Tuesday, May 25, 2010

बेटा या बेटी १


भाग १
(इस  कहानी  में दिए गए नाम और पात्र काल्पनिक  हैं)

रोहन ने  माँ को फ़ोन लगाया और कहने लगा.

"माँ मैं रोहन   बोल रहा हूँ  शहर से"
"बोलो बेटा सब ठीक तो हैं ना , और बहु कैसी हैं"
"वही माँ घर में लक्ष्मी आयीं हैं आप दादी बन गई हैं"
"क्या पोता हुआ हैं"
"नहीं माँ पोति हुई हैं".
"दूसरी भी"
"हाँ"

फिर फ़ोन कटने की आवाज़  रोहन  सोच लिया की माँ ने फ़ोन काट  दिया  होगा और मन ही मन सोचने लगा की शायद रेवती की तबियत के  बारेमें पूछा होता.  फिर से वह लौटकर रेवती  के पास आया खाट के पास  रखे हुए स्टूल पे  बैठ गया. एक बूढी औरत रोहन  के पास आयीं और मिठाई का डिब्बा आगे करते हुए कही.

"बेटा मुह मीठा कर ले पोता हुआ हैं"
"बधाई माजी"
"क्या तुम  अकेले ही  इस अस्पताल में! प्रसवन समय अस्पताल में  औरत  का होना बहुत जरुरी हैं "
"नहीं माँ जी मदद के लिए पड़ोस की आंटी  आती  हैं सुबह और शाम" 
"बेटा निराश मत हो अगले बार लड़का जरुर होगा मेरे बहु को भी पहले दो लडकिया हुयी और अब यह लड़का लेकिन एक बात का ख़याल रहे की पहलेही इलाज कर रखना"
"इलाज़ मैं समझा नहीं"
"इलाज़ यानि ओ मशीन से पता कर लेते हैं ना की  लड़का होगा या  लड़की"
"लेकिन यह  तो कानूनन अपराध हैं और डॉक्टर ऐसा करेंगे क्या"
"अरे बेटा काहेका अपराध थोड़ा ज्यादा  पैसा देकर करवा लेना और डोक्टर भी अन्दर के अन्दर सब कर देगा
देखो अभी मेरी बहु चम्पा हैं ना ये उसका दुसरा मौक़ा हैं क्यूँ की दो लड़कियों के बाद जब ओ उम्मीदसे थी तभी मशीन टेस्ट में लड़की निकली"
"फिर"
"फिर क्या बेटे! गिरा दिया और अब यह पोता"
ऐसा कहते कहते  वृद्ध महिला   बहु के पास चली गयी क्यूँ के कुछ और ल़ोग जमा हुए थे जो सभी ल़ोग बहु को बधाई  देने आये थे.

रोहन  अब बिलकुल अकेला  हो गया था सोचा माँ का फ़ोन आयेगा लेकिन किसका भी अभी तक फ़ोन नहीं आया था वह मन ही मन सोचने लगा था क्या लड़की होना कोई गुनाह हैं ? उतने में रेवती  ने आवाज़ दी.

"सुनो घर में किसीको बताया तो नहीं ना की दो लड़कियों पर प्लानिंग की हैं"
 "नहीं! माको सिर्फ  लड़की हुई हैं इतनाही बताया हैं"
"ठीक हैं! जब हम  गाँव जायेंगे तभी बता देंगे"
"ठीक  हैं"

कुछ दिन और बीत गएँ एक दिन मार्केट वह बुढ़िया मिली और पूछ ताछ शुरू की.

'बेटा तुम एहां कैसे"
"पहले यह बताओ की आप येहाँ "
"हां मेरा बेटा अभी येही पर घर लिया हैं आनंद नगरमें "
"आनंद नगर में तो मै भी रहता हूँ"
"चलो पास में ही हैं मैं तुमे हमारे घर  ले जाती हूँ लो आ गया येही घर"

घर के अन्दर जाते ही बुढीया ने राकेश को बुलाकर परिचय करवा दिया और चम्पा बिस्तर  पर ही थी इस लिए  माँने ही चाय बना लायी और चाय पीते पीते ही रोहन ने  कहा.

"मेरा घर भी इधर पास में ही हैं कभी कभी आते जाते रहना"
"जरुर अब तो हमारा परिचय भी हो गया आत जाते रहेंगी" राकेश ने कहा.
"बेटे का नाम क्या रखा हैं"
"अरुण नाम रखा हैं जो इसके दादाजी की अंतिम इच्छा थी"

राकेश ने साथ में उसकी बड़ी  और छोटी बेटीयोंको को बुलाया और कहा.

"यह मेरी पहली बेटी रुचिका और दूसरी रक्षिता आपको कितने बच्चे हैं"
"जी मेरी दो बेटियां  हैं  अंकिता और अर्चना"

थोड़ी देर रूककर रोहन घर की ओर निकल पड़ा अब राकेश  और रोहन अच्छे दोस्त बन गए थे अब  लगतार आना जाना रहता था. ठीक  उसी तरह चम्पा और रेवती भी एक दुसरे में घुल मिल गए थे और साथ  में दोनों परिवार के बच्चे भी.
(क्रमश:)