Wednesday, July 20, 2016

नेता कहत...

चुनाव में सुमिरिन  सब करें, सत्तासुख में करे न कोय।
जो सत्तासुख में  सुमिरिन करें, हार काहे को होय।

मतदार कब ना निन्दिये ,  जो  पावँन  तलें होय।
जो मत डालने उठ पड़ें, तो हारना निश्चित होय ।

मत जो देखन मैं चला, मतदाता न मिलिया कोय।
जो मत खोजा अपना, मुझसे मतवाला न कोय।

पत्र पढ़ि पढ़ी जग मुआ, पत्रकार भया न कोय।
दो आखर नेता का, पढ़े सो पत्रकार होय।

धीरे-धीरे  रे कामना, कामना सब कुछ होय।
नेता खींचे सौ रुपया, हज़ारों आये फल होय।

जाती पूछो मतदार की, पूछ लीजिय मतदान।
मोल करो सरकार का, पड़ा रहे देश का मान। 

रूपिया फेरत जुग भया, फिरा ना मन का फेर।
पैसा मनका डार दे, रुपीया का मनका फेर।

भाषण एक अनमोल हैं, जो कोई भाषण जानि।
रुपिया तराज़ू तौली के, तब सुख बहार आनि।  

(यह रचना संत कबीर के दोहों का आधुनिकरण  कर  के लिखी गयी हैं। अगर इस लेख से किसी को दुःख या आहात हो तो हमें खेद हैं। - छाया गूगल से  )

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