एक गाँव में एक मदारी बन्दर का खेल दिखा रहा था. और वहां बहुत सारे लोग जमा होकर बन्दर का खेल देख कर मजा ले रहे थे. क्यूँ की गाँव उससे अच्छा मनोरंजन हो ही नहीं सकता था. लेकिन अब हमें हर जगह मदारी दिखाइ देते हैं. और उसे देखने केलिए हमें बहार जाने की जरुरत नहीं, क्यूँ की मदारी और बन्दर का शो हर घर में दिखाई देता हैं ओ भी टेलीविज़न के माध्यम से.
अब सोचने वाली बात यह हैं की हम सब जिंदगी में कभी ना कभी बन्दर बनते ही हैं और मदारी के इशारे पे नाचते हैं. जैसा की बड़े उद्योग समूह अपना माल बेचने के लिए बड़ेसे बड़े फ़िल्मी सितरोंको नचाते हैं. और बडेसे बड़े खिलाडियों को बन्दर बनाकर तमाशा दिखाते हैं.और ठीक इसी तरह नेता लोग लोगोंको को बंदर बनाकर नचाते हैं.
जैसा की कोई नेता जब चुनाव जीत जाता हैंतो लोग उमड़ पड़ते है और अपना नाच गाना सुरु करते हैं. ठीक इसी तरह हम कभी ना कभी बंदर का रोल अदा करते हैं.
जैसा की महासचिव का मुंबई का दौरा सभी को खूब नचाया था. सी एम से लेकर सभी मंत्रिगन और साथ में सभी पुलिसवाले भी. ठीक इसी तरह सेना ने भी आपने बंदरोंको नाचने के लिया खुला छोड़ा था लेकिन उनके बन्दर अब थक चुके थे क्यूँ की पिछले कई सालोंसे से नाचते और तमाशा दिखाकर थक गये थे. इस लिए उन्होंने नाचना बंद कर दिया था. मीडिया के मदारियोने आपने आपने बंदरोंको मैदान में उतारा था की कुछ सनसनीखेज खबर मिल सके और खूब तमाशा हो.
एक जमाना था क्रिकेट को हम बड़ी चाह से देखते थे क्यूँ की वह आपने देश के लिए खेलते थे. जब ओ देश के लिए खेलते थे तभी हम भी ख़ुशी से बन्दर बनकर नाचा करते थे क्यूँ की देश के सामने हम कुछ भी बन सकते हैं, यह बन्दर तो कुछ भी नहीं. लेकिन समय के साथ साथ कुछ परिवर्तन आया कुछ पैसो वालोने कुछ खिलाडीयोंको बन्दर बनाकर तमाशा दिखाना शुरू किया शायद उसे ही हम IPL कहते हैं. जहाँ हर खिलाडीके कीमत की बोली लगती हैं, और उन्हें मैदान में छोडा जाता हैं. और इस खेल को आप तक लाया जाता हैं. जिसे आप घर बैठे देख सकते हैं. शायद आपको मालूम होगा की अब जो मदारी बन बैठे हैं. ओ भी एक जमानेमें बन्दर का रोल मिभाया करते थे. शायद बन्दर भी मदारी के चाल को समझ चुके थे और उन्होंने सोचा की क्यूँ की हम बन्दर बनकर क्यूँ नाचे हम भी मदारी बन सकते हैं. जैसा की कुछ हीरो जो बन्दर बनकर निर्देशक के इशारेपे नाचा करते थे अब ओ खुद मदारी बन कर कुछ बंदरोंको खरीदकर खेल शुरू किया, लेकिन मदारी के मन में एक आस थी की शायद अच्छा खेल दिखाना हो तो कुछ पडोसी देश के बन्दर खरीद सके. लेकिन वहां एक बड़ा मदारी बैठा था उसके पास बहुत सी बंदरों की सेना थी. अब दोन्हो मदरियोंके बीच बहस हुई और इसी खेल को मीडिया ने टीवी के जरियें लोगों तक पहुंचा दिया और लोग भी बड़े चाव से इस खेल को देख रहे थे.
अब हमारे पास केवल दो ही विकल्प हैं या बन्दर बनकर नाचना या मदारी बनकर नचाना. लेकिन मदारी बनना उतना आसान नहीं हैं. क्यूँ की उसके लिए आपको पहले बन्दर बनकर नाच गाना दिखाकर पैसा जमा करना पड़ता हैं. उसके बाद ही मदारी बनकर नचाना पड़ता हैं. यहा सभी नियम केवल बन्दर के लिए हैं. मदारी के लिए कोई नियम हैं ही नहीं. मदारी जैसा कहता ठीक उसी ताल पर नाचना हैं. आज भारत में आम आदमी की हालत भी कुछ इसी तरह ही हैं. क्यूँ की बन्दर जब भी मदारीके इशारे पे नाचता हैं इसके बदले में उन्हें कुछ खाने को मिलता हैं. शायद इस वजह से ही बन्दर मदारिके इशारों पे नाचता हैं. शायद आम आदमी की जिंदगी भी इस बन्दर से कुछ अलग नहीं हैं. क्यूँ की इसे भी अपनी भूख मिटाने के लिए मदारी सरकार हर रोज नचाती हैं. कभी महंगाई के तार पर जहाँ बुनियादी जरूरतों को पूरा करने और जीनेके लिए बन्दर बनकर नाचनाही पड़ता हैं.
जब भी चुनाव आते हैं तभी थोड़े दिनोके लिए आम इन्सान मदारी बन जता हैं. और नेता बन्दर फिर एक बार ओ चुनाव जीत कर जाता हैंतो हम सब बन्दर और वो मदारी बन जाता हैं. और हमें कई सालों तक नचाता हैं. कभी काम के नामसे , कभी जात के नामसे कभी एकता के नाम से, और कभी कभी राम के नामसे. क्या यही हैं प्रजातंत्र ? आज हमें एक नयी सोच की जरुरत हैं जहाँ लोग अपने नेताओं के इशारोंपे नाचना छोड़कर खुद अपने ही मन की सच्चाई को मदारी बनाकर नाचना हैं. यही होगा हमारा प्रजातंत्र और यही होगा सच्चे मदारी का खेल.