Sunday, July 29, 2012

धर्म-निरपेक्ष हैं


हम धर्म-निरपेक्ष हैं इस लियें सब सहते हैं
हम सब एक हैं, एक हैं, यही तो कहते हैं

बुरा ना देख, इस लिये आँखे बंद कर गएँ
देख नही सकते, वो जख्म बुलंद कर गएँ
अब आदत हो गई हैं यह दर्द सहने की,
कुछ भी करें, खून के आसूं तो बहते हैं

बुरा ना सुन, इस लियें कान ढक दियें
चीखे भी बंद हुई, अब दर्द भी पी लियें
अब अपनों का दर्द भी सुन नहीं सकते,
अपने ही देश में परदेशी की तरह रहते हैं 

बुरा न बोल, इस लियें बंद की हम जुबां 

बोल ना सकें, खुदबा खुद हो रहे हम कुर्बां 
जाँ हाथ लियें, बापू के क़दमों पे जाना  हैं,
फिर भी कहते की हम बापू के चहेतें हैं 

आज याद आते हैं, जो सूली पर चढ़ गएँ 

हमें इस धर्म-निरपेक्ष के हवालें छोड़ गएँ
इसी लियें तो वो इन्हें  ज़िंदा काट देते हैं,
हर जगह, जख्म लियें यह  करहतें हैं 

उतार दो यह  धर्म-निरपेक्ष का मायाजाल
जो धर्म को मानते,उनकी ही हैं एक चाल 
माध्यम हो या सरकार सबकी एक ही जात
एक धर्म कंधे पे, दुसरें को कुचलते रहते हैं

छाती पीटकर खुदको धर्म-निरपेक्ष कहलातें हैं
हम सब एक हैं, यही कहकर सबको बहलातें हैं
अब सड चुकी हैं यह धर्म-निरपेक्ष की दीवार,
निर्बल इटें, इमारतें यहाँ खुदबा खुद ढहते हैं  

अंधे, गूंगे और बहिरें बन बैठकर मरते हैं 

धर्म-निरपेक्ष कहकर वही पक्षपात करते हैं 
वो भूल नहीं सकते, हम क्यूँ भूलें वर्ण को,
चलो आवाज दो, आपसे यहीं  तो कहतें हैं