जीवन की रेल में,
सफ़र करते करते,
किसी ने कहा उतरो अब स्टेशन आया हैं.
मैं यह सुनकर हैरान रह गया
मन ही मन सोचने लगा,
हम स्टेशन पे आये,
या स्टेशन हमारे पास आया हैं.
सोचते सोचते एक और ख़याल आया.
क्या नया साल भी इसी तरह आया,
जैसा की स्टेशन आया.
मैंने खिड़की के बाहर देखा.
फिरसे देखा, और परखा,
बहुत सारे अंक भाग रहे थे.
जिसमे पल मिनट और
घंटे समाये थे.
और दिन पर दिन,
जैसे की भागते हुए पेड़ ,
और साथ में महीने भी
भाग रहे थे,
अब मुझे यकीन हो चला था,
सब उसी जगह खड़े थे.
सिर्फ समय भाग रहा था.
उसे सिर्फ हम नंबर दे रहे थे.
शायद इसेही हम नया
साल कह रहे थे.
और साथ में सभी को नववर्ष की
बधाई दे रहे थे, बधाई दे रहे थे.