Tuesday, January 12, 2010

मेरी जमीं, मेरा देश..



             एक गाँव में एक जमींदार रहता था. उसके पास तक़रीबन १०० एकर के  आस पास जमीं थी. और उसके पड़ोस में एक छोटासा किसान रहता था उसके पास तक़रीबन १०  एकर खेती थी. वह किसान अपनी छोटीसी जमीं पर मेहनत करके अच्छी फसल उगाकर जीवन व्यतीत करता था. साल में कुछ पैसे बचाही लेता था.किसान बहुत ही भोला था ओ हमेशा ही गांधीजी के उसूलों पर चलता था. जैसा की बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो और बुरा मत बोलो. अगर कोई उसेके एक गाल पर थप्पड़ मरता तो ओ दुसरा गाल आगे करता. 

              एक दिन वह खेत में पेड़ के छाव में  आराम करते करते  उसके दिमाग में कुछ साल पहले की घटनाएं  याद आ रही थी .  उसके पास आसल में ११  एकर खेती थी. उसके एक एकर पर जमींदार ने कब्ज़ा जमाया  था. एक दिन जमींदार ने उसे चाय को बुलाकर,दोस्ती का हाथ बढाकर  रातोरात जमीं पर कब्ज़ा कर रखा था.  जब दुसरे दिन  सुबह  देखता तो उसकी १ एकर जमीं जमींदार के कब्जे में थी. उसने गाँव के सरपंच के पास आपनी  शिकायत दर्ज की, फिर सरपंच ने दोन्हो के बिच में करार पत्र बनया, जिसमे लिखा था की  "यह जमीं जीसकी भी  हैं, इसका हल तो सर्वे के बाद ही होगा और सर्वे की पूरी रक्कम जमींदार ही चुकाएगा. अगर जमीं ज्यादा निकली तो खुद ही नयी हद बनाकर  जमींदार स्वयं किसान को लौटा देगा ". इस बात  को अब  पच्चीस साल गुजर चुके  थे. लेकिन जमींदार वह सब भूल चुका था.


                  कुछ और दिन बीत गए अब किसान और जमींदार दोनोंही मर चुकेथे. अब कमान उनके बेटों के हाथों में थी. किसान का बेटा भी अपने बाप की तरह  दिन रात मेहनत करके अच्छा ही कमा लेता था. ओ भी गाँधी वादी था जो अपने पिता  की तरह. दूसरी तरफ  जमींदार  का बेटा, वो  भी ठीक अपने बाप के नक्शेकदम पर चलता था.


               कुछ और दिन बीत गएँ एक दिन (छोटा) किसान अपनी बेटी के लिए वर देखने गाँव चला गया. दो दिन जब अपने खेत पर जा देखता तो उसके खेत के तक़रीबन आधे एकर पर   जमींदार(छोटा ) कब्जा कर रखा था. और एक नए सीमा रेखा बनायीं थी अब छोटा किसान फरियाद ले कर किसके पास जाता क्यूँ की छोटे जमींदार का गाँव में इतना दब दबा था की कोई उसके खिलाप आवाज़ उठाने को तैयार  ही नाही था. उनने  जमींदार को पूछा तो उसने कहा "जो तुम्हारी जमीं थी, जिसपे तुम्हारे बाप ने कब्जा कर रखा था, वही जमीं वापस ले ली हैं".


                   किसान मन ही मन सोच रहा था. क्या सच्चाई के रस्ते पे चलने से  येही फल मिलता  हैं. इस जमींदार के अलावा उसके तिन  और पाडसी थे. पहला पडोसी उसके पास ५  एकर के आसपास जमीं थी ओ भी इस छोटे किसान के जमीं पर कब्जा कर राखा था, और ओ  खुले आम उनके गाय भैंसे उनके खेत में छोड़ देता था. और ओ खेत में घुसकर उसकी फसल को नष्ट  करने का प्रयास करते रहता था.  पूछने पर कहता था की ओ गाय भैंसे उसकी नाही थी बल्कि और एक पडोसी की थी.


             उसका  दुसरा पडोसी एक  छोटा किसान था. उसके पास  ३  एकर जमीं थी. और उसकाभी इस किसान से विवाद हो गया था क्यूँ  की  इसके  के खेत में से जो  पानी का बहाव सीधा दुसरे किसान के खेत में जाकर  उसकी फसल को हानी पहुंचाता  था. इसी वजह से इस पडोसी के साथ भी उसका रिश्ता उतना अच्छा नहीं था.
  
             तीसरा पडोसी जो था दिन भर छोटे किसान के साथ रहता था उसके पास एक एकर जमीं थी. लेकिन ओ भी आजकल जमींदार के साथ ही रहने लगा था. यह सब सोच कर किसान बहुत ही चिंतित था उसे कुछ भी रास्ता नहीं दिख रहा था.
  अब आप ही  बताएं आखिर यह किसान करे तो क्यां करे ?
१) क्या उसे  सच्चाई का रास्ता छोड़ देना चाहियें ?
२)  क्या उसे  उनका जवाब उन्ही के भाषा  में देना  चाहियें ?
३) या उसे आपनी  सारी  जमीं जमींदार के हवाले कर देनी चाहियें?
४) या उसे इसी तरह जीवन बिताना चाहियें?
हमारे इमानदार किसान को आपके जवाब का इन्तजार हैं.


इस कहानी में जो काल्पिनिक पात्र हैं उनका विवरण कुछ इस तरह  हैं.      
जमींदार......चीन 
किसान......भारत 
पहला पडोसी ......पकिस्तान 
दुसरा पडोसी ......बंगलादेश 
तीसरा पडोसी .......नेपाल
सरपंच.......संयुक्त संस्थान