Monday, November 23, 2009

किस्सा राममंदिर का



आज हमें एक ऐसा किस्सा चाहिए को जो जीवन भर चल सके। सत्ताधारी और विपक्ष अपने अपने तरीके से इसका प्रयोग कर सके । इसके साथ साथ मीडिया भी अपनी रोटियां सेंक कर पेट भर सके। अभी हमारे पास एक बड़ा मुद्दा हैं। आप सब इससे अच्छी तरह से वाक़िफ हैं। यह एक ही मुद्दा ऐसा हैं की, सभी लोगोको इक्कठा कर सकता हैं। और जरुरत पड़े तो भारत को तोड़ भी सकता हैं। ओ हैं "बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि "
जरा सोचो, अगर हमारे पास यह विषय नही होता तो क्या होता? हमारे नेताओं को नए मसले की खोज रहती। शायद मीडिया को भी नया और इससे मसालेदार किस्सा खोजना पड़ता। कभी कभी यह किस्सा इतना भारी बन जाता हैं की, कश्मीर का किस्सा भी इसके सामने फीका नज़र आता हैं। कितने साल बीत गएँ इस ढांचेको गिराकर फिर भी ये मसला सबके लिए नया हैं। हमारे एहां दो तरह के लोग रहते हैं। कुछ लोग हिंदू(मतदाता) के तरफ़ हैं। कुछ लोग मुस्लिम (मतदाता) के तरफ हैं। जो हिंदू के तरफ़ हैं। ओ यह बताते हैं की हम मन्दिर बनायंगे और जो मुस्लिम के तरफ़ हैं ओ कहते हैं जिसने भी यह ढांचा गिरया हैं उसे हम सजा दे कर ही दम लेंगे।


हम किस जगह पर मन्दिर बनायेंगे ? और क्यूँ ? मेरा कहना तो यह हैं की आप मन्दिर बनाने के बारें में सोचानाही नहीं। मैं सभी हिन्दुओं को कहना चाहता हूँ की मन्दिर के लिए बहुत ही कम जगह चाहियें। मन्दिर किधर भी हो, हमें तो हरी का स्मरण ही तो करना हैं। हमारा शरीर ही एक मन्दिर हैं। उसमे जो आत्मा हैं वही हमारा भगवान हैं। यही हमारे संतोने कहा हैं।
सोचने वाली बात यह हैं की इस्लाम की स्थापना सातवी सदी में हुई। क्या उसके पहले भी मस्जिद हुआ करते थे, या उसके पहले लोग अल्लाह इश्वर को मानते ही नही थे?
जब जीसस को क्रूस पर बांधकर गोल्गुथा के पहाड़ पर ले जा रहे थे वहाँ एक लाख से भी ज्यादा लोग देख रहे थे। लोहालुहान जीसस ने सभीसे गुजारिश की, कोई पिने के लिए पानी दे। लेकिन एक आदमी भी आगे नहीं आया। आज दुनिया में जीसस के चाहनेवाले सबसे ज्यादा हैं। एहिं समय का परिवर्तन हैं।
सौ साल के बाद भी यह किस्सा ऐसा ही रहेगा। फर्क सिर्फ इतना होगा की तब हिंदू अल्पसंख्यक होगे। और देश का पिएम कोई "गांधी" ही होगा। जिसका नाम .........गांधी हो सकता हैं। लेकिन उस समय ओ अल्पसंख्यकको की समस्यां को जरुर सुनेगा। और मीडिया का भी पुरा सहयोग(गांधी और अल्पसंख्यकको) मिलेगा। और मंदिर बनाने का वादा भी। समय का इन्तजार करो। यही हैं किस्सा राममंदिर का।