राजा विक्रम ने फिर से उसी भ्रष्ट्राचार के पेड़ से घोटालें के शव को उठाया और अपने कंधे पर लाद कर चलने लगा। दिन के उजालें में चारों तरफ अँधेरा छाया हुआ था, क्यूँ की पेड़ इतना विशाल और घना था की उसके अन्दर रौशनी की किरण घुसने का प्रयास भी नहीं कर सकती थी। पेड़ की बड़ी बड़ी शाखाएं आसमान में घुसकर सूरज को डुबो दिया था। इस पेड़ की जड़ें इतनी मजबूत थी की पूरी पाताल लोक तक पहुँच चुकी थी।
पेड़ के जड़ोंने पुरे "जीवन" को सोख कर जमीं को नीरस बना दिया था। "जीवन" के बिना लोग मर रहें थे। दूर से मीडिया के भालू की पुकार और विपक्षी बादलों गड़गडहाट सुनाई दे रही थी। आम जुगनू की चमक और कडकडहाट के साथ आन्दोलन की बिजली बिच बिच में चमक रही थी।
राजा विक्रम शव को लेकर चल रहा था। शव के अंदर का बेताल बोलने लगा। राजा मैं आज तुझे एक ऐसी कहानी सुनाऊंगा, कहानी के अंतमें कुछ सवाल पूछूंगा,अगर तू इसका उत्तर नहीं दे सका तो तेरे सर के सौ टुकड़े हो जायंगे। ऐसा कहकर कहानी सुनाने लगा।
दुनिया में एक भारत नाम का देश हैं । उस देश में एक मोहन नाम के महामंत्री रहते थे , जो की ईमानदारी का कवच पहनकर वो अपना कामकाज संभालते थे। गाँधी के विचार धारा पर चलने वालें, बुरा मत बोल, बुरा मत सुन और बुरा मत देख। इसी विचार धारा को बड़ी ही कट्टरता से पालन करते थे । इस देश में जो भी कुछ होता था, वह बुराही होता हैं, यह सोच कर,वो कुछ भी देख नहीं पाते। ठीक इसी तरह लोग चिल्ला-चिल्लाकर अपनी यातनाएं कहते थे,महामंत्री जो थे की, गाँधी के बन्दरों के प्रति बहुत ही संवेदनशील थे, इस लियें वो किसी इंसान की बातों को इतनी अहमियत देना उचित नहीं समझते थे। दिन रात यही सोचकर काम किया करते थे।
देश में पडोसी देश के लोग घुस कर आतंक फैलाते रहते थे, फिर भी उन्ही के मुह से शब्द बहार नहीं निकलता। उनका ईमानदारी का कवच भी कोयले की आग में जलने लगा था। जिस जिस जगह पर कवच जल चुका था, वहाँ से बेईमानी की झलक दिखाई पड़ रही थी। यह सब इस लियें हो रहा था की वह कुछ भी कहने से पहले अपनी बॉस के सलाह लिया करते थे। अब सवाल यह हैं की उनकी बॉस उन्हें जो कहने को कहती वही वो कहते, जो देखने को कहती वही वो देखते, और जो सुनने को कहती वही वो सुनते। बहुतसे मंत्रीगन जो उनके अधीन काम करते थे, वो कोई भी काम देशहित में नहीं करतें थे। सिर्फ और सिर्फ घोटालें कर के देश को लुट रहे थे। देश के लोगों के सामने एक बड़ा ही रहस्य खुलता हैं, लोग यह देख कर चिंतित होते हैं। वो घोटाला कुछ इस तरह था। कोयला घोटाला 1, 86, 000 करोड़ रुपए का हैं, जो की अब तक का सबसे बड़ा घोटाला उभरकर सामने आया था । इसके पहले जो 2 जी का घोटाला हुआ, घोटालें की राशी थी 1,76,000 करोड़ रूपए।
बेताल थोड़ी देर रुका और राजा से कहा देख अब मैं महामंत्री मोहन की लाइव बातचीत सुनाता हूँ। यह कहकर वेताल ने विक्रम के कान में माइक्रोफोन रख दिया।
"मैडम मैं क्या करूँ ? क्या मैं इस पद को छोड़ दूँ? मीडिया को क्या जवाब दूँ ? लोगों को कैसे मुह दिखाऊं?"
उधर फोन से मैडम कहती हैं। "देखो तुम्हें डरने की कोई जरुरत नही, तुम वही गाँधी के बंदरोवाले गुण का उपयोग करों?"
"कौनसे गाँधी मैडम" महामंत्री ने पूछा।
"वही जो सबका बाप हैं जिसने कहा बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत बोलो" मैडम ने कहा।
"लकिन एक समस्या हैं" महामंत्री ने पूछा।
"अब क्या हैं ?" मैडम चिल्लाते हुए बोली।
"उधर तीन बन्दर थे एक ने कान, दुसरेने आँख, और तीसरे ने मुह बंद किया था, मैं अकेला यह सब कैसे कर पाउँगा? अब मैं तिन गाँधी कहांसे ला पाउँगा "?महामंत्री ने कहा।
"पागल तीन गाँधी नहीं, तीन बन्दर बोल, क्या गाँधी और बन्दर में कुछ भी अंतर नहीं हैं ? और सुनो जहाँ जो बंद करना हैं वही करना सब एक साथ बंद करने की जरुरत नहीं" मैडम ने कहा।
"सॉरी मैडम बात यह हैं की हमेशा तीन गाँधी नजर आतें हैं, इस लिए थोड़ी गलती हो गयी।" महामंत्री ने कहा।
"ठीक हैं अब समझ में आई ना बात।"
"नहीं मैडम एक और बात हैं।
"क्या हैं ?"
"गांधीजी ने बन्दरों का चुनाव क्यूँ किया होगा? इंसान को भी चुन सकते थे ना।"
"पता नहीं मैं फोन रखती हूँ "
"ठीक हैं मैडम" कहकर महामंत्री ने फोन रख दिया।
यह सब सुनाने के बाद बेताल ने राजा से कहा 'अब बता की इतना सब कुछ होने के बाद भी क्या इमानदार कहलाने वाले महामंत्री को इस पद पर रहना चाहियें या नहीं ? या मैडम के दिए हुए रास्ते पर चलना चाहियें ?
राजा विक्रम कहने लगा "मेरे हिसाब से उस महामंत्री को पद छोड़ने की कोई आवशकता नहीं। क्यूँ की यह पब्लिक हैं, थोड़े दिनों बाद सब कुछ भूल जाती हैं। अब कॉमनवेल्थ और 2 जी घोटालें लोग भूलने लगे हैं। ठीक इसी तरह यह लोग कोयला घोटाला भी भूल जायेगे। मीडिया भी कितने दिन तक इसी खबर को भुनाएगा, और विपक्ष कितने दिनों तक विरोध का नाटक करेगा। कुछ दिन की तो बात हैं।"
वेताल कहने लगा "बात तो सही हैं, लेकिन जो राजा विकास और न्याय की बाते करता था, उस राजा से मुझे यह अपेक्षा नहीं थी। क्या राजा तू भी इस मैडम के बातों से सहमत होकर इस देश के लोगों को धोका देने लगा हैं। बेताल यह वाणी सुनकर राजा जोर जोर से हँसने लगा।
और थोड़ी देर बाद राजा ने बेताल को समझाया की मैं वो राजा विक्रम नहीं हूँ, बल्कि मैं तो 2 जी वाला राजा हूँ। यह सुनते ही शव उड़ने लगा और फिर उसी राजा को जोर से पकड कर राजा के साथ साथ उड़कर पेड़ पर जाकर लटक गया।
:)
ReplyDeletei like the last twist and turn. raja 2G wala. very interesting. and as well as very REAL.
ReplyDeleteतीखा व्यंग्य
ReplyDeleteमैं वो राजा विक्रम नहीं हूँ, बल्कि मैं तो 2 जी वाला राजा हूँ। NICE
ReplyDeleteधन्यवाद संगीताजी
ReplyDeleteबहुत तीक्ष्ण कटाक्ष है .......
ReplyDeleteबेताल कथा के बहाने बहुत ही शानदार व धारदार व्यंग्य किया है आपने । बहुतही प्रशंसनीय ।
ReplyDeleteउम्दा लेखन..... ! सटीक ...! :)
ReplyDeletevyangya sateek hai......
ReplyDeleteखरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों
ReplyDeleteमें कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित
है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता
है...
हमारी फिल्म का संगीत वेद
नायेर ने दिया है... वेद जी को अपने संगीत
कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
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