Thursday, October 29, 2009
SALESMAN
एक दिन की बात हैं. मैं बिग बज़ार में से गुजर रहा था. उतने में मुझे एक SALESMAN की आवाज़ सुनाई दी , "भाईयो और बहनों सुनो सुनो यह एक ऐसा तेल हैं जो आपको हमेशा FRESH रखता हैं".
उस आदमीको देखतेही मुझे हमारे 'बिग बी' याद आये, जो इसी तरह "ठंडा ठंडा कूल कूल का ADD. करते हैं".उसके साथ साथ कई और प्रोडक्टस आपने पिटारे में ले कर फिरते हैं. जैसा की सीमेंट क्रीम जो क्रीम लगाने के बाद इन्सान मशीन में बदल जाता हैं . और काम भी मशीन की तरह ही करने लगता ऐसे बहुत सारे ऐसे ADD.हैं जो लोगों को....... बनाकर माल बेचते हैं.
थोडी दूर एक और SALESMAN "कोनेमें" खडा होकर एक JAPANESE पंखे के बारे में लोगो को बता रहा था. उसे देखते ही मुझे हमारे कप्तान साहब याद आयें जो एक पंखा बेचने के लिए टीवी पर आते हैं ,जो कोने में तो खडा नहीं रहते लेकिन कोने कोनेमें हवा देने का वादा जरूर करते, क्यूँ की उन्हें आदत हैं सभी खिलाडियों को " कोने कोने में" खड़े करने की शायद इस लियें उन्होंने यह ADD चुना हैं. और ADD. में स्कूल के बच्चों का "कप्तान" बनकर उसे भी कोने कोने में खडा करते हैं. क्यूँ की विपक्ष के खिलाडी गेंद को इतनी तेजीसे मारते हैं की, जिसके हवासे फिल्डर के तों CATCHES भी छुट जाते हैं. फिर तो हवा कोने कोने में जरूर लगेगी.और एक ADD में ओ बिग बाज़ार में काम करने लगे हैं.सॉरी..... बिग बाज़ार के लिए ADD कर रहे हैं. हामारे कप्तान की बात ही कुछ और हैं. बहुत ही अच्छा काम करते हैं. ( बिग बाज़ार में. )
और थोडी दुरी पर एक और SALESMAN खडा था जो टीवी के साथ साथ डिश भी बेचा करता था, उसे देखते ही मुझे हमारे खान साहब नज़र आये जो घर घर जाकर "डिश के साथ विश भी करते हैं".
थोडी दूर और एक SALESMAN जो पेन बेच रहाथा और ओ जोर जोर से लोगो को अपील कर रहा था "भाईओ और बहनों पाच रुपये में एक, चलती ही जाएँ".मुझे हमारे ब्लास्टर साहब याद आयें जो पेप्सी के साथ साथ पेन और कई सामान अपनी झोली में लेकर फिरते हैं.
एक बात तो तय हैं की हम सब इस जीवन में कुछ न कुछ बेचते और खरीदते हैं . कुछ चीजे पैसे से, कुछ चीजें बिना पैसो से लेकिन बेचनेवाले कम तो खरीदनेवाले ज्यादा शायद इसी वजह से उनका धंदा( ADD) चल रहा हैं.
जीना बोले तो क्या है? क्या हमारी बुनियादी जरूरतें सिर्फ रोटी, कपडा और मकान तक सिमित हैं? या इससे भी कई ज्यादा , नही हर एक की जरुरते अलग हैं. उसके लिए कोई भी सीमारेखा ही नहीं. अब आदमी की बुनियादी जरूरतों का कोई हिसाब ही नहीं रहा.
इसी वजह से तो SALSMAN कुछ भी बेचने के लिए उतारू हैं क्यूँ की हम ही हैं जो सब कुछ खरीदते हैं.हमारे बिना SALESMAN कुछ भी नहीं.
Subscribe to:
Posts (Atom)