्रीजी अपना भाषण शुरू किये."कल हमारे गाँव में मंत्रीजी आ रहे हैं, बालभवन के उदघाटन के लिए. मैं सभी लोगों से निवेदन करता हूँ की आप लोग उपस्थित रहकर गाँव की शोभा बढायंगे, येही मेरी आशा हैं ".
"प्यारे भाइयो और बहनों आज मेरा भाग्य हैं की मैं आपके बिच में हूँ . सबसे पहले मैं आप लोगों से माफ़ी चाहता हूँ की, मैं समय पर नहीं आ सका. क्यूँ की उसके लिए भी एक कारण हैं. एक बार, एक कर्यक्रम में गलतीसे सही वक्त पर पहुंचा, और मैं हैरान रह गया की वहां सिर्फ चार लोगों के सिवा कोई भी मौजूद नहीं था . उस घटना के बादसे मैंने यह निर्णय ले लिया हैं की, किसी भी कार्यक्रम को दिए गए समय को उपस्थित नहीं रहूंगा . आज का दिन हमारे लिए बहुत ही महत्व का हैं, जिसे बाल दिवस के रूप में मानते हैं. और इसी मौके पर हमने जो बालभवन बनया, इसके पीछे हमारा उद्देश यह हैं की, हम बाल मजदूरी जैसी समस्या को जड़ से उखाड़ देंगे, इसलिए हमने यह बालभवन बनया हैं. क्यूँ की बच्चे मुफ्त मे शिक्षा ले सके. आप सभी लोग से मेरा यह अनुरोध हैं की, सभी बच्चोंको बालभवन भेज कर उन्हें जरुर पढाना. हामारी सरकार ने कई और बालभवन बनाना चाहती हैं, जो हर गाँव शिक्षा की तरफ बढ़ सके. मुझे यकीन हैं की, आप सब ,मेरे बातों से सहमत हैं. आज हमारी सरकार सत्ता में आने के बाद, गाँव गाँव में पाणी, बिजली और सड़क का काम बहुत ही तेजी से किया हैं. आज हर घर में बच्चे स्कूल जाते हैं. यह तो हमारी सरकार के कामकाज का जरासा नमूना हैं. अब आपसे एक गुजारिश करना चाहता हूँ की, आप मुझे और मेरी पार्टी इसी तरह जीतायंगे. मैं अभी मेरा भाषण समाप्त करने की इजाज़त चाहता हूँ. क्यूँ की मुझे अभी आगले कार्येक्रम को जाना हैं. वहां लोग मेरा इन्जार कर रहें होगे. जय हिंद! जय हिंद!"
कार्यक्रम अच्छी तरह से संपन हुआ. सरपंच और उसके साथी बहुत ही खुश थे. एक साथी ने पूछा.
"सरपंचजी इतना सब इतजाम कैसे संपन हुआ, और ओ भी इतने कम समय में.
"सबसे पहले मैं टेंट वाले को बुला लिया, उसे कहा रातोरात काम होना चाहिए, लेकिन उसने कहा साहब मेरे पास टेंट का सामन तो हैं, लेकिन लेबर्स नहीं हैं. फिर रामू से कहकर उसके होटल में काम करने वाले चार बच्चोंको बुलाकर रातोरात टेंट का काम करवाया".
"आपने सही किया! आखिर बाल दिवस का इंतजाम बच्चे ही तो करंगे, और कौन करेगा".सभी ने हसीं का ठहका लगा दिया, सरपंच ने इशारे से ही रामू को चार पेशल चाय भेजने को कहा. थोडीही देर में एक दस साल का लड़का चाय ले आया, चाय का ग्लास सरपंच की और बढाकर बोला,
चाय साब! पेशल चाय!
Friday, November 13, 2009
फिल्म ही फिल्म....
'बरसात की एक रात' में 'आग ही आग'.
जहाँ 'शबनम' वही 'शोले'.
जहाँ 'दिल' वही 'दिलजले'.
जहाँ 'साया' वही 'सुराग'.
'बरसात की एक रात' में 'आग ही आग'.
जहाँ 'गीत' वही 'सरगम'
जहाँ 'मीत' वहां 'संगम'
जहाँ 'पापी' वही 'दाग'
'बरसात एक रात' में 'आग ही आग'
जहाँ 'ब्रम्हा' वहीँ 'त्रिदेव'
जहाँ 'अर्जुन' वहीँ 'देव'
जहाँ 'सिन्दूर' वही 'खून भरी मांग'
'बरसात एक रात' में 'आग ही आग'
जहाँ 'बादल' वहीँ 'दामिनी'
जहाँ 'सुर वहीँ 'रागिनी'
जहाँ 'चिंगारी' वही 'चिराग'.
'बरसात की एक रात' में 'आग ही आग'
जहाँ 'सुर' वहीँ 'ताल'
जहाँ 'चालबाज़' वही 'मालामाल'
जहाँ 'जीवन' वही 'बैराग'
'बरसात एक रात' में 'आग ही आग'
Tuesday, November 10, 2009
शपथ का नाता दिल से जोडो भाषा से नहीं ...
कुछ दिन बीत गए समय के साथ साथ लोगों की विचार करने की द्रष्टि बदल गई राज्य के लोग कहने लगे की मंदिर हमारे राज्य में हैं, फिर भी ओ पूजा गाँव की भाषा में क्यूँ करते है ? इसी वाद और विवाद से दो गुटों के बिच हथापायी हुई फिर मामला कोर्ट कचहरी तक गया. फिर मंदिर के द्वार बंद कर दिए गए और द्वार पर एक बडासा ताला लगा दिया गया. लेकिन लोगों की भीड़ कम नहीं हुइ लोग आते रहे और बाहरसे दर्शन लेकर जाते रहे यह सिलसिला तो चलता ही रहा.
इससे पहले हमें यह जान लेना जरुरी हैं की, भगवान कौन सी भाषा में प्रार्थना सुनता हैं. दुनिया में कई भाषाएँ हैं भगवान की कौन सी भाषा हैं ? भगवान के लिए भाषा की नहीं बल्कि भाव की जरुरत हैं. भगवान को श्रदधा की जरुरत हैं. फिर भी हम जोर जोर से गाते हैं, लोउड स्पीकर भी लगाते हैं यह सब किसको सुनाने के लिए ? पब्लिक को या भगवान को ?
संत कबीर एक मुल्ला को अजान करते देख कहते हैं. तेरा खुदा क्या बहीरा हैं. अगर चींटी के पैर में घुंघरू बांधे तो भी भगवान को सुनाई देता हैं. आप को भगवान ने बोलने की क्षमता दी इस लिए आप गाते हैं , बोली का उपयोग करते हैं . अब मुझे भगवान से यह पूछना चाहिये की गूंगा कौन सी भाषा में प्रार्थना करता हैं ? क्या गूंगे की प्रार्थना भगवान को सुनाई नहीं देती ? या गूंगे को प्रार्थना करने का अधिकार हैं ही नहीं ? हमें भी प्रार्थना ठीक गूंगे की तरह ही करना चाहिए.
कल की ही बात हैं एक नेता हिन्दी में शपथ ले रहां था. कुछ मराठी भाषीकोने , उसे मराठी में शपथ लेने को कहा. बात हथापायी तक उतर आई. अब मेरा कहना यह हैं हम किसी को जबरदस्ती से नहीं कह सकते की तुम मराठी में ही शपथ लो. क्यूँ की शपथ की कोई बोली नहीं होती, शपथ एक भाव हैं जिसका स्वीकार ही प्रेम हैं जिस के लिए आप वचनबध्ध हैं. शपथ को हम किसी एक भाषा या बोली में बांध नहीं सकते, अगर उस का पालन ही नहीं करना हैं तो कौनसी भाषा ,कौनसी बोली या कौनसी शैली ये कुछ भी मायने नहीं रखता. क्यूँ की शपथ में जिस भाषा का उपयोग किया जाता हैं ओ स्टेज में जाकर लोगो को बताने के लिए नहीं, बल्कि शपथधारक उसका अर्थ समझ सके और सही तरीके से पालन कर सके .शपथ भाषा में हो, लेकिन बोली में नहीं, यहाँ कौन सी भाषा में शपथ लेता हैं इस से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण यह हैं की ओ शपथ को समझा या नहीं, और उसका कैसा पालन हो ....शपथ तो वचन हैं, अपने कर्त्तव्य की भावना को जागृत करने का. शपथ का नाता दिल से जोडो भाषा से नहीं ...
Saturday, November 7, 2009
परलोक में भी भारत का डंका......
समझो अगर ऐसा होता हैं तो क्या होगा ? स्वर्ग और नरक में क्या होगा ?
यमधर्म ने भगवान इन्द्रदेव को एक सन्देश भेजकर तत्काल 'मीटिंग' कराने की सलाह दी. इन्द्र ने मीटिंग को सभी मान्यगन को निमंत्रित कीया.
मीटिंग का एजेंडा कुछ इस तरह था यमधर्म कहने लगे.
"प्रथ्वी से भारी संख्या में जिव आ रहे हैं. सभी जीव भूलोक से स्वर्ग लोक तक कतार में खड़े हैं. चित्रगुप्त ने परलोक के द्वार बंद कर दिए हैं.
हमारी पहली प्राथमिकता यह हैं , की उनके लिए जगह का प्रबंध करना . चित्रगुप्त दिन रात मेहनत करने के बाद हिसाब किताब नहीं कर पा रहे हैं. हमारे पास MANPOWER की बहुत ही कमी हैं. और जो जगह बची है ओ भी प्रयाप्त नहीं हैं. हमें और जगह चाहियें स्वर्ग में तो ज्यादा जगह हैं, क्यूँ की हमें यकीन हैं ९५% लोग नरक में दाखिल होंगे. स्वर्ग की COMPOUND WALL तोड़कर नरक के लिए जगह मुहय्या करनी पड़ेगी".
इन्द्र देव ने कहा
" यमराज क्या यह संभव हैं ? हमारे पास ज्यादा देवगन हैं और हमें खुली हवा चाहिये इससे हमें ज्यादा प्रॉब्लम होगी क्यूंकि स्वर्ग और नरक के बीच में अंतर कम हो जायेगा और नरक की सारी घटनाएं स्वर्ग में सुनाई देगी इससे स्वर्ग और नरक में क्या फर्क रह जायेगा?.किसी भी हालत में स्वर्ग की जगह नरक को नहीं मिलेगी"
.यमधर्म ने कहा.
"ठीक हैं हम सभी लोगों को स्वर्ग में भेज देंगे"
इन्द्रदेव के माथे पर तनाव की लकीरे दिखने लगी, फिर थोडा सोच कर देवराज ने कहा.
"पश्चिम के तरफ जो पहाडी इलाका हैं उसे आप ले सकते हैं"
"ठीक हैं'
"उसमेसे कुछ जगह मैं आपको देता हूँ"
यमराज आसन से उठकर कहने लगे.
"अब हमारी दूसरी समस्या हैं MANPOWER नरक मे सहायक यमों की संख्या बहुत ही कम है. और हमारे चित्रगुप्त को भी बडा ग्रुप चाहिये जो सब कुछ हिसाब किताब रख सके. क्या आप कुछ देवताओं को इस काम के लिए दे सकते हैं ?
"हमारे सभी देवगणों को पहले ही बहुत काम हैं , चाहे तो मैं एक सलाह देता हूँ."
"ठीक है, लेकिन आपकी सलाह उपयुक्त होनी चाहिए"
"आप ऐसा करो जो धरती से जो जीव आते हैं, उन्हीमे से कुछ जीवों को नियुक्त करो,जिनको इन सभी का अभ्यास और अनुभव हो "
"ठीक हैं! चित्रगुप्त आप एक सूची तैयार करो, लेकिन याद रहें की पापी को कोई जगह नहीं मिलनी चाहियें.जब
तक हर एक जीव का पूरा हिसाब नहीं मिलता तब तक कोई फैसला नहीं होना चाहियें"
"लेकिन जो जीव कतार में खड़े हैं उनका क्या?"
"उनके लिए एक तम्बू लगा दो,और सुनो उस पर WAITING HAAL का फलक लगा दो"
सभी इंतजाम हो गया और कुछ दिन के बाद सभी काम सुचारू रूप से चलने लगा.लेकिन एक बडी समस्या खड़ी हो गई.अब स्वर्ग में लोग ज्यादा आने लगे यमराज का हिसाब गलत निकला.अब तो यहाँ बीस से पच्चीस प्रतिशत लोग स्वर्ग में आने लगे. इन्द्रदेव ने यमराज को बुला लिया और दोनों ने मिलकर एक अहम फैसला लिया. नारद मुनि को जाँच के लिए नियुक्त कर दिया.
और कुछ दिन बीत गएँ नारद मुनि रिपोर्ट पेश की,नारदजी ने कहा.
"इस रिपोर्ट के हिसाब से स्वर्ग में जो भी लोग हैं. उन्ही में ज्यादातर भारतीय हैं.मेरा शक और बढ़ गया मैंने एक आदमी की रिपोर्ट देखि मुझे बहुत ही ठीक ठाक लगी मैंने पुरे लोगों की रिपोर्ट देखि उसमे कोई भी खराबी नज़र नहीं आयी. फिर मैंने चित्रगुप्त की मुख्य सलाहकार की रिपोर्ट देखी तो मुझे पता चला की, उसने ही सभी लोगों की रिपोर्ट बदल दी थी. क्यूँ की ओ भारत देश में एक नेता था रिश्वत लेकर सभी लोगों को स्वर्ग भेज दिया था. लेकिन सोचने वाली बात यह थी की उस नेता को यह पद कैसे मिला ? यही था... परलोक में भी भारत का डंका...... "
Wednesday, November 4, 2009
VANDE MATARAM
लेकिन कुछ दिनों बाद यह सीमाएं बढती गई और लोगों की विचारधारा की जिसे हम "समुदाय" कहते तो बेहतर होगा क्यूँ की हम इसे "धर्म" तो कदापि नहीं कह सकते. धर्मं का मतलब ही अलग हैं. जब हम हिन्दू, इस्लाम, सिख या इसाई, इनके सामने धर्म शब्द का उपयोग करना उचित नही होगा, तो समझ लेना की हमें धर्म का सही अर्थ मालूम ही नहीं. शायद हमारी धारनाए बहुत ही गलत हैं. क्यूँ की धर्म का मतलब ही अलग हैं, जो सत्य शब्द का समंतार रूप हैं. अभी सत्य किसी एक समुदाय का प्रतिक तो नहीं हो सकता. अब हमें एक पर्यायी शब्द सोचना होगा जो हर समुदाय को जोड़ सके या समांतर अर्थ दे सके. मेरे हिसाब से धारणा एक शब्द है जो किसी भी समुदाय को जोड़ा जा सकता हैं . यहाँ धारणा शब्द का प्रयोग उचित होगा,जैसा की हिन्दू धारणा इसी प्रकार इसाई या इस्लामी धारणा, शब्द प्रयोग कर सकते हैं.
स्वधर्मे निधनम् श्रेयहा | परधर्मो भयावहा |
अब यहां धर्म का मतलब ,जब कोई गलत काम कर रहा हैं तो उसे रोकना, इंसान का धर्म होता हैं,धर्म हैं और रहेगा. इसे ही हम स्वधर्म कह सकते हैं. अगर आप स्वधर्म में जियोगे तो श्र्येय होगा. हम सत्य के साथ अपना जीवन व्यतीत करना चाहते तो धर्म के यानि सत्य के साथ मरना ही उचित होगा .अगर आप किसी अधर्म के साथ जीवन व्यतीत करते हैं तो वह भयानक या भयभित होगा.
गीता के पहले अध्याय में भी येही कहा गया हैं. जो धर्मक्षेत्र जैसे कुरुक्षेत्र में कौरव और पांडव की सेना खड़ी थी. अब सोचने बात यह हैं की,उस क्षेत्र को धर्म क्षेत्र क्यूँ कहा गया हैं? कुरुक्षेत्र तो ठीक हैं लेकिन धर्मं क्षेत्र क्यूँ ? इसका एक ही मतलब, जहाँ हम सत्य के लिए लड़ते हैं. या सत्य के लिए लड़ रहे हैं वही हमारा धर्मं क्षेत्र कहलाता हैं.
आज हम देखते हैं यहाँ अलग अलग धारणा के लोग रहते हैं. सत्य तो यह हैं की सब लोग खाते हैं, पीते हैं,हासते हैं रोते हैं. क्या हम कहते हैं फलां आदमी इस्लाम है ओ सोता नहीं, फला आदमी इसाई हैं ओ कभी रोता नहीं, या फला आदमी हिदू हैं, खाना खाए बिना ही रहता हैं. जी नहीं! हम सब इंसान हैं हमारे नियम हम बना सकते हैं. फलां आदमी हिदू है ओ बिना प्राणवायु के जीता हैं और फलां आदमी इसाई हैं ओ बिना पानी के रह सकता हैं.
आज देश को जरुरत हैं उस धर्म की जो सत्य का रास्ता दिखा सके. क्या यही हमारा धर्म नहीं हैं ?
आज देश में कितने लोग ऐसे हैं जिनको दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती. लेकिन हम हमारी धारणा में ऐसे जकडे हुए हैं की हमें उसके सिवा कुछ दिखता ही नहीं. हम रोज एक नया किस्सा बनाते और बताते हैं.
जैसा की "वन्दे मातरम्" हमें पहले यह जानना जरुरी हैं की, वन्दे मातरम का अर्थ क्या हैं.इसका सरल अर्थ तो यह हैं की, हम अपने वतन को नमन करते,या प्रणाम करते. मेरे हिसाब इससे ज्यादा कुछ भी नहीं.
मेरे और आपके मानने या ना मानने से क्या होगा? कुछ नहीं! हम दिल से जिसे मानते वही हमारा वन्दे मातरम हैं................ वही वन्दे मातरम हैं.
Tuesday, November 3, 2009
WORK IN PROGRESS...... टेढी खीर
हमारे मोहल्ले में PWD ने सभी सड़को की मरम्मत करने की ठान ली थी. उसी प्रकार काम तेजी से चलता गया और कुछ ही दिन में हमारी सड़क अच्छी और चिकनी दिखने लगी. नज़र उतारनेका मन कर रहा था लेकिन क्या करता मैं मेरे काम में इतना व्यस्त था की पूछो मत.(खुद का WORK IN PROGRESS)
आखिर में जिस बात का डर था वही हो गया. नज़र तो लग ही गई ओ भी "वाटर सप्लाई" विभाग की, और उन्होंने "WORK IN PROGRESS " का बोर्ड लगा कर सड़क खोदने का काम "तमाम" कर दिया. कुछ दिन और बीत गए, हमने फिर से सड़क मरम्मत करवाई. उसके बाद टेलीफोन डिपार्टमेन्ट ने एक और बोर्ड लग दिया," WORK IN PROGRESS" सड़क की खुदाई का काम शरू कर दिया.और सड़क की हालत जैसी की तैसी. जैसा की हमारे नेता लोग आते(चुनाव के पहले )और हमें एक जीने का नया अहसास देते ठीक उसी तरह सड़क ने हमें कुछ दिन अहसास जरुर दिया था.
एक दिन मेरा दोस्त मेरे घर आया और उसने मुझे पूछा.
"यार जब मैं पिछली बार आया था तो सड़क ठीक ठाक थी, और अब ये गड्ढे "
"शायद तू हमारे सरकार को जानता नहीं,यहाँ जनतां अंधी हैं और सरकार लंगडी"
" जनता सब कुछ देख कर भी अंधी होती हैं, और सरकार तेज चल नहीं सकती क्यूँ की वहां का हर विभाग अपने अपने तरीके से काम करते हैं"
"चुनाव प्रचार के वक़्त तो बहुत ही तेज चलते हैं,तेज बोलते हैं "
"क्यूँ की तब ओ सरकार का हिस्सा नहीं होते, जब सरकार में आते खुद पे बोर्ड लगाकर फिरते हैं 'WORK IN PROGRESS' फिर लोगों को यह भी समझ में नहीं आता की किसका काम PROGRESS में हैं"
"जैसे की टेढी खीर "
अब मैं "टेढी खीर" के बारेमें आपको बताना चाहता हूँ यह एक "लोककथा"हैं.
एक गाँव में दो दोस्त रहते थे. एक जन्मसे अंधा था और दूसरा लंगडा, दोन्हो भिख मांग कर अपना गुजारा करते थे . एक दिन लंगडे दोस्त ने गाँव में जाकर खीर ले आया. और अपने अंधे दोस्त से कहा.
"देख यार मै तेरे लिए क्या लाया हूँ"
"क्या लाया"
"सफ़ेद खीर"
'"सफ़ेद खीर यानी "
"ओ जो सफ़ेद गाय जा रही हैं बिल्कुक उसी तरह" अंधे के समझ में कुछ भी नहीं आया .
"सफ़ेद क्या होता हैं"
"दूध के जैसा"
"दूध कैसा होता है"
"ओ जो बगला(CRANE) होता हैं ना बिलकुल सफ़ेद" फिर भी उसे कुछ भी समझ में नहीं आया,फिर लंगडे दोस्त ने बहुत ही मेहनत करके एक बगला पकड के अंधे के हात में थमा दिया. जैसे ही अंधे ने उसपर हाथ फिराकर बोला "टेढी खीर"
अंधी जनता और लंगडी सरकार-----टेढी खीर, यही हमारी कहानी हैं "WORK IN PROGRESS"
Thursday, October 29, 2009
SALESMAN
एक दिन की बात हैं. मैं बिग बज़ार में से गुजर रहा था. उतने में मुझे एक SALESMAN की आवाज़ सुनाई दी , "भाईयो और बहनों सुनो सुनो यह एक ऐसा तेल हैं जो आपको हमेशा FRESH रखता हैं".
उस आदमीको देखतेही मुझे हमारे 'बिग बी' याद आये, जो इसी तरह "ठंडा ठंडा कूल कूल का ADD. करते हैं".उसके साथ साथ कई और प्रोडक्टस आपने पिटारे में ले कर फिरते हैं. जैसा की सीमेंट क्रीम जो क्रीम लगाने के बाद इन्सान मशीन में बदल जाता हैं . और काम भी मशीन की तरह ही करने लगता ऐसे बहुत सारे ऐसे ADD.हैं जो लोगों को....... बनाकर माल बेचते हैं.
थोडी दूर एक और SALESMAN "कोनेमें" खडा होकर एक JAPANESE पंखे के बारे में लोगो को बता रहा था. उसे देखते ही मुझे हमारे कप्तान साहब याद आयें जो एक पंखा बेचने के लिए टीवी पर आते हैं ,जो कोने में तो खडा नहीं रहते लेकिन कोने कोनेमें हवा देने का वादा जरूर करते, क्यूँ की उन्हें आदत हैं सभी खिलाडियों को " कोने कोने में" खड़े करने की शायद इस लियें उन्होंने यह ADD चुना हैं. और ADD. में स्कूल के बच्चों का "कप्तान" बनकर उसे भी कोने कोने में खडा करते हैं. क्यूँ की विपक्ष के खिलाडी गेंद को इतनी तेजीसे मारते हैं की, जिसके हवासे फिल्डर के तों CATCHES भी छुट जाते हैं. फिर तो हवा कोने कोने में जरूर लगेगी.और एक ADD में ओ बिग बाज़ार में काम करने लगे हैं.सॉरी..... बिग बाज़ार के लिए ADD कर रहे हैं. हामारे कप्तान की बात ही कुछ और हैं. बहुत ही अच्छा काम करते हैं. ( बिग बाज़ार में. )
और थोडी दुरी पर एक और SALESMAN खडा था जो टीवी के साथ साथ डिश भी बेचा करता था, उसे देखते ही मुझे हमारे खान साहब नज़र आये जो घर घर जाकर "डिश के साथ विश भी करते हैं".
थोडी दूर और एक SALESMAN जो पेन बेच रहाथा और ओ जोर जोर से लोगो को अपील कर रहा था "भाईओ और बहनों पाच रुपये में एक, चलती ही जाएँ".मुझे हमारे ब्लास्टर साहब याद आयें जो पेप्सी के साथ साथ पेन और कई सामान अपनी झोली में लेकर फिरते हैं.
एक बात तो तय हैं की हम सब इस जीवन में कुछ न कुछ बेचते और खरीदते हैं . कुछ चीजे पैसे से, कुछ चीजें बिना पैसो से लेकिन बेचनेवाले कम तो खरीदनेवाले ज्यादा शायद इसी वजह से उनका धंदा( ADD) चल रहा हैं.
जीना बोले तो क्या है? क्या हमारी बुनियादी जरूरतें सिर्फ रोटी, कपडा और मकान तक सिमित हैं? या इससे भी कई ज्यादा , नही हर एक की जरुरते अलग हैं. उसके लिए कोई भी सीमारेखा ही नहीं. अब आदमी की बुनियादी जरूरतों का कोई हिसाब ही नहीं रहा.
इसी वजह से तो SALSMAN कुछ भी बेचने के लिए उतारू हैं क्यूँ की हम ही हैं जो सब कुछ खरीदते हैं.हमारे बिना SALESMAN कुछ भी नहीं.
Monday, October 26, 2009
किसान..
शायद भगवान भी क्यूँ रूठा ?
फसल उगाता,अनाज के लिए
पेट भर रोटी, मिले सब के लिए
एक साल, बारिश की तबाही
नेता आया "हेलीक्याप्टरसे"
सुका पड़ा तब भी "हेलीक्याप्टरसे"
बड़े बड़े वादे , फिर दिलासा भी झुटा,
शायद भगवान भी क्यूँ रूठा
बच्चे, बीवी भूखे सोते,
खाने के लिए कुछ भी नहीं
जहर के अलावा
सोना चाहा नींद नही,
रोते बच्चे को गुस्से में आकर पिटा
शायद भगवान भी क्यूँ रूठा
सोचा, जहर या फंदा लगाऊं,
बच्चे का मुख देख कर रुक गया
सेठ से क़र्ज़ लाया इस बारिश से तो घर ही टूटा
रात भर खुद को तड़पाया,
फिर जहर को गले लगाया
अब सब छुटा,जीवन से नाता टूटा
Saturday, October 24, 2009
हलकी सी हवा
यह हलकी सी हवा मेरे सांस में
जब मैं सुबह उठता हूँ,.
खिडकीसे तुम्हें देखता हूँ
खुद की पहचान मेरे पास में
यह हलकी सी हवा मेरे सांस में
जब तक हवा पानी हैं
तब तक तू मेरी रानी हैं
जीना भी क्या एक ही आस में
यह हलकी सी हवा मेरे सांस में
जिंदगी एक पहेली हैं
जो जीता उसकी सहेली हैं
रानी ही गुम हो गई मेरे ताश में
यह हलकी सी हवा मेरे सांसमें
जिंदगी भर भटकता रहा
जीवन के जाल में अटकता रहा
बीती पूरी जिंदगी तेरी तलाश में
यह हलकी सी हवा मेरे सांस में
Friday, October 23, 2009
चिड़िया और दाल- लोककथा
एक जंगल में चिड़िया रहती थी। सूखे के कारण वह दिन भर दाने की खोज में रहती थी। बहुत ही मुश्किल के बाद उसें एक दाल मिली जैसे ही दाल का दाना लेकर एक पेड़ पे बैठी थी। उसके चोच में से दाल फिसलकर पेड़ के खूंटे में अटक गई।
खूंटे खूंटे दाल दो, क्या खाऊ क्या पिऊ क्या ले परदेस जाऊ?
खूंटे ने दाल देने से मना किया, फिर चिड़िया बढई के पास गई।
बढई बढई खूंटा चिरो, खूंटे में दाल है,
क्या खाऊ क्या पिऊ, क्या ले परदेस जाऊ ?
बढई ने खूंटा चिर ने से मना किया।
फिर चिड़िया ने राजा के पास गई।
राजा राजा बढई दण्डो, बढाई ना खूंटा चीरे, खूंटे में दाल है,
क्या खाऊ क्या पिऊ क्या ले परदेस जाऊ ?
राजा ने सोचा इस मामूली चिड़िया की बात क्यूँ सुनु , राजा ने भी मना किया।
फिर चिड़िया ने रानी के पास गई।
रानी रानी राजा छोडो , राजा न बढाई दण्डे,
बढई न खूंटा चीरे, खूंटे में दाल है,
क्या खाऊ क्या पिऊ , क्या ले परदेस जाऊ?
रानी ने भी चिड़िया की बात नहीं सुनी।
फिर चिड़िया ने सांप के पास गई।
सांप सांप रानी डसों , रानी ना राजा छोड़े
राजा न बढाई दण्डे, बढई न खूंटा चीरे,
खूंटे में दाल है,
क्या खाऊ क्या पिऊ , क्या ले परदेस जाऊ ?
सांप ने भी चिड़िया की बात नहीं सुनी।
फिर चिड़िया ने लाठी के द्वार पर दस्तक दी।
लाठी लाठी सांप पीटो , सांप न रानी डसें
रानी न राजा छोड़े , राजा न बढाई दण्डे,
बढई न खूंटा चीरे, खूंटे में दाल हैं
क्या खाऊ क्या पिऊ , क्या ले परदेस जाऊ ?
चिड़िया परेशान हो गई लेकिन हिम्मत के साथ ओ चींटी के पास गई और अपनी पूरी दास्तान सुनाई
उसके बाद चींटी ने मदद करने का फैसला किया।
चींटी चींटी लाठी पीसो, लाठी न सांप पिटे,
सांप न रानी डसे,
रानी रानी न राजा छोडे , राजा न बढाई दण्डे,
बढई न खूंटा चीरे, खूंटे में दाल हैं,
क्या खाऊ क्या पिऊ, क्या ले परदेस जाऊ ?
फिर चीटियों की फौज लाठी के और बढी, लाठी सांप की और ,सांप रानी की ओर, रानी राजा की ओर,राजा ने बढई को हुक्म दिया की खूंटे को चिर कर दाल निकल दो. चिड़िया खुश हुई दाल लेकर परदेस चली गयी।
बन्दर और टोपीवालें का बेटा
बाप की पुरानी यादों में सोचते सोचते बेटे को नींद लग गई| जैसे ही ओ नींद से जागता है तो पुरे टोपियाँ गायब थी| जैसे ही उप्पर नज़र उठाकर देखता है तो वही पुरानी कहानी, सभी बंदरोने अपने अपने सर पे एक एक टोपी पहन रखी थी | लेकिन अब ओ खुश था क्यूंकि उसके पास पिताजी की दी हुई तरकीब थी | उसी तरकीब का इस्तेमाल करके वह टोपियाँ वापस लेने के लिए अपने सर की टोपी निचे फेक दी | लेकिन बन्दोरोने ऐसा कुछ भी नहीं किया ना तो टोपियाँ निचे फेकीं ना हीं जगह से हिले| अब टोपीवालें को पसीना आ रहा था,और वो सोच में पड़ गया की क्या मेरे अब्बू ने गलत सलाह तो नहीं दी ? वह बहुत ही निराश होकर देखता रहा और सोच में पड़ गया की यह कैसे हुआ ? उतने में वहां से एक राही जा रहा था इसे परेशां देख कर पुछा क्या हुआ भाई ? क्यूँ परेशां हो? टोपीवालेनी आपनी पूरी दास्ताँ सुनाई |
राही हसकर बोला "अरे बाबा वह तकनीक पुरानी हो गई है,और यह बन्दर भी पूरी तरहसे वाकिफ है |
जैसे ही तुम्हरे बापू तुम्हे सिखाया, ठीक उसी तरह बन्दोरोंके बापू ने भी वही कहानी सुनाकर उन्हें आधुनिक बनाया हैं | अगर तुम्हे टोपियाँ हासिल करना हो तो कुछ नया तारिक सोचना होगा,नया तरिका सोचो | क्यूँ की वक्त के साथ साथ हमें भी बदलना पड़ता हैं।
Sunday, October 18, 2009
मन की दिवाली शुभ हो
जहाँ दीपों की कतारें घर को घेर कर अपना प्रदर्शन करती तो दूसरी तरफ अनेक प्रकार के पटाखों की आवाजे, क्या यही हैं असली दीवाली ? दीवाली यानि प्रकाश का त्यौहार जो अंधकार को मिटा देता हैं, और हमें दिशा देखने को मदद करता हैं.
मेरा कहने का मतलब थोड़ा अलग है. आप बाहरी दुनिया को तो सजा रहे हैं , लेकिन आपने मन में जो अंधकार हैं उसे कैसे मिटाओगे ? बाहर की रौशनी से मन का अन्धकार तो मिटता नहीं.
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥
संत कबीर कहते हैं की माला फेरते फेरते जी भरा लेकिन मनका फेरते फेरते अपने मन का मनका नहीं फेरा. जो आपने मन का मनका फेरने के लिए मन के अँधेरे को दूर करने के लिए जिस रौशनी की जरुरत है, उसी रौशनी से मन का मनका फेर सकते हैं.
आज हमें जरुरत हैं की हम सब आपने मन का अँधेरा मिटा कर मन में दीपों की माला सजाकर मन की दिवाली मनाएंगे जो आपने मन का मनका फेरने के लिए मददगार साबित हो.
मन की दिवाली शुभ हो.
Tuesday, September 29, 2009
सत्य और सच
क्या आपको मालूम हैकी सत्य और सच में क्या फर्क हैं? सच को हम देख सकते ,परख सकते, सबूत इकट्ठा कर सकते मगर सत्य की परिभाषा ही अलग हैं. मेज पर एक पानी से भरा ग्लास रखा गया हैं. वह ग्लास आधा भरा हुआ और आधा खाली हैं, हमने कुछ लोगो से पूछा, कुछ लोगो ने कहा ग्लास आधा भरा हुआ तो कुछ और लोगो ने कहा आधा खाली हैं अगर हम दोनों पहलुओं का सही तरीके से विचार करते तो हमें दोनो हीं पहेलूं में सच्चाई नज़र आती हैं. जो लोग आधा भरा हुवा कहते, ओ सकारात्मक दृष्टि से विचार करते है और जो सोचते की आधा खाली, ओ नकारात्मक दृष्टि से देखते हैं. लेकिन दोनो ही पहेलु सच तो हैं, लेकिन सत्य तो कदापि नहीं. क्योंकि सत्य तो यह हैं की, ग्लास पूरा भरा हुवा है. शायद उसमें पदार्थ अलग अलग हैं. आधा ग्लास पानी से भरा तो आधा ग्लास हवा से भरा हुवा हैं.
एक बार समर्थ रामदास एक जगह प्रवचन कर रहे थे, प्रवचन करते समय उन्होंने कहा की परब्रह्म सभी जगह भरा हुआ हैं. उतने एक आदमी उनके पास एक कटोरा लेकर गया, और कहने लगा इसमें परब्रहम भर दो, तो समर्थ ने कहा, मित्र यह तो पहले से ही भरा हुआ हैं. पहले इस कटोरे को खाली कर ले आओ बाद मैं इसे परब्रह्म भर दूँगा.
दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जो अपनी आखोंसे देखते हैं. उसे सच मान जाते हैं बहुत ही पुरानी बात, और इसे हम नए तरीके देखते हैं जैसा की दुसरे की बीवी हरेक को अच्छी लगती, लेकिन कब तक जबतक दूसरा यह शब्द जीवित हैं, तब तक. जब आप दूसरा शब्द निकाल देते हैं, तभी सब समांतर दिखने लगते हैं. दूसरा शब्द काल्पनिक हैं, जब हम दूसरा शब्द निकल देते हैं वह सत्य बन जाता हैं. हम इस भौतिक जीवन के आधार से बहुतसे बातों का निर्णय लेते हैं अगर वही निर्णय अगर हम अध्यात्मिक दृष्टी से परखते है तो हमें सच और सत्य में फर्क मालूम पड़ता है.
कुछ और बातें सच का समय के साथ साथ बदलाव होता हैं. लेकिन सत्य में कोई बदलाव नहीं होता. सत्य के लिए दूसरा पर्याई शब्द ही नहीं हैं.
समझो आपको आज एक लड़की सुंदर दिखती हैं. इसका मतलब यह तो नहीं की और कुछ दिनों के बाद भी वह सुंदर ही दिखेगी, अगर आपके सामने एक पत्थर रख दिया और पुछा गया यह पत्थर बडा है या छोटा? तो आपके पास कोई जवाब नहीं होगा, क्यूंकि आप तुलना नही कर सकते, तुलना करने के लिए आपके पास और एक पत्थर की आवश्कता है, तो आप बेहिचक उत्तर दे सकते हैं, क्योकि अब हमारे पास प्रमाण हैं, नाप तोल का साधन है, उसी प्रकार आप जिस लड़की को देखा उससे भी कई सुंदर लड़कियां हो सकती हैं. इस के बाद आपकी सोच में परिवर्तन आता हैं. इधर लड़की यह शब्द सत्य हैं लेकिन सुन्दरता यह सच हैं, और समय के साथ साथ सुन्दरता को परखने में भी परिवर्तन आता है.
JEEVAN
लेकिन कुछ लोग हमेशा के लिए यादगार बन जाते है।
कुछ लोग जीवन में धुन्दलिसी यादें छोड़ जाते हैं।
बार बार याद करनेसे कुछ धुन्द्लेसे चेहरे याद आते हैं।लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं!
जो मददगार बनकर खुद चले आते हैं।
लेकिन हम वही भूल करते हैं।
अक्सर उन्ही लोगोंके चेहरे भूल जाते हैं!
जिसे हम हमेशा पाते हैं,वही चेहरे भूल जाते हैं।
Monday, September 28, 2009
kabir- chahat
जब आदमी को लगता हैं की, मुझे यह चाहिए, मुझे वो चाहिए, लेकिन मिलता वही हैं, जो आपको मिलना है। हमारी चाहतों की कोई सीमा रेखा नहीं होती, लेकिन हर एक को कुछ ना कुछ चाहिए होता, जो आदमी पैदल चलता हैं उसे साइकिल की जरुरत होती है। जिसके पास साइकिल हैं उसे मोटर साइकिल की जरुरत होती हैं। और उसके बाद कार, बाद में कौनसी कार इसके लिए कोई भी सीमा नहीं।
संत कबीर कहते हैं,लेकिन दुनिया कोई ऐसा आदमी है जिसे कुछ भी नहीं चाहिए होता ओ तो राजा से भी बढ़कर हैं। उसके जैसा सुखी कोई नहीं हो सकता,होता भी नहीं और होगा भी नहीं
ऐसे इंसान राजा ही नहीं बल्कि भगवान् का रूप होते हैं, जैसे की भगवन बुद्धने आपना सर्वस्व त्याग कर जो मार्ग अपनाया। भारत में ऐसे बहुतसे महत्मा हो गए उनके बारे में जितना भी कहे वो बहुत ही कम है
जो असलियत में राजा है, वह सच है और संत कबीर ने राजा कहा है वही सत्य है।
My New Peon
Un me se kuchh log bhool jaate hain, kucchh yaad rah jaate hai...