Wednesday, December 16, 2009

खजाना लूटना ही हैं... ग़ज़ल

हमें भी जीवन का  खजाना लूटना ही हैं.
फिर खुद को मौज मस्ती पे टूटना ही हैं.

अब हमें नई जिंदगी जीने की चाह में.
गुजरे हुए वक्त पे आज हमें रूठना ही हैं.

आधी जिंदगी गुजर गई इस चाहत में.
आज हमें खुदसे भी उपर उठना ही हैं

ख़ुशी के  नये मकाम की तलाश में.
खुशीयोंके आसुओंसे रोकर फूटना ही हैं.

कुछ तो कर गुजरने की चाहत में. 
कभी खुद को भी मर मिटना ही हैं.

चलना था उसी बने बनाए  रास्ते में.
फिर उसी रास्ते  से भी तो  हटना ही हैं.

लूटे  खजाने को फिर से बांटना ही हैं.
जिंदगी से भी एक दिन छूटना ही हैं.