जमीं तो बिक चुकीं , अब आसमान बाकी है।
सपने तो बिक चुकें, अब अरमान बाकी हैं।
यहाँ इंसानियत की कद्र नहीं, आदमी चलता हैं।
इंसानियत तो बिक चुकी, अब इंसान बाकी हैं।।
आप सरकार नहीं, सिर्फ गाड़ी चला रहें हैं।
जुर्माना तो बिक चुका, अब चालान बाकी हैं।।
ईमान का वास्ता देकर, जीतते चलें आये हैं।
नाम तो बिक चुका, अब ईमान बाकी हैं।।
झूठा सन्मान लिए, सर उठाकर चलते हैं।
सन्मान तो बिक चुका, अब अपमान बाकी हैं।।
हथियार बिना झगड़े तो हमने देख लिए हैं।
हथियार तो बिक चुके, अब घमासान बाकी हैं।।
तूफान की गुंजाईश नहीं, मौसम तो ठिक हैं।
हवामान तो बिक चुका, अब तूफान बाकी है।।
ज़िंदा लाश का सामान लिए हम यहाँ जीते हैं।
ताबूत तो बिक चुके, अब सामान बाकी हैं।।
जीताने की एक आस लिए, फिर भी जी रहे हैं।
मत तो बिक चुकें, अब मतदान बाकी हैं।।
चुनाव जीतने की चाह में, कुछ भी करतें हैं।
जित तो बिक चुकी , अब अनुमान बाकी हैं।।
भीड़ के शक्ल लिए, जीत का जश्न मनाते हैं ।
भीड़ तो बिक चुकीं, अब सुनसान बाकी हैं।।
वासना के जंगल में, इज्जत भी बिक जाती हैं।
शरीर तो बिक चुका, अब विचारान बाकी हैं।।
बड़ी ही मेहनत से फुल पौधे खिला दिए हैं।
खुशबू तो बिक चुकी, अब फूलदान बाकी हैं।।
तीर कमान हाथ में लिए निशाना लगातें हैं।
तीरेंनिशाँ तो बिक चुका, अब कमान बाकी हैं।।
समागम तो बिक चुकें, अब समाधान बाकी हैं।
मंदिर तो बिक चुके, अब भगवान बाकी हैं।