जीवन के बस में सफ़र करते समय मेरी बाजु वाली सीट पर एक आदमी आ बैठा, ऐसे ही बात करते करते पहचान हो गई और और मैंने पूछा।
"काम क्या करते हो?"
"मैं एक कलाकार हूँ?" उसने कहा।
"कलाकार! कौनसी कला हैं आपके पास?" मैंने पूछ।
"मैं एक कार्टूनिस्ट हूँ " उसने कहा।
"अच्छा, किस प्रकार के कार्टून बनाते हैं आप?"
"मैं देश के पार्लमेंट को शौचालय का रूप देना, देश के अशोक चिन्ह को भेड़िए का रूप देना और ऐसे बहुत सारें, आपने वह समाचार तो सूना होगा की मेरे कुछ कार्टून आपत्तिजनक हैं, यह कहकर सरकार ने मुझे जेल भेजा था। उसने अपने मोबाइल में बताते हुए कहा, यह देखो मैं इस कार्टून में पार्लिमेंट को शौचालय बता दिया, क्या कुछ गलत किया क्या ?"
"क्या पार्लमेंट में शौचालय नहीं हैं? पुरे पार्लमेंट को शौचालय बताने की जरुरत क्या थी? यह तो गलत हैं ना। मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा हैं।" मैंने कहा।
"मैं तो कभी पार्लमेंट में गया नहीं, मुझे क्या पता की पार्लमेंट में शौचालय हैं या नहीं। लेकिन उतने बड़े पार्लमेंट में शौचालय तो होगा ही, नहीं तो खाने पीने के बाद वहाँ के लोग कहाँ जाएंगे?"
"किसी एक कोने में शौचालय बता दिया होता, कुछ तो वजह होगी पुरे पार्लमेंट को शौचालय बताने की? एक बात और, ये जो पार्लमेंट के लोग वेस्टर्न टॉइलट का उपयोग करते हैं या इंडियन? फिर आप ने वेस्टर्न रूप में जो टॉइलट बनया, और उसे नेशनल टॉइलट का नाम दिया हैं। इस देश में कई लोग तो ऐसे हैं की,टॉइलट का नाम तक पता नहीं, फिर इसे नेशनल टॉइलट कहने की वजह क्या हैं?"
"वजह यह हैं की मैं देशप्रेमी हूँ।"
"क्या आपका देशप्रेम वेस्टर्न टॉइलट तक ही सिमित हैं? फिर तो देशद्रोही इसे क्या समझते होगे?"
"अब मुझे कैसे पता? मैं तो देश प्रेमी हूँ।"
उसने अपने मोबाइलपे दुसरा कार्टून बताते हुए, मोबाइल फोन मेरे हाथ में दिया। मैंने कहा, "अच्छा हैं, कितने का हैं?"
उसने हाँसते हुए कहा, "क्या साहब, क्यूँ मज़ाक करतें हो? यह तो अनमोल हैं।"
"कुछ तो कीमत होगी? कहाँसे लिया हैं?"
"लिया नहीं यह कार्टून मैंने बनाया हैं?"
"मैं कार्टून की नहीं, इस मोबाइल फोन की बात कर रहां हूँ।"
"लेकिन मैं तो इस कार्टून की बात कर रहां हूँ।"
"मैं इस मोबाइल की।"
"क्यूँ पका रहे हो ? हमारी बहस तो इस कार्टून पर हो रही हैं।"
"क्या करूँ साहब मैं एक कॉमन मैन हूँ। मैं बहुत ही दुविधा में जी रहा हूँ। चैनल बदल बदल कर समाचार देखता हूँ, कुछ अच्छा समाचार मिलेगा, जो की कॉमन मैन के लिए होगा। करवट बदल बदल कर सपने देखने की आदत हैं, आज नहीं तो कल महंगाई कम होगी। इस लियें विषय बदल गया होगा। सॉरी सॉरी!! चलों बता दो आप किस कार्टून के बारें में बता रहे थे?"
"यह देखो यह भेड़िए वाला, इसके निचे लिखा हैं की "भ्रष्टमेव जयतें" अब बता दो इससे सरकार क्यूँ एतराज होना चाहियें, जो की मुझे जेल में दाल दिया, क्या देश से प्रेम करना कोई गुनाह हैं?"
"इसे देख कर तो लगता हैं की, एतराज नहीं होना चाहियें। लेकिन एक बात समझ में नहीं आ रही हैं की इसमें देश प्रेम कहाँ हैं?
"देखो मेरी लड़ाई इस भ्रष्टचार के खिलाप हैं, इस लियें इस कार्टून के निचे लिखा हैं पढो।
"भ्रष्टमेव जयते' लिखा हैं, और बिच में खोपड़ी का निशाँ हैं। मैंने देखा, लेकिन इस खोपड़ी के निशाँ का मतलब क्या हैं? क्या यह देशप्रेमी की निशानी हैं? यह तो खतरा 440 वोल्ट का निशाँ लगता हैं। पता ही नहीं चल रहा हैं की, भ्रष्टाचार के साथ हैं या इसके खिलाप।"
"गौर से देखो इसके निचे क्या लिखा हैं?"
"हाँ मैंने देखा हैं 'भ्रष्टमेव जयते' लिखा हैं, इस लियें तो पूछ रहाँ हूँ की आप तो भ्रष्टाचार के विरोध में हैं, फिर भी उसी के जय की बात कर रहे हों, ऐसा क्यूँ ?"
"देखो आप एक कॉमन मैन हैं, आप को इस देशप्रेम के बारें क्या पता चलेगा?"
"ठीक कहा साहब आपने, मैं तो कॉमन मैन हूँ ,मुझे हर रोज़ बिजली के झटके और महंगाई के मार दिखाई देती हैं। देश प्रेम क्या होता हैं, आप मेरेसे अच्छा जानते हैं, मुझे वही बिजली का निशाँ दिखाई देगा क्यूँ की एक कमरे में की बिजली बंद करने के बाद दुसरें कमरे की बिजली चलाता हूँ, बिजली के बिल का झटका ना लगे, इस लिए बार बार वही खोपड़ी का निशाँ दिखाई देता हैं।अच्छा!! एक बात और, इस तीन भेड़ीए का मतलब क्या हैं?"
"यह कलाकार की भाषा हैं, आपके समझ में नहीं आयेगी, यही देश प्रेम हैं। इस लियें तो सारें हिन्दुस्तान के लोग सडक पर उतर आयें थे, जो की सरकार पर दवाब बनाकर मुझे जेल से छुड़ाया, समझे? कॉमन मैन।
"एक और सवाल, जो लोग आपकी रिहाई के लिय सडक पर उतरे थे उसमे कॉमन मैन कितने थे?"
"हे भगवान!! चलों मेरा स्टॉप आ गया मैं उतरता हूँ।"उसने सीट से उठकर बैगको कंधे पे लटकाते हुए कहा।
"जातें जातें फोन की कीमत तो बता दीजिएगा" मैं ऐसा कहते ही उसने हाथसे माथा पटककर निचे उतर गया।
वह जाते ही मैं सोचने लगा, कॉमन मैन वही हैं, जो हर आन्दोलन में शामिल होता हैं। जो हर दिन भ्रष्टाचार और महंगाई के मार से मरता हैं, जो देश के लिए अपना सब कुछ त्याग देता हैं। यही हैं कॉमन मैन, जो सरकार को चुन कर अपना खजाना उन्ही के हातों में दे देता हैं, जो की देश को लुट सके, यहीं हैं वो कॉमन मैन जिसका देश प्रेम दिखाई नहीं देता। सोचते सोचते अगला स्टॉप आ गया, उतने में एक औरत की आवाज़ सुनाई दी, "ये मिस्टर दिखाई नहीं देता यह रिज़र्व सीट हैं, देखो लिखा हैं सिर्फ महिलाओं के लिए।"
मैं उस सीट से उठकर दुसरे सीट पर जा बैठा और फिर वहीँ सफर चालू हुआ। मेरे बाजुमें एक और आदमी आकर बैठ गया फिर से वही सिलसिला चालू हुआ, वही संवाद लेकिन अब विषय दुसरा था।