Friday, November 13, 2009

फिल्म ही फिल्म....

 इधर 'बरसात' तो उधर 'आग'.
'बरसात की एक रात' में 'आग ही आग'.

जहाँ 'शबनम' वही 'शोले'.
जहाँ 'दिल' वही 'दिलजले'.
जहाँ 'साया' वही 'सुराग'.
'बरसात की एक रात' में 'आग ही आग'.

जहाँ 'गीत' वही 'सरगम'
जहाँ 'मीत' वहां 'संगम'
जहाँ 'पापी' वही 'दाग'
'बरसात एक रात' में 'आग ही आग'

जहाँ 'ब्रम्हा' वहीँ 'त्रिदेव'
जहाँ 'अर्जुन' वहीँ   'देव'
जहाँ 'सिन्दूर' वही 'खून भरी मांग'
'बरसात एक रात' में 'आग ही आग'

जहाँ 'बादल' वहीँ 'दामिनी'
जहाँ 'सुर  वहीँ 'रागिनी'
जहाँ 'चिंगारी' वही 'चिराग'.
'बरसात की एक रात' में 'आग ही आग'

जहाँ 'सुर' वहीँ  'ताल'
जहाँ 'चालबाज़' वही 'मालामाल'
जहाँ 'जीवन' वही 'बैराग'
'बरसात एक रात' में  'आग ही आग'

1 comment:

  1. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित
    है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है,
    स्वरों में कोमल निशाद और बाकी
    स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम
    इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम
    का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें
    राग बागेश्री भी झलकता है.
    ..

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
    .. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल
    में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
    ..
    Also visit my blog post - हिंदी

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