जिम्मेदार ही जिम्मेदारियों को क्यूँ भुला रहे हैं यहाँ
एक ही जात के राजनेता महंगाई रोको कहकर यहाँ
महंगाई के पिस्तोल से गोलीयाँ क्यूँ चला रहे हैं यहाँ
अभी तक पता नहीं उनका, कई वादे कर गये यहाँ
आखिर उन्ही को हम सत्तासुख क्यूँ दिला रहें यहाँ
महंगाईके मारसे दबकर मरे हुए लगते हैं सब यहाँ
उन्हीको मुर्दा समझकर अंतपे क्यूँ सुला रहे है यहाँ
महंगाई के पहाड़ सी सरकार हिलाना भी बेकार यहाँ
बंद के एक छोटे किलेसे पहाड़ क्यूँ हिला रहे हैं यहाँ
दाल सब्जी के दाम भी आसमान को छू चुके हैं यहाँ
पेट्रोल और डिजल के आंसुओंसे क्यूँ रुला रहे हैं यहाँ
इस दूषित हवा को भी बेचने के लिए ही बैठे हैं यहाँ
हर सांस के साथ कडवा जहर क्यूँ पिला रहे हैं यहाँ
भारत बंद! भारत बंद! यही नारा क्यूँ झुला रहे हैं यहाँ
जाम कहकर, चक्का वोटों की तरफ क्यूँ चला रहे हैं यहाँ