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देश वीदेश के सभी पाठकों का आभार ...
ब्लॉगस लिखते लिखते तकरीबन तीन साल का सफ़र में मेरे पाठक दोस्तों की अहम भूमिका रही हैं। जो की देश वीदेश में रहते हैं,जिन्होंने मेरे इस सफ़र को जिन्दा रखा हैं। हमारे जीवन में बहुत सारे मोड़ आते हैं. जहाँ की हमारे स्कूल के दोस्त, बादमें कॉलेज के दोस्त,ऑफिस के दोस्त और अंत में आते हैं नेटवर्क के दोस्त. स्कूल के दोस्त कहाँ है, यह तो पता करना बहुत ही मुश्किल का काम हैं। कॉलेज एक या दो दोस्त मिलते हैं, कभी फोन पे बाते होती और हालचाल पूछ लेते हैं। ऑफिस के सभी दोस्त तो हर रोज मिलते हैं, लेकिन वो बाते नहीं होती जो हम करना चाहते। अब मैं नेटवर्क के दोस्तों की बात करता हूँ। हम तो हर रोज़ मिलते हैं और अपने विचार शेयर करते वो भी कोई आवाज़ के बिना ही लेकिन उनकी आवाज़ हमारे दिल पे दस्तक जरुर देती हैं.
सुना था भीड़ में भी आदमी अकेला होता हैं। आजु बाजु में बहुत सारे ल़ोग होने के बाद भी सन्नाटा क्यूँ सुनाई देता हैं? भीड़ में बहुत सारी आवाज़े होती, लेकिन उसे केवल मन की आवाज़ ही सुनाई देती हैं। भीड़ की आवाज़ से मन की आवाज़ कई गुना ज्यादा होती और इसे ही हम सन्नाटे की आवाजें कहते हैं। इस लिए कुछ जानकार कहते हैं की, आप किसी की बात सुने या ना सुने मन की बात जरूर सुनियेगा।
"जीवन"
जीवन के इस सफ़र में बहुत से लोग मिलते हैं! लेकिन कुछ लोग हमेशा के लिए यादगार बन जाते है! कुछ लोग जीवन में धुंदलीसी याँदें छोड़ जाते हैं! बार बार याद करनेसे कुछ धुंदलेसे चेहरे याद आते हैं! लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं! जो मददगार बनकर खुद चले आते हैं! लेकिन हम वही भूल करते हैं! अक्सर उन्ही लोगोंके चेहरे भूल जाते हैं! जिसे हम हमेशा पाते हैं, वही चेहरे भूल जाते हैं।
"प्यारे दोस्तों मैं कोई लेखक या कवी नहीं हूँ, क्यूँ की मैं भी कुछ लिखना चाहता हूँ। इस ज्ञान के सागर मे डुबकी लगाकर कुछ मोती समेटकर आप लोगोंके साथ बाँटना चाहता हूँ। मुझे मालूम हैं की आप सभीको मोतियोंकी परख हैं। इस लिए कुछ गलतियां हुई तो बेहिचक बता दीजिएगा।"
Thanks
आपका एक साथी
उत्तमकुमार
"प्यारे दोस्तों मैं कोई लेखक या कवी नहीं हूँ, क्यूँ की मैं भी कुछ लिखना चाहता हूँ। इस ज्ञान के सागर मे डुबकी लगाकर कुछ मोती समेटकर आप लोगोंके साथ बाँटना चाहता हूँ। मुझे मालूम हैं की आप सभीको मोतियोंकी परख हैं। इस लिए कुछ गलतियां हुई तो बेहिचक बता दीजिएगा।"
Thanks
आपका एक साथी
उत्तमकुमार