Saturday, August 18, 2012

राजा और बेताल

      (फोटो दैनिक भास्कर से साभार)

            राजा विक्रम ने फिर से उसी भ्रष्ट्राचार के पेड़ से घोटालें के शव को उठाया और अपने कंधे पर लाद  कर चलने लगा। दिन के उजालें में चारों तरफ अँधेरा छाया हुआ था, क्यूँ की पेड़ इतना विशाल और घना था की उसके अन्दर रौशनी की  किरण घुसने का प्रयास भी नहीं कर सकती थी। पेड़ की बड़ी बड़ी शाखाएं आसमान में घुसकर सूरज को डुबो दिया था। इस पेड़ की जड़ें इतनी मजबूत थी की पूरी पाताल  लोक तक पहुँच चुकी थी। 
पेड़ के जड़ोंने पुरे "जीवन" को सोख कर जमीं को नीरस बना दिया था। "जीवन" के बिना लोग  मर रहें थे।  दूर से मीडिया के भालू की पुकार और विपक्षी बादलों गड़गडहाट सुनाई दे रही थी। आम जुगनू की चमक और कडकडहाट के साथ आन्दोलन की बिजली बिच बिच में चमक रही थी।

                राजा विक्रम  शव को लेकर चल रहा था। शव के अंदर का बेताल  बोलने लगा। राजा मैं आज तुझे एक ऐसी कहानी सुनाऊंगा, कहानी के अंतमें कुछ सवाल पूछूंगा,अगर तू इसका उत्तर नहीं दे सका तो तेरे सर के सौ टुकड़े हो जायंगे। ऐसा कहकर कहानी सुनाने लगा।

               दुनिया में एक भारत नाम का देश हैं । उस देश में एक मोहन नाम के महामंत्री रहते थे , जो की ईमानदारी का कवच पहनकर  वो अपना कामकाज संभालते थे। गाँधी के विचार धारा पर चलने वालें, बुरा मत बोल, बुरा मत सुन और बुरा मत देख। इसी विचार धारा को  बड़ी ही कट्टरता से पालन करते  थे । इस देश में जो भी कुछ होता था, वह बुराही होता हैं, यह सोच कर,वो कुछ भी देख नहीं पाते। ठीक इसी तरह लोग चिल्ला-चिल्लाकर अपनी यातनाएं कहते थे,महामंत्री जो थे की, गाँधी के बन्दरों के प्रति बहुत ही संवेदनशील थे, इस लियें वो किसी इंसान  की बातों को इतनी अहमियत देना उचित नहीं समझते थे। दिन रात  यही सोचकर काम किया करते थे।

             देश में पडोसी देश के लोग घुस कर आतंक फैलाते रहते थे, फिर भी उन्ही के मुह से शब्द बहार नहीं निकलता।  उनका ईमानदारी का कवच भी कोयले की आग में जलने लगा था। जिस जिस जगह पर कवच जल चुका था, वहाँ से बेईमानी  की झलक दिखाई पड़ रही थी। यह सब इस लियें हो रहा था की वह कुछ भी कहने से पहले अपनी बॉस के सलाह लिया करते थे। अब सवाल यह हैं की उनकी बॉस उन्हें जो कहने को कहती वही वो कहते, जो देखने को कहती वही वो देखते, और जो सुनने को कहती वही वो सुनते। बहुतसे मंत्रीगन जो उनके अधीन काम करते थे, वो कोई भी काम देशहित में नहीं करतें थे। सिर्फ और सिर्फ घोटालें कर के देश को लुट रहे थे। देश के लोगों के सामने एक बड़ा ही रहस्य खुलता हैं, लोग यह देख कर चिंतित होते हैं। वो घोटाला कुछ इस तरह था।  कोयला घोटाला 1, 86, 000 करोड़  रुपए का हैं, जो की अब तक का सबसे बड़ा घोटाला उभरकर सामने  आया था । इसके पहले जो 2 जी का घोटाला हुआ, घोटालें की राशी थी 1,76,000 करोड़ रूपए।

        बेताल थोड़ी देर रुका और राजा से कहा देख अब मैं महामंत्री मोहन की लाइव बातचीत सुनाता हूँ। यह कहकर वेताल ने विक्रम के कान में माइक्रोफोन रख दिया।

      अब विपक्ष ने हमले तेज़ कर दिए थे इस लिए महामंत्री अपनी बॉस को फोन करके पूछता हैं।

 "मैडम मैं क्या करूँ ? क्या मैं इस पद को छोड़ दूँ? मीडिया को क्या जवाब दूँ ? लोगों को कैसे मुह दिखाऊं?"

उधर फोन से मैडम कहती हैं। "देखो तुम्हें डरने की कोई जरुरत नही, तुम वही गाँधी के बंदरोवाले गुण का उपयोग करों?"

"कौनसे गाँधी मैडम" महामंत्री  ने पूछा।

"वही जो सबका बाप हैं जिसने कहा बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत बोलो" मैडम ने कहा।

"लकिन एक समस्या हैं" महामंत्री ने पूछा।

"अब क्या हैं ?" मैडम चिल्लाते हुए बोली।

"उधर तीन  बन्दर थे एक ने कान, दुसरेने आँख, और तीसरे ने मुह बंद किया था, मैं अकेला यह सब कैसे कर पाउँगा? अब मैं तिन गाँधी कहांसे ला पाउँगा "?महामंत्री ने कहा।

"पागल तीन  गाँधी नहीं, तीन बन्दर बोल, क्या गाँधी और बन्दर में कुछ भी अंतर नहीं हैं ? और सुनो जहाँ  जो बंद करना हैं वही करना सब एक साथ बंद करने की जरुरत नहीं" मैडम ने कहा।

"सॉरी मैडम बात यह हैं की हमेशा तीन  गाँधी नजर आतें हैं, इस लिए थोड़ी गलती हो गयी।" महामंत्री  ने कहा।

"ठीक हैं अब समझ में आई ना बात।" 

 "नहीं मैडम एक और बात हैं।

 "क्या हैं ?"

"गांधीजी ने बन्दरों का चुनाव क्यूँ किया होगा? इंसान को भी चुन सकते थे ना।"

"पता नहीं मैं फोन रखती हूँ "

"ठीक हैं मैडम" कहकर महामंत्री  ने फोन रख  दिया। 

      यह सब सुनाने के बाद बेताल ने राजा से कहा 'अब बता की इतना सब कुछ होने के बाद भी क्या इमानदार कहलाने वाले महामंत्री को इस पद पर रहना चाहियें या नहीं ? या मैडम के दिए हुए रास्ते पर चलना चाहियें ?        

      राजा विक्रम कहने लगा "मेरे हिसाब से उस महामंत्री को पद छोड़ने की कोई  आवशकता नहीं। क्यूँ की यह पब्लिक हैं, थोड़े दिनों बाद सब कुछ भूल जाती हैं। अब कॉमनवेल्थ और 2 जी घोटालें लोग भूलने लगे हैं। ठीक इसी तरह यह लोग कोयला घोटाला भी भूल जायेगे। मीडिया भी कितने दिन तक इसी खबर को भुनाएगा, और विपक्ष कितने दिनों तक विरोध का नाटक करेगा। कुछ दिन की तो बात हैं।"     

      वेताल कहने लगा "बात तो सही हैं, लेकिन जो राजा विकास और न्याय की बाते करता था, उस राजा से मुझे यह अपेक्षा नहीं थी। क्या राजा तू  भी इस मैडम के बातों से सहमत होकर इस देश के लोगों को धोका देने लगा हैं। बेताल यह वाणी सुनकर राजा जोर जोर से हँसने लगा।    

     और थोड़ी देर बाद राजा ने बेताल को समझाया की मैं वो राजा विक्रम नहीं हूँ, बल्कि मैं तो 2 जी वाला राजा हूँ।  यह सुनते ही शव उड़ने लगा और फिर उसी राजा को जोर से पकड कर राजा के साथ साथ उड़कर पेड़ पर जाकर लटक गया।


Tuesday, August 14, 2012

तो दे दो



दिल की  'फोनरिंग' सुनना हैं,
प्यार का 'मिस कॉल' तो दे दो

दिल  के गीत को गुनगुनाना हैं,
गीत गाने का माहौल तो दे दो 

दिल  से दिल के अंदर जाना हैं,
अब दिल के द्वार खोल तो दे दो 

मुझे तुमसे प्यार जताना हैं,
जज्बातों को मोल तो दे दो 

दिल से  दिल का सौदा करना हैं,
प्यार के तुला से तोल तो दे दो 

एक 'रन'से दिल को जितना हैं,
प्यार का एक 'नोबॉल' तो दे दो


प्यार के  'फेसबुक' पे लिखना हैं,
दिल की एक 'वॉल' तो दे दो

प्यार के खेल में नायक  बनना हैं,
जीवनपट में  एक 'रोल' तो दे दो

तेरे ही दिल में घर बसाना है,
दो बेड़रूम एक 'हॉल' तो दे दो

प्यार के 'कार' को  चलाना हैं,
राहदारी का 'टोल' तो दे दो

दिल पे तेराही नाम लिखना हैं,
दिल के टुकड़े का 'स्क्रोल' तो दे दो

दिल के शो केस में सजाना हैं,
तस्वीर की एक 'डॉल' तो दे दो

तुम्हे याद कर मेले में खोना हैं,
मेले का एक 'शोल' तो दे दो

मन में झांककर देखना हैं,
दिल के खिड़की में 'होल' तो दे दो

'फेसबुक' पे हालेंदिल  बयान हैं,
पसंदी नहीं सिर्फ 'लोंल' तो दे दो

अब टूटे हुए दिल को जोड़ना हैं,
आखिर में  'फेविकोल' तो दे दो

(other language words used -Phone ring, miss call,  run,no ball, hall, car, role,wall, Facebook, role, scroll, doll, shoal,hole,lol and  fevicol)

Wednesday, August 8, 2012

आज़ादी का अहसास




उत्सव मनातें हैं आज़ादी  का  अहसास लियें
जीते हैं सिर्फ करमुक्त एक एक साँस लियें

हम भी आज़ाद हैं यही दुनिया को बतातें हैं 
आजादी  की तड़प लियें, दिल को सतातें हैं 
महंगाई की गुलामी में जी रहें हैं लोग यहाँ,
भ्रष्टाचार मुक्त जीवन का  एक रास लियें
उत्सव मनातें हैं आज़ादी  का  अहसास लियें


कहते थे बुरे कामों का बुराही फल होता हैं 
लेकिन यहाँ तो बुरा नेताही सफल होता हैं 
आज़ादी किसे मिली पता ही नहीं होता, 
आम लोग जीते,जीने की जिंदा लाश लियें
उत्सव मनातें हैं आज़ादी का  अहसास लियें 

क्या इसी आजादी को हम लोकतंत्र कहतें हैं 
जहां नेता इसेही खाने का एक मंत्र कहते हैं
भ्रष्टाचार से आज़ादी की लड़ाई अभी बाकि  हैं
जीते हैं नयी आज़ादी की एक आस लियें
उत्सव मनातें हैं आज़ादी का  अहसास लियें

अब हमें अमर देशभक्तों के  नाम याद रहें
चल बसें वो देकर जान, वो काम याद रहें
आजाद, भगत सिंग,राजगुरु, सुखदेव सारें,
मर मिटे थे,  आज़ादी का एक  ताश लियें
उत्सव मनातें हैं आजादी का  अहसास लियें

अमर होकर छोड़ गएँ वो हम सबका साथ
देश की चाबी देकर इन भ्रष्ट नेतावों के "हाथ"
चलो, अब हमें भी  करना हैं एक नेक  काम,
अब नयें अहसास की, एक नयी तलाश लियें
उत्सव मनातें हैं आज़ादी का  अहसास लियें

Sunday, July 29, 2012

धर्म-निरपेक्ष हैं


हम धर्म-निरपेक्ष हैं इस लियें सब सहते हैं
हम सब एक हैं, एक हैं, यही तो कहते हैं

बुरा ना देख, इस लिये आँखे बंद कर गएँ
देख नही सकते, वो जख्म बुलंद कर गएँ
अब आदत हो गई हैं यह दर्द सहने की,
कुछ भी करें, खून के आसूं तो बहते हैं

बुरा ना सुन, इस लियें कान ढक दियें
चीखे भी बंद हुई, अब दर्द भी पी लियें
अब अपनों का दर्द भी सुन नहीं सकते,
अपने ही देश में परदेशी की तरह रहते हैं 

बुरा न बोल, इस लियें बंद की हम जुबां 

बोल ना सकें, खुदबा खुद हो रहे हम कुर्बां 
जाँ हाथ लियें, बापू के क़दमों पे जाना  हैं,
फिर भी कहते की हम बापू के चहेतें हैं 

आज याद आते हैं, जो सूली पर चढ़ गएँ 

हमें इस धर्म-निरपेक्ष के हवालें छोड़ गएँ
इसी लियें तो वो इन्हें  ज़िंदा काट देते हैं,
हर जगह, जख्म लियें यह  करहतें हैं 

उतार दो यह  धर्म-निरपेक्ष का मायाजाल
जो धर्म को मानते,उनकी ही हैं एक चाल 
माध्यम हो या सरकार सबकी एक ही जात
एक धर्म कंधे पे, दुसरें को कुचलते रहते हैं

छाती पीटकर खुदको धर्म-निरपेक्ष कहलातें हैं
हम सब एक हैं, यही कहकर सबको बहलातें हैं
अब सड चुकी हैं यह धर्म-निरपेक्ष की दीवार,
निर्बल इटें, इमारतें यहाँ खुदबा खुद ढहते हैं  

अंधे, गूंगे और बहिरें बन बैठकर मरते हैं 

धर्म-निरपेक्ष कहकर वही पक्षपात करते हैं 
वो भूल नहीं सकते, हम क्यूँ भूलें वर्ण को,
चलो आवाज दो, आपसे यहीं  तो कहतें हैं   

Monday, July 16, 2012

बेटे का मोह


बेटा बेटी में भेद नहीं,  कर तू समांतर प्यार
लेकिन उसे लगता, बेटेसे सुख मिलेगा अपार

लगता हैं बेटे की जान में बसी उसकी जान
सबको बताता हैं, अब मिल गयी हैं पहचान
बेटी तो परधन, अब बेटा लगता सदाबहार
दिन या रात बेटे की तारीफ करता बार बार

दिन रात मेहनत करता, बेटे को पढाता   
काबिल बनाकर उसे आसमाँ  पर चढ़ाता  
सोचा था बेटा बड़ा होकर, लायेगा बहार
एक दिन चुकाएगा उसके प्यार का उधार

समय का चक्र बहुत ही तेजी से चलता 
कभी ख़ुशी तो कभी गम, जीवन ढलता
समय की होगी जीत,हारेगा उसका विचार
एक दिन धकेल देगा, जीवन को उस पार



वक्त के साथ साथ  बेटा और बेटी बड़ें हो गएँ
जब दोनोंहीं अब खुद के पैर पर खड़े हो गएँ
बेटी शादी के बाद, छोड़ दी सगे बाप का द्वार
माँ बाप को छोड़कर, घर को किया लाचार


बेटी तो पति के घर को अपना घर  मान ली
बेटेने शहरी हो कर वहीँ बसने की ठान ली
माँ बाप बेटे के चाह में, यादोँ की लेकर मार
पहले बेटें का, फोन का हैं अब इन्तजार

बीमार बाप बेटे की राह में जिंदगी जीता रहा
बेटे के याद में जहर जिन्दगी का पीता  रहा
बेटी दौड़ी चली आई थी, दिल पर लेकर भार
जो जी जान से करती थी माँ बाप से प्यार

बाप मर गया, जब बेटी  ने बेटे को बुलाया
व्यस्त था, अंतिम संस्कार को नहीं आ पाया
बाप के प्यार में, बेटी ने मचाया हाहाकार
चिता को अग्नि देकर, प्यार का किया इजहार

अब माँ सोच में पड़ी थी होकर मन में मग्न 
बेटे के लिएँ दूसरी को पेट में किया था भग्न
सोचती रही भगवान सब कुछ तेरा ही करार
शायद बेटा नहीं, बेटीसे करवाया दाहसंस्कार

अजब हैं यह दुनिया, जीने की एक रीत हैं
जिसे हम नहीं चाहते, वहीँ तो बसी प्रीत हैं
चाह की मत सुन, आस से मिलती हैं हार
फल की चाह में प्यार को मत बना मक्कार

Sunday, July 8, 2012

वक्त



जिंदगी जी रहा हूँ, लेकर एक  यादों का संसार 
पता नहीं कब थमेगी यह जिंदगी  की रफ्तार 

आज भी याद आते हैं वो बचपन के दिन
मैं पल भर भी नहीं रहता था तुम बिन

तुम्हरा वो हँसना , बात बात पर रोना
शाम में  स्कूल से निकलकर जुदा होना

एक ही बक्से में का खाना साथ में खाना
बोतल का पानी पिने के बाद छिडकाना

खेल खेल में दिन पर दिन बीत गएँ
यादों के साथ  हम समयसे जीत गएँ

फिर घूम फिरकर एक वक्त ऐसा आया
तकदीर भी मुझे उसी कॉलेज में ले आया

लेकिन तुमने कला में दाखिला लिया
मैं विज्ञान में तुब बिन किस तरह  जिया

मैं चाहता रहा, ब्लेक बोर्ड  में देखता रहा
पढ़ना था,  लेकीन प्यार ही सीखता रहा

अब जिन्दगी की नयी  किताब खुल गयी
मैं याद करता रहा, तुम मुझे भूल गयी

जब मेरे दोस्त ने, साथी के शादी में बुलाया
वहाँ तुम्हे किसी और की होते हुए दिखाया 

आज भी याद हैं, तुम्हारा पति जो होने वाला
शायद  उसके बाप का निकला था दिवाला

दहेज़ की मांग से पूरा लग्न पंड़प दहला था
लग्न मंडप से बिन ब्याहे, बेटे को ले चला था

उस वक्त मैंने  तुम्हारे पिता से  बात किया
और तुम्हे जीवनसाथी बनाने  में  साथ दिया

अब हमें ना किसी का डरख़ुशी से जी रहे थे
प्यार ही प्यार मेंजीवन का जहर पी रहे थे

पता नहीं था कुछ दिन इस तरह बीत गएँ
बेटे से प्यार में, लगता था जीवन जीत गएँ

वक्त युहीं गुजरता गया, बेटा भी बड़ा हो गया 
देखते देखते वह अपने पैरों पे खड़ा  हो गया

कुछ और दिन बीत गएँ, बेटा हमें छोड़ चला
विदेशी जीवन के लियें, हमारा दिल तोड़ चला

अब कभी फोन तो कभी चाट करता था
वो भी किसी पे दिल लगाकर मरता था

एक दिन जब उसने फोनसे  समाचार सुनाया
जब  वह एक विदेशी लड़की से ब्याह रचाया

वक्त ने अब अपनी रफ्तार की थी तेज
वक्त हमें फ़साने में बन चुका था तरबेज

याद हैं, तुम्हारी बेटे को देखने की चाहत
नसीब में नहीं था, ना मिली इसकी राहत

मैं बहुत ही रोया था, जब तुम मुझे विदा हुयी
अब तुम कब्र में सो गयी, मुझसे जुदा हुयी

इसी कब्र पर, मैं दिन रात तुम्हे याद करता हूँ
तुम्हे मिलने के लियें, जालिम वक्त से डरता हूँ

मैं भी आनेवाला हूँ, मेरा इंतजार कर लेना
यादों में जीकर, मुझे भी कब्र में भर लेना

वक्त की करवट ने रोक दी जीने की रफ़्तार
सोया कब्र में, अब नही किसीका इन्तजार 


Monday, June 11, 2012

बाकी है.....



जमीं तो बिक चुकीं , अब आसमान  बाकी  है।
सपने  तो बिक चुकें, अब  अरमान  बाकी  हैं।

यहाँ इंसानियत की कद्र नहीं, आदमी चलता हैं।
इंसानियत तो बिक चुकी, अब इंसान बाकी हैं।।

आप  सरकार नहीं,  सिर्फ गाड़ी चला रहें हैं।
जुर्माना तो बिक चुका,  अब चालान बाकी  हैं।।

ईमान  का वास्ता देकर, जीतते चलें आये हैं।
नाम तो बिक चुका, अब ईमान बाकी हैं।।

झूठा  सन्मान लिए, सर उठाकर चलते हैं।
सन्मान तो बिक चुका, अब अपमान बाकी हैं।।

हथियार बिना झगड़े तो हमने देख लिए  हैं।
हथियार तो बिक चुके, अब घमासान बाकी हैं।।

तूफान की गुंजाईश नहीं, मौसम तो ठिक हैं।
हवामान तो  बिक चुका, अब तूफान बाकी है।।

ज़िंदा लाश का सामान लिए हम यहाँ जीते हैं।
ताबूत  तो बिक चुके, अब सामान बाकी  हैं।।

जीताने की  एक आस लिए, फिर भी जी रहे हैं।
मत तो बिक चुकें, अब मतदान बाकी  हैं।।

चुनाव जीतने की चाह में,  कुछ भी करतें हैं।
जित तो बिक चुकी , अब अनुमान बाकी  हैं।।

भीड़ के शक्ल लिए, जीत का जश्न मनाते हैं ।
भीड़ तो बिक चुकीं, अब सुनसान बाकी  हैं।।

वासना के जंगल में, इज्जत भी बिक जाती हैं।
शरीर तो बिक चुका, अब विचारान बाकी  हैं।।

बड़ी ही  मेहनत से फुल पौधे खिला दिए हैं।
खुशबू तो बिक चुकी, अब  फूलदान बाकी हैं।।

तीर कमान हाथ में लिए निशाना लगातें  हैं।
तीरेंनिशाँ  तो बिक चुका, अब कमान बाकी हैं।।

समागम तो बिक चुकें, अब समाधान बाकी  हैं।
मंदिर तो बिक चुके, अब भगवान बाकी  हैं।




Tuesday, June 5, 2012

टीवी,बीवी और....



आज रवीवार यानि छुट्टी का दिन पुरे सप्ताह की थकान दूर करने का दिन. मैने जब टीवी ऑन किया और देखा की सभी न्यूज़ चैनल के  केंद्रबिंदु पर एक ही खबर छायी हुयी थी. रामदेव और अन्ना ने साजा अभियान में एक दिन का  अनशन जो की भ्रष्टाचार  के खिलाफ खोला था. मैं टीवी देखने में मग्न था. जैसा की उस आन्दोलन का एक हिस्सा हूँ.  उतने में बीवी ने आवाज़ दी.
"सुनो! सुबह सुबह टीवी देखते क्या बैठे हो? घर में पानी की एक बूंद नहीं हैं. पिछले पन्द्रह दिन से सीएमसी के नल में पानी नहीं आया और संप पूरा  सुख गया है. जाकर उस पानी वाले से पूछकर एक टेंकर पानी मंगवाकर संप भरवा लेना."
 जब मैं अपनी जगह से उठा नहीं तो हमारी धर्मपत्नी ने जबरदस्ती से मेरे हाथ में से रिमोट छीन लिया और चैनेल बदलते हुए कहा.
"भ्रष्टाचार मिटाने चले, यहाँ घर में पानी का एक बूंद नहीं हैं. चलो कुछ तो करो."
फिर मैं उठा, बैठ कर भी क्या करता, क्यूँ की अब रिमोट मेरी धर्मपत्नी के हाथ में था. अब टीवी भी उसीके इशारे पर नाच रहा था.  मैं चल पड़ा "जीवन" की तलाश में यानि की पानी सप्लाय करने वाले के पास. चलते चलते मन ही मन मे मैं यही सोचने लगा कि मुझे अब पता चला की रामदेव और अन्ना ने शादी क्यूँ नहीं की. अब मेरा अनुमान सही साबित हो रहा था इस लिए रामदेव और अन्ना इतने मग्न होकर अनशन करते हैं. इस"जीवन"से कोसों दूर थे. थोड़ी देर बाद मैं घर लौट आया तो बीवी ने चैनल चेंज करते हुए टीवी पर राज कर रही थी. टीवी देखते देखतेही उसने पूछा.
"क्या कहा पानी वाले ने ?"
"अब उसके पास भी पानी का स्टॉक नहीं हैं. हमें और दो दिन का इन्तजार करना पड़ेगा."
माथे पर तनाव लेकर उसने कहा 
"हे भगवान अब क्या करें? अन्ना और रामदेव ये भ्रष्टाचार का मुद्दा लेकर बैठे हैं. पानी का मुद्दा लेकर अनशन करते तो शायद ही कोई राहत तो मिल गई होती." 
मुझे रहा नहीं गया और में बोल पड़ा.
"क्या बात करती हों, उन्हें पानी के बारेंमें क्या मालूम, वो अभी तक कुँवारे  हैं." 
बीवी ने रिमोट मेरे हाथ में सौंप कर किचन में चली गयी। मैंने रिमोट हाथ में लेकर एक हल्किसी मुस्कराहट लिए टीवी ऑन किया और  का भ्रष्टाचार आन्दोलन देखने लगा. बीवी ने फिर से आवाज़ दी.
"सुनो टीवी क्या देख रहें हो?"  ऐसा कहतेही बिजली चली गयी और टीवी बंद हो गया. उसी के साथ साथ अन्ना और रामदेव का अनशन का लाइव कवरेज भी खत्म हुआ. जब टीवी बंद हुआ और दिमाग चलने लगा. मैं सोचने लगा क्या अन्ना और रामदेव का आन्दोलन भी इस बिजली की तरह तो नहीं जो आता और जाता हैं. इस आन्दोलन के बिच जो भी हलचल होती हैं, वही टीवी चैनल  हैं. लेकिन अभी तक यह पता नहीं चला की इसका रिमोट किसके हाथ में हैं. उतने में बीवी ने फिर आवाज़ दी.
"बिज़ली का बिल आया हैं."
"कितना आया हैं ?"
"दो सौ रुपये ज्यादा हैं"
"बिजली तो रहती ही नहीं फिर दो सौ ज्यादा क्यूँ? "
"जाकर पूछों उस बिजली वालोंको मुझे क्या पता."
उतने में बिजली आ गयी और टीवी फिर से चालू हो गया. बाहर सब्जी वाले का ठेला खडा था. बीवी  उसके पाससे सब्जिया लेकर आती हैं.
"सुनो ज़रा पांचसौ रुपये दे देना"
"क्यों महीने का बजट तो दिया हैं ना? फिर से पांचसौ रुपए?"
"हाँ मैं पैसे खा रही हूँ. देखते नहीं हो सब्जी की कीमते कितनी बढ़ी हैं. आप जो भी बजट दे रहे हो उसमें घर का खर्चा चलाना बहुत ही मुश्किल हैं.कभी कभी सब्जीयाँ भी लाया करो, फिर पता चलेगा की सब्जी का भाव क्या होता हैं."
मैंने बिना कुछ कहे है पांचसौ का नोट बीवी के हाथ में थमा दिया.
"महंगाई इतनी बढ़ गयी हैं की पता नहीं अब क्या होगा?" फिर पत्नी अपने पल्लूसे पसीना पौछ्तें  हुए बोली.  
"और एक बात इस सालसे सोनू की स्कूल की फीस बढ गयी हैं."
"हे राम! मुझे अब पता चला की रामदेव और अन्ना ने शादी क्यूँ नहीं की?"
"बस करो यह शादी का इससे क्या लेना देना हैं?"
"यह तुम नहीं समझोगी ज़रा चाय बना देना."
 
     फिर से बिजली चली गयी और उसीके साथ रामदेव और अन्ना टीवी स्क्रीन से गायब हुए. क्या भ्रष्टाचार के इस आन्दोलन से आम आदमी को कुछ मिलेगा? क्या इससे समाज में परिवर्तन आयेगा? क्या हम हमारी छोटी छोटी जरूरतें पूरा कर सकेंगे? जैसा की पानी, बिजली और सड़क आदी. इसके सिवा समाज एक वर्ग ऐसा हैं की जिन्हें दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती. अब सोचने वाली बात यह हैं की जिसे दो वक्त की रोटी नहीं मिलती वो इस आन्दोलन के बारेमें क्यूँ सोचेगा? उसे तो सिर्फ रोटी की तलाश हैं. इस रोटी के चक्कर में उसे इस आन्दोलन के बारे में सोचने का वक्त ही नही मिलता. ठीक इसी तरह मिडल क्लास के जो लोग हैं उन्हें तो उनके घर संसार की समस्या से फुर्सत कहाँ मिलती? अब सोचने वाली बात यह हैं की क्या समाज का यह हिस्सा भी पूरी तरह इस मुहीम का समर्थन दे पायेगा?  नहीं क्यूँ की इसमें से कुछ लोग इस मुहीम से जुड़ तो जाते हैं तो सिर्फ इसलियें की चलो आज रविवार हैं .इस लिए कुछ लोग चले आतें हैं.  अब सवाल हैं की अप्पर क्लास के लोगों का क्या? उन्हें तो कुछ पडा ही नहीं उन्हें इस आन्दोलनसे क्या लेना देना उन्ही के पास सब कुछ हैं. 
  अब हमें आम आदमी के बारें में सोचना हैं. यह आम आदमी हैं कहाँ? कहांसे आता हैं? समाज के कौनसे क्लास से आता हैं? क्या वह इस आन्दोलन में अपने आपको झुका देगा?                
   

      फिर से बिजली आ गई और फिर टीवी ऑन हुआ और फिर से वही लाइव शो दिखने लगा. लेकिन मैं यहाँ एक बात जरुर कहना चाहता हूँ की जो भी आन्दोलन हो उसका रिज़ल्ट जरुर आना चाहियें जो की हम आस लगाएं बैठें हैं. अगर यह आन्दोलन बेनतीजा चलता रहा तो एक दिन ऐसा आयेगा की आन्दोलन के नामसे लोगों को नफरत होने लगेगी. इस लियें यह जरुरी हैं की इसका कुछ नतीजा निकलें.

     बिजली के बिना टीवी नहीं चलता और रिमोट के बिना टीवी नहीं चलता. बीवी के बिना मैं नहीं चलता. अब सवाल यह हैं की रिमोट किसके हाथ में हैं. वो क्या देखना चाहता हैं? अब हमें यह सोचना हैं की हम टीवी में क्या देखना चाहते हैं?  जो हमारी आने वाली पीढ़ी का सुखद भविष्य या वही जिंदगी जो आप और हम जी रहे हैं. सोचो रिमोट आपके हाथ में हैं सिर्फ वक्त का इन्तजार करों और सही जगह पर सही चैनेल देखना हैं...... 

Sunday, September 25, 2011

"जादू की छड़ी"





(इस कहानी में दिए गए  सभी नाम और पात्र काल्पनिक हैं)
दिन भर की थकान लिए मोहन बिस्तर पर जा गिरा और मन ही मन खुश था की जादू की छड़ी के शब्द का उपयोग करके सबके मुह पे ताला लगा दिया यह सोचते सोचते मोहन की आंख लग गयी.  अचानक उसी  कमरे में बिजली जैसी  रौशनी चमककर  एक  आवाज़  आती  है. 



“जागो   वत्स  जागो.” 
"कौन  हैं !  कौन  हैं!"  मोहन  ने   आँखे  पूछते  हुए  कहा.
"मैं  ईश्वर."
"कौन  ईश्वर कौनसे पार्टीसे  आये हो ?"
"मैं  साक्षात  प्रभु  हूँ  यानि  भगवान."
"मेरा  तो  विश्वास  ही   नहीं  हो  रहा  हैं."
"वत्स मुझे  पता  हैं की  तुम्हें  क्या  चाहियें."
"क्या   भगवान?"
"जादू  की छड़ी." 
"आप को  कैसे  पता?"
"मैं सब  जानता  हूँ  मोहन."

"मुझे मालूम  हैं की तू  आजकल  बहुत  परेशान   रहता  हैं. रात  में ठीक  तरह  से  सो  नहीं पता. तेरे  साथी  और विरोधी  सभी  तेरा  उपयोग  कर  ले  रहे  हैं."


उतने में भगवान कान में रखी एक तीली निकालकर  हाथ में लेते  हैं उसे अपनी हथेली में रखकर मंत्रोचार करने  लगते हैं.

"इली मिली तीली बन जा छड़ी
होकर बड़ी बन जा जादू की छड़ी 
सबक सिखा सबको देखने पड़े घडी 
इली मिली तीली बन जा छड़ी "

देखते देखते ही वो तीली एक पीले रंग की छड़ी बन गई.मोहन यह  सब देखकर दंग रह गया और सोचमें पड़ गया. उसे रहा नहीं गया भगवानसे पूछ ही लिया.

"भगवन इसे अगर फिर से छोटी करना हैं तो ?"
"वत्स अगर इसे छोटा करना हैं तो यह मंत्र याद रखना इडी पीडी छड़ी बन जा तीली.अगर फिरसे उसे बड़ा करना चाहते तो इस मंत्र का प्रयोग करना इली मिली तीली बन जा छड़ी ."
"लेकिन भगवन इसका मैं क्या करू?"
"इससे तुम भ्रष्ठाचार और आतंकवाद पर काबू पा  सकते हो लेकिन याद रहे इसे पहले एक साल तक  एक ही काम के लिए इस्तमाल कर सकते हैं.जैसा की भ्रष्ठाचार बाद में इसका उपयोग आतंकवाद कम करने के लिए कर  सकते हैं.अब तुम्हे यह बताना हैं, तुम्हारी सबसे पहली प्राथमिकता क्या हैं और क्यूँ ?"
"मैं  सबसे  पहले भ्रष्ठाचार खत्म करना चाहता हूँ."
"ठीक हैं! मैं तुम्हे इसका उपयोग करने हेतु मार्गदर्शन करता हूँ."
"नहीं भगवान दूरदर्शन को मत बुलावो,मीडिया को पता चल गया तो वो बात का बतंगड़ बना देंगे."
"अरे मोहन मैं दूरदर्शन नहीं बल्कि मार्गदर्शन यानि की इस छड़ी का उपयोग कैसा और कब करे यह बताने जा रहा हूँ."  
"मुझे लगा आप दूरदर्शन के बारे में कह रहे हैं. लेकिन एक बात  सही हैं की दूरदर्शन तो हमाराही तो  चैनल हैं. "ठीक हैं आप बता दीजियेगा".   
"नियम एक -इस जादू की छड़ी का उपयोग करने  वाला इमानदार होना चाहियें और छड़ी  का  उपयोग  लोक कल्याण हेतु होना चाहिएँ."      
"लेकिन मैं तो  उतना इमानदार नहीं हूँ."
"तुम्हारा यह कहना ही एक ईमानदारी हैं इस लिए आप इस  जादू की छड़ी का बेहिचक इस्तमाल कर सकते हैं'
"ठीक हैं आप कहते तो  मैं इसका उपयोग लोक कल्याण के लिए जरुर करूँगा."
"अब ध्यान से सुनो इसका दूसरा नियम, आप इस  छड़ी का उपयोग जिस भ्रष्टाचारी पे करेंगे वह पूरी तरह कंगाल हो जाएगा और  उसका पूरा धन सरकारी तिजोरी में जमा हो जायेगा लेकिन एक बात का स्मरण रहे की वो भ्रष्ट हो. "
"लेकिन भगवन मुझे कैसे पता चलेगा की फलां आदमी भ्रष्ट हैं ?"
"वत्स इस जादू की छड़ी में एक ३.५ मी मी  का जाक दिया हैं इसमें मै मैक्रो फोन लगाकर वह छड़ी जीस भी इंसान पर घुमायेगा वह छड़ी बोल उठेगी की वो भ्रष्टाचारी हैं या नहीं."
"क्या मैक्रोफोन के अलावा दुसरा कोई रास्ता नहीं हैं?"
"और एक रास्ता हैं इस छड़ी को चार्ज करना पडेगा. इसके लिए कौनसा भी चार्जर चलेगा. जब भी यह छड़ी किसी भी आदमी पर घुमायेगा अगर छड़ी में से लाल रौशनी आएगी तो समझ लेना के वह व्यक्ति भ्रष्ट है. अगर  हरी बत्ती जलती हैं तो समझ लेना की वो इमानदार हैं. अगर वह आदमी भ्रष्ट निकलता हैं तो उसकी चल संपति जहां कही भी हो, किसके पास भी हो, देश में हो या विदेश में हो वो  सारी चल सम्पति  सरकारी खजाने में जमा होगी. लेकिन एक  और बात  उसकी अचल संपति जो पाप से बनायी गई हैं वह धीरे धीरे एक साल के अन्दर हाथ से चली जाएगी. किसके हाथ में जाएगी यह बताना मुश्किल हैं. लेकिन उसके अचल सम्पति का कुछ हिस्सा लोककार्य में जरुर लगेगा."
"यह तरीका ठीक लगता हैं".
"और आखरी शर्त इस छड़ी का उपयोग ३ महीने में एक बार तो जरुर करना चाहियं और हर तिन महीने बाद मैं खुद आकर परिक्षण करूँगा की इस छड़ी का उपयोग क्यूँ और कैसे हो रहा हैं. एक बात और तिन महीने तक इसका उपयोग नहीं हुआ तो यह छड़ी अपने आप गायब भी हो सकती हैं. क्या तुम्हे मेरी शर्तें मंजूर हैं?"
"हाँ भगवान् मुझे आपके शर्तें मंजूर हैं"
"इस  छड़ी से आप कौनसा भी रूप धारण कर सकते हैं.

              भगवान वह जादू की छड़ी मोहन के हाथ में देकर चले जाते हैं.मोहन ख़ुशी से उस छड़ी देखता ही रहता हैं. "इडी पीडी छड़ी बन जा तीली"  इस मंत्रोचार से उस छड़ी को तीली बनाकर जेब में रख लेता हैं. फिर से एक बार  जेब से तीली निकलकर फिर से मंत्रोच्चार करता हैं "इली मिली तीली बन जा छड़ी " फिर वह तीली छड़ी का रूप ले लेती हैं. यही प्रयोग कई बार करने के बाद उस  छड़ी  को चार्ज करने लगाता हैं. बेडरूम में फिरसे अँधेरा छा जाता हैं.मोहन बिस्तर पे लेटना ही चाहता था उतने में टेलिफ़ोन की घंटी बजती हैं. मोहन हडबडाकर कोने में रखा हुआ फोन उठाता हैं.

"हेलो कौन मैं मोहन."
"मोहन मैं पिछले आधे घंटे से तुम्हारा मोबाइल ट्राय कर रही हूँ क्या कर रहे हो?" दूसरी और से आवाज़ आती हैं 
"मैडम  जी बात यह हैं की फ़ोन की बैटरी खत्म हो गई हैं"
"मैंने  तुम्हे इस लिए फोन किया हैं की, आपने अपने भाषण में ऐसा क्यूँ कहा की हमारे पास कोई जादू की छड़ी नहीं हैं की जिससे  हम भ्रष्ठाचार कम कर सके."
"आपको कैसे  पता की मेरे पास जादू की छड़ी हैं ?"
"मैं तुम्हारे भाषण के बारे में बात कर रही हूँ जादू की छड़ी के बारेमें नहीं. "
"मैडम अब आपको चिंता करने की जरुरत  नहीं हैं. क्यूँ की अब मेरे पास जादू की  छड़ी आ  गयी हैं"
"क्या बक रहे हो ? नशे  में हो क्या ? अब मैं तुम्हे सुबह मिलूंगी अब मैं फोन रखती हूँ "

              दुसरे दिन सुबह मोहन जादू की छड़ी लेकर मैडम के पास  जाकर मैडम को पूरी हालात से अवगत करवाते हैं.इसके बाद मैडम अपनी पार्टी के सभी अहम नेताओं को बुलाकर उस जादू की छड़ी के बारें में बता देती हैं और सभी को निवेदन करती हैं की अपना अपना फैसला सुनाएँ.

कपिल बोलने लगते हैं - "सबसे पहले हमें इस छड़ी का उपयोग किसी एक भ्रष्ट पे अजमाने के बाद ही मैं इसके बारे में कुछ बोल पाउँगा."
"चलो फिर पहले तुम्हे ही मौका देते हैं"  मोहन ने कहा.
"मोहन! यह तो अपने पक्ष के हैं"मैडम ने कहा.
"फिर हम इस छड़ी का प्रयोग किसपे कर सकते हैं." मोहन ने मैडम से पूछा.
"किसी  ऐसे  व्यक्ति को ढुन्ड़ो की साप भी मरे लाठी भी ना टूटे" कपिल ने कहा. 
"सबसे पहले सुरेश पर अजमा कर देख लेते हैं" मोहन ने कहा .
"कौन सुरेश"कपिल ने पूछा .
"वही जो तिहार जेल में हैं" कपिल  ने कहा.
"लेकिन तिहार में जाएगा कौन? अगर विपक्ष को इसकी भनक लग गयी तो." मोहन ने कहा.
"मैं जाउंगा तिहार जेल." कपिल ने कहा.
"लेकिन इस जादू की छड़ी को चलाने वाला इमानदार व्यक्ति होना चाहियं." मोहन ने कहा.
"फिर तो आप ही जा सकते हैं." कपिल ने हसते हुए कहा.
"ठीक हैं मैं ही जाकर अजमाता हूँ और मैं कल ही यह काम करूंगा, क्यूँ की मैं इस जादू के छड़ी से कौनसा भी रूप धारण कर सकता हूँ." मोहन ने कहा.

                इसी तरह सबकुछ तय हो गया फिर दुसरे दिन सुबह ही मोहन ने जेलर के  वेश में तिहार पहुँच गया. मोहन ने सुरेश के वार्ड में जाकर अपने जेब में से एक तीली निकलकर हाथ में पकड ली सुरेश कुछ कहने से पहले ही वह तीली एक छड़ी बनकर मोहन के हाथ में आयी और देखते देखते ही मोहन ने वह छड़ी सुरेश पे घुमाई और छड़ी में से लाल रौशनी आयी फिर से मोहन मंत्रोचारसे उस छड़ी को जेब में रखकर वहांसे चल दिए. सुरेश को पता ही नहीं चला की जेलर ऐसी हरक़त क्यूँ कर रहा हैं. मोहन को एक बात समझ  नहीं आ रही थी की सुरेश के बाजु में राजा क्यूँ खड़ा था.शायद इस लिए छड़ी में दो बार लाल रौशनी आयी होगी. 

              अब मोहन के चेहरे पे एक अजीब से ख़ुशी झलक रही थी. मन ही मन में यह सोच रहा था की जिंदगी में कुछ तो अच्छा काम किया हैं.  सोचते सोचते मैडम का घर कब आया इसका पता भी नहीं चला.  वहा सभी वरिष्ठ साथी उनका इन्तजार कर रहे थे.

"क्या कैसा रहा प्रयोग?" कपिल ने पूछा.
"ठीक रहा" यह कहते कहते मोहन मैडम के सामने बैठ गए.

            उतने में कपिल के फोन की घंटी बजी .कपिल बात करते करते बाहर  चले गए फोन से बातचीत होने के बाद पसीने से लाल होकर आ गए.

"क्या कपिलजी क्या हुआ? इतना पसीना क्यूँ ? क्या अन्ना ने फिर से अनशन की धमकी दी हैं?" तिवारी ने मुस्कुराते हुए कहा.
"नहीं स्वीज़ बैंक से फोन था हमारे खाते में सी बहुतसी जमा पूंजी  गायब हुयी हैं." कपिल ने पसीना पूछते हुए कहा.
"लेकिन यह कैसे संभव हैं? मैंने तो छड़ी का उपयोग सिर्फ सुरेश पे किया था." मोहन ने कहा.
"जो जमा पूंजी हमारे खाते से गायब हुयी हैं वह हम सुरेश के जरियेही  कमायी थी." कपिल ने कहा.

          थोड़ी ही देर में सभी के फोन की घंटिया एक साथ बजने लगे सब लोग अपना अपना फोन लिए बाहर  जा कर बात करने लगे. पता चला की सभी खातोंमें से बहुत सारी रक्कम गायब थी. सभी सदस्य समझ  चुके थे की यह छड़ी तो जनलोकपाल से वस्ताद निकली. 

"अब से इस छड़ी उपयोग नहीं होगा."  कपिल ने कहा.
"लेकिन मैं भगवान् से क्या कहू?" मोहन ने पूछा.
"आप भगवान्  कह दो की यह छड़ी का उपयोग करने के लिए अभी तक अप्रोवल नहीं मिला क्यूँ की यह छड़ी  विचाराधीन हैं. ऐसा कहते कहते तिन महीने का वक्त काट लो फिर यह छड़ी गायब हो जाएगी" तिवारी ने कहा."

      कुछ दिन और बीत गए. एक दिन मोहनने फोन करके  मैडम को बता देता हैं की जादू की छड़ी गायब हो गयी. यह बात सुनकर सभी सद्स्योनें राहत की साँस  ली. 

   "हमारे पास कोई ऐसी  जादू की छड़ी नहीं हैं की इस देश को  भ्रष्टाचार से  मुक्त कर सके" यह बात वो बार बार दोहराते हैं, और आज भी उन्होंने यही कहा   कैमरामन  "हरी" के साथ "भगवान" "सत्य लाइव से ..... "




Sunday, July 31, 2011

जीतें हैं हम यहाँ......


जीतें हैं हम यहाँ जीने की एक  आस लिए !
जिंदगी  में अटकी अपनी एक सास लिए !!
 

आज नहीं तो कल की एक सोच लिए !
ढुन्डते सुकून को एक नया अहसास लिए!!
 

घर से जब बाहर  निकलते रोज़ी के लिए !
जीते हैं जैसें की चलती फिरती लाश लिए !!

इंसानी जान की कीमत की कीमत लिए !
खेल लेते हैं वो अपना दावं एक ताश लिए !! 

उन्हें कुछ गम नहीं जीते हैं वो अपने लिए !
जुबान चलातें हैं कुछ पाने की तलाश लिए !!

हादसे रोक नहीं सकते, जाँ  की कीमत लिए !
मरते हैं इस हमलें में, जान अपने पास लिए !!

बेपरवाह होकर जुबान चलाते कुछ पाने के लिए !
खूनका कीचड़ उछालते हाथ में एक पाश लिए !!

बेशर्म  मांगने आते हैं हात में  कलश लिए !
फिर से कुर्सी पर बैठने का एक रास लिए !!

Thursday, June 9, 2011

जंतर मंतर.... छू मंतर ...



हमें कभी राजघाट तो  कभी  जंतर मंतर  
तो कभी रामलीला भी  रात को  छू मंतर 
कभी अन्ना के साथ
कभी बाबा के साथ
कभी उसी नेता के साथ 
तो कभी अपने साथ 
दगा करते हैं 
बड़ी बड़ी बाते करते हैं 
यह सोचते सोचते 
मैंने सिग्नल तोड़ दिया 
और पुलिस से जोड़ लिया 
निकालो दो सौ 
मैंने बिल बनाया हैं 
यहाँ साइन करो 
और दो सौ भरो 
मैंने कहा थोडा कम करो 
यह बहुत ज्यादा हैं 
बिल को  ज़रा दूर करो 
पचास हात में धरो 
उसने कहा बिल फाड़ दिया हैं
देखो उसमे और दस जोड़ दिया हैं 
उसने सच में बिल को फाड़ दिया 
फिर मैंने कहा अरे यह क्या किया 
डरो मत यह बिल भी नकली हैं 
इसे साहब ने बनाया हैं 
इस लिय, 
मैंने साहब  को बनाया हैं 
साला धोका  देकर लुटा 
चलो अब पीछा तो छुटा
घर आकर सोच में पड़ गया
मन  की आवाज़ पे  अड़ गया 
मेरी वजह से एक और बढ़ गया
जब मैंने टीवी खोल दिया
भ्रष्टाचार पे  वो बोल दिया
अन्ना के बाते सताने लगी
एक नयी राह बताने लगी 
भ्रष्टाचार को मिटाना हैं 
नहीं तो खुद को मिटाना हैं 
ऐसा अन्ना बोलते रहे 
बात पे बात खोलते रहे 
हमें फिर से पकड़ना हैं जंतर मंतर 
इस भर्ष्टाचार को करना हैं छु मंतर 


Wednesday, April 27, 2011

तुम मुझे भुला देना....




तुम मुझे भुला देना सुबह के अखबार की तरह !
तुम मुझे भुला देना तेज समाचार की तरह !!

तुम मुझे वोट देकर, एक राजनेता की तरह !
तुम मुझे भुला देना एक मतदार की तरह !!

तुम मुझे देश भक्त कहकर,एक सरफ़रोश की तरह !
तुम मुझे भुला देना एक शहीद सरदार की तरह !!

तुम मुझे अभिनेता कहकर, एक नायक की तरह !
तुम मुझे भुला देना एक फिल्मी किरदार की तरह !!

तुम मुझे रास्ता दिखाकार, एक मार्गदर्शक की तरह !
तुम मुझे भुला देना एक सही सलाहगार की तरह !!


तुम मुझे मौसमी मिजाज देकर,एक हवा की तरह !
तुम मुझे भुला देना एक खुशबू सदाबहार की तरह !!

तुम मुझे सच्चाई दी, जिनेकी एक चाह की तरह !
तुम मुझे भुला देना एक पाक इज्जतदार कि तरह !!

तुम मुझे उपहार से सजाया, एक सुंदर वस्तू की तरह !
तुम मुझे भुला देना एक सुशोभित अलंकार की तरह !!

तुम मुझे सहारा दिया, एक अंगरक्षक की तरह !
तुम मुझे भुला देना एक नेक पहरेदार की तरह !!

तुम मुझे एक साहस दिया, एक कहानी की तरह !
तुम मुझे भुला देना एक कवी रचनाकार की तरह !!

तुम मुझे खूब नचाया, एक कटपुतली की तरह !
तुम मुझे भुला देना एक नौटंकी कलाकार की तरह !!

तुम मुझे अस्थीर किया, एक सही बरकरार कि तरह !
तुम मुझे भुला न देना एक मजबूर लाचार कि तरह !!


Wednesday, January 26, 2011

मेरा भारत महान..



सिर्फ कहने को हैं मेरा भारत महान 
देश तरफ कोई भी नहीं देता ध्यान
यहाँ नेतावों का बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार
देश को चख रहे जैसा "आम" का अचार 
अब  देश में यही बना हैं एक वरदान
सिर्फ कहने को हैं मेरा भारत महान 

हर रोज़ निकलता हैं एक नया घोटाला 
कैसे बंद होगा यह, कैसे लगेगा ताला 
महंगाई के तले डूबा हुआ हैं हर इंसान 
सिर्फ कहने को हैं मेरा भारत महान 

प्रजातंत्र  मनाते हैं उत्साह और शानसे 
तिरंगा फहराते  नेता अपने अपने मानसे
मिटेगा भ्रष्टाचार तो ही होगा सन्मान  
सिर्फ कहने को हैं मेरा भारत महान 

कितने ल़ोग येहाँ भूखेही सो जाते हैं
नेता माल खाकर प्रजातंत्र मनाते हैं 
जागो, हमें रखना होगा तिरंगे का मान
तब शान से कहेंगे मेरा भारत महान 

Friday, December 31, 2010

नया साल आया....


चलो एक और नया साल आया
सिर्फ नयी कीमतों का माल लाया

समझ लो इस समय की धार को
समझ लो इस महंगाई के मार को
सब्जी के दाम में एक उछाल लाया
चलो एक और नया साल आया

इस मार से हम पल पल मरते हैं
चलो अब कुछ नया सोचा करते हैं
बस कम हो दाम, जो भूचाल आया
चलो एक और नया साल आया

दुआ करें और कीमतें ना बढे 
शेर मार्केट हर रोज उप्पर चढ़े  
नया समय, नया सुर ताल लाया 
चलो एक और नया साल आया

मुबारक हो तुम्हे यह नया पल 
दुआ रहें, खुश रहो आज और कल
यह पल भी एक नयी चाल लाया 
चलो एक और नया साल आया