Monday, July 16, 2012

बेटे का मोह


बेटा बेटी में भेद नहीं,  कर तू समांतर प्यार
लेकिन उसे लगता, बेटेसे सुख मिलेगा अपार

लगता हैं बेटे की जान में बसी उसकी जान
सबको बताता हैं, अब मिल गयी हैं पहचान
बेटी तो परधन, अब बेटा लगता सदाबहार
दिन या रात बेटे की तारीफ करता बार बार

दिन रात मेहनत करता, बेटे को पढाता   
काबिल बनाकर उसे आसमाँ  पर चढ़ाता  
सोचा था बेटा बड़ा होकर, लायेगा बहार
एक दिन चुकाएगा उसके प्यार का उधार

समय का चक्र बहुत ही तेजी से चलता 
कभी ख़ुशी तो कभी गम, जीवन ढलता
समय की होगी जीत,हारेगा उसका विचार
एक दिन धकेल देगा, जीवन को उस पार



वक्त के साथ साथ  बेटा और बेटी बड़ें हो गएँ
जब दोनोंहीं अब खुद के पैर पर खड़े हो गएँ
बेटी शादी के बाद, छोड़ दी सगे बाप का द्वार
माँ बाप को छोड़कर, घर को किया लाचार


बेटी तो पति के घर को अपना घर  मान ली
बेटेने शहरी हो कर वहीँ बसने की ठान ली
माँ बाप बेटे के चाह में, यादोँ की लेकर मार
पहले बेटें का, फोन का हैं अब इन्तजार

बीमार बाप बेटे की राह में जिंदगी जीता रहा
बेटे के याद में जहर जिन्दगी का पीता  रहा
बेटी दौड़ी चली आई थी, दिल पर लेकर भार
जो जी जान से करती थी माँ बाप से प्यार

बाप मर गया, जब बेटी  ने बेटे को बुलाया
व्यस्त था, अंतिम संस्कार को नहीं आ पाया
बाप के प्यार में, बेटी ने मचाया हाहाकार
चिता को अग्नि देकर, प्यार का किया इजहार

अब माँ सोच में पड़ी थी होकर मन में मग्न 
बेटे के लिएँ दूसरी को पेट में किया था भग्न
सोचती रही भगवान सब कुछ तेरा ही करार
शायद बेटा नहीं, बेटीसे करवाया दाहसंस्कार

अजब हैं यह दुनिया, जीने की एक रीत हैं
जिसे हम नहीं चाहते, वहीँ तो बसी प्रीत हैं
चाह की मत सुन, आस से मिलती हैं हार
फल की चाह में प्यार को मत बना मक्कार