Saturday, November 7, 2009

परलोक में भी भारत का डंका......





साल २०१२ में प्रथ्वी पर मानव जाती पूर्णता नष्ट होनी वाली है ऐसा माया कैलेंडर का कहना हैं. हमारे तेज न्यूज़ चैनल भी पीछे ही नहीं बल्कि मसाला डालकर लोगों को विस्वास में ले रहे हैं की सही में प्रकोप आयेगा और पूरी दुनिया तबाह हो जायेगी.
समझो अगर ऐसा होता हैं तो क्या होगा ? स्वर्ग और नरक में क्या होगा ?
यमधर्म ने भगवान इन्द्रदेव को एक सन्देश भेजकर तत्काल 'मीटिंग' कराने की सलाह दी. इन्द्र ने मीटिंग को सभी मान्यगन को निमंत्रित कीया.
मीटिंग का एजेंडा कुछ इस तरह था यमधर्म कहने लगे.
"प्रथ्वी से भारी संख्या में जिव आ रहे हैं. सभी जीव भूलोक से स्वर्ग लोक तक कतार में खड़े हैं. चित्रगुप्त ने परलोक के द्वार बंद कर दिए हैं.

     हमारी पहली प्राथमिकता यह हैं , की उनके लिए जगह का प्रबंध करना . चित्रगुप्त दिन रात मेहनत करने के बाद हिसाब किताब नहीं कर पा रहे हैं. हमारे पास MANPOWER की बहुत ही कमी हैं. और जो जगह बची है ओ भी प्रयाप्त नहीं हैं. हमें और जगह चाहियें स्वर्ग में तो ज्यादा जगह हैं, क्यूँ की हमें यकीन हैं ९५% लोग नरक में दाखिल होंगे. स्वर्ग की  COMPOUND WALL तोड़कर नरक के लिए जगह मुहय्या करनी पड़ेगी".
इन्द्र देव ने कहा
" यमराज क्या यह संभव हैं ? हमारे पास ज्यादा देवगन हैं और हमें खुली हवा चाहिये इससे हमें ज्यादा प्रॉब्लम होगी क्यूंकि स्वर्ग और नरक के बीच में अंतर कम हो जायेगा और नरक की सारी घटनाएं स्वर्ग में सुनाई देगी इससे स्वर्ग और नरक में क्या फर्क रह जायेगा?.किसी भी हालत में स्वर्ग की जगह नरक को नहीं मिलेगी"
.यमधर्म ने कहा.
"ठीक हैं हम सभी लोगों को स्वर्ग में भेज देंगे"
इन्द्रदेव के माथे पर तनाव की लकीरे दिखने लगी, फिर थोडा सोच कर देवराज ने कहा.
"पश्चिम के तरफ जो पहाडी इलाका हैं उसे आप ले सकते हैं"
"ठीक हैं'
"उसमेसे कुछ जगह मैं आपको देता हूँ"
यमराज आसन से उठकर कहने लगे.
"अब हमारी दूसरी समस्या हैं MANPOWER नरक मे सहायक यमों की संख्या बहुत ही कम है. और हमारे चित्रगुप्त को भी बडा ग्रुप चाहिये जो सब कुछ हिसाब किताब रख सके. क्या आप कुछ देवताओं को इस काम के लिए दे सकते हैं ?
"हमारे सभी देवगणों को पहले ही बहुत काम हैं , चाहे तो मैं एक सलाह देता हूँ."
"ठीक है, लेकिन आपकी सलाह उपयुक्त होनी चाहिए"
"आप ऐसा करो जो धरती से जो जीव आते हैं, उन्हीमे से कुछ जीवों को नियुक्त करो,जिनको इन सभी का अभ्यास और अनुभव हो "
"ठीक हैं! चित्रगुप्त आप एक सूची तैयार करो, लेकिन याद रहें की पापी को कोई जगह नहीं मिलनी चाहियें.जब
तक हर एक जीव का पूरा हिसाब नहीं मिलता तब तक कोई फैसला नहीं होना चाहियें"
"लेकिन जो जीव कतार में खड़े हैं उनका क्या?"
"उनके लिए एक तम्बू लगा दो,और सुनो उस पर WAITING HAAL का फलक लगा दो"
सभी इंतजाम हो गया और कुछ दिन के बाद सभी काम सुचारू रूप से चलने लगा.लेकिन एक बडी समस्या खड़ी हो गई.अब स्वर्ग में लोग ज्यादा आने लगे यमराज का हिसाब गलत निकला.अब तो यहाँ बीस से पच्चीस प्रतिशत लोग स्वर्ग में आने लगे. इन्द्रदेव ने यमराज को बुला लिया और दोनों ने मिलकर एक अहम फैसला लिया. नारद मुनि को जाँच के लिए नियुक्त कर दिया.
और कुछ दिन बीत गएँ नारद मुनि रिपोर्ट पेश की,नारदजी ने कहा.
"इस रिपोर्ट के हिसाब से स्वर्ग में जो भी लोग हैं. उन्ही में ज्यादातर भारतीय हैं.मेरा शक और बढ़ गया मैंने एक आदमी की रिपोर्ट देखि मुझे बहुत ही ठीक ठाक लगी  मैंने पुरे लोगों की रिपोर्ट देखि उसमे कोई भी खराबी नज़र नहीं आयी. फिर मैंने चित्रगुप्त की मुख्य सलाहकार की रिपोर्ट देखी तो मुझे पता चला की, उसने ही सभी लोगों की रिपोर्ट बदल दी थी. क्यूँ की ओ भारत देश में एक नेता था रिश्वत लेकर सभी लोगों को स्वर्ग भेज दिया था. लेकिन सोचने वाली बात यह थी की उस नेता को यह पद कैसे मिला ? यही था... परलोक में भी भारत का डंका...... "

Wednesday, November 4, 2009

VANDE MATARAM

जब  इंसान जैसा प्राणी धरती पर आकर अपने आपको सीमाओं में बांटता चला गया. सबसे पहले घर की सीमा बाद में अपने गाँव की सीमा फिर तहशील की,जिल्हे की,राज्य  की, फिर देश की.
      लेकिन कुछ दिनों बाद यह सीमाएं बढती गई और लोगों की विचारधारा की जिसे हम "समुदाय"  कहते तो बेहतर होगा क्यूँ की हम इसे "धर्म" तो कदापि नहीं कह सकते. धर्मं का मतलब ही अलग हैं. जब हम हिन्दू, इस्लाम, सिख या इसाई, इनके सामने धर्म शब्द का उपयोग करना  उचित नही होगा, तो समझ लेना की हमें  धर्म का  सही अर्थ मालूम ही  नहीं. शायद  हमारी  धारनाए बहुत  ही गलत हैं.  क्यूँ की धर्म का मतलब ही  अलग हैं, जो सत्य शब्द का समंतार रूप हैं.  अभी सत्य किसी एक समुदाय का प्रतिक तो नहीं हो सकता. अब हमें  एक पर्यायी   शब्द सोचना होगा जो हर समुदाय को जोड़ सके या  समांतर अर्थ दे सके. मेरे हिसाब से धारणा एक शब्द है जो किसी भी समुदाय को जोड़ा जा सकता हैं .  यहाँ  धारणा शब्द का प्रयोग उचित होगा,जैसा की हिन्दू धारणा  इसी प्रकार इसाई या इस्लामी धारणा,  शब्द प्रयोग कर सकते हैं.
स्वधर्मे निधनम् श्रेयहा  | परधर्मो भयावहा |
अब यहां धर्म का मतलब ,जब कोई गलत काम कर रहा हैं तो  उसे रोकना,  इंसान का धर्म होता हैं,धर्म हैं और रहेगा.  इसे  ही हम स्वधर्म कह सकते हैं.  अगर आप स्वधर्म में जियोगे  तो श्र्येय होगा. हम सत्य के साथ अपना जीवन व्यतीत करना चाहते तो धर्म के यानि सत्य के साथ मरना ही  उचित होगा .अगर आप किसी अधर्म के साथ जीवन व्यतीत करते  हैं तो वह भयानक या भयभित होगा.
      गीता के पहले अध्याय में भी येही कहा गया हैं. जो धर्मक्षेत्र जैसे कुरुक्षेत्र में कौरव और पांडव की सेना खड़ी थी. अब सोचने बात यह हैं की,उस क्षेत्र को धर्म क्षेत्र क्यूँ कहा गया हैं? कुरुक्षेत्र तो ठीक हैं लेकिन धर्मं क्षेत्र क्यूँ ? इसका एक ही मतलब, जहाँ हम सत्य के लिए लड़ते  हैं.  या सत्य के लिए लड़ रहे हैं वही हमारा  धर्मं क्षेत्र कहलाता हैं.
आज हम देखते हैं यहाँ  अलग अलग धारणा के लोग रहते हैं. सत्य तो यह हैं की सब लोग खाते हैं, पीते हैं,हासते हैं रोते हैं. क्या हम कहते हैं फलां आदमी इस्लाम  है ओ सोता नहीं, फला आदमी इसाई हैं ओ कभी रोता नहीं, या फला आदमी हिदू हैं, खाना खाए बिना ही रहता हैं. जी नहीं! हम सब इंसान हैं हमारे  नियम  हम बना सकते हैं.  फलां आदमी हिदू है ओ बिना प्राणवायु  के जीता हैं और फलां आदमी इसाई  हैं ओ बिना पानी के रह सकता हैं.
आज देश को जरुरत हैं उस धर्म की जो सत्य का रास्ता दिखा  सके. क्या यही  हमारा  धर्म नहीं हैं ?
       आज देश में कितने लोग ऐसे हैं जिनको दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती.  लेकिन हम हमारी धारणा में ऐसे जकडे हुए हैं की हमें उसके सिवा कुछ दिखता ही नहीं. हम रोज एक नया किस्सा बनाते और बताते हैं.
जैसा की "वन्दे मातरम्" हमें पहले यह जानना जरुरी हैं की, वन्दे मातरम का अर्थ क्या हैं.इसका सरल अर्थ तो यह हैं की, हम अपने वतन को नमन करते,या प्रणाम करते. मेरे हिसाब इससे ज्यादा कुछ भी नहीं.
     मेरे  और आपके  मानने या ना  मानने से क्या होगा?  कुछ नहीं! हम दिल से जिसे मानते वही हमारा वन्दे मातरम हैं................ वही वन्दे मातरम हैं.

Tuesday, November 3, 2009

WORK IN PROGRESS...... टेढी खीर



हमारे मोहल्ले में  PWD  ने सभी सड़को की मरम्मत करने की ठान ली थी. उसी प्रकार काम तेजी से चलता गया और कुछ ही दिन में  हमारी सड़क अच्छी और चिकनी  दिखने लगी. नज़र उतारनेका मन कर रहा था लेकिन क्या करता मैं मेरे काम में  इतना व्यस्त था की पूछो मत.(खुद का WORK IN PROGRESS)
        आखिर में जिस बात का डर था वही हो गया. नज़र तो  लग ही गई ओ भी  "वाटर सप्लाई" विभाग की, और उन्होंने "WORK IN PROGRESS "  का बोर्ड लगा कर सड़क खोदने  का काम "तमाम" कर दिया. कुछ दिन और बीत गए, हमने  फिर से सड़क मरम्मत करवाई. उसके बाद टेलीफोन डिपार्टमेन्ट ने  एक और बोर्ड लग दिया," WORK IN PROGRESS" सड़क की खुदाई का काम शरू  कर दिया.और सड़क की हालत  जैसी की तैसी. जैसा  की हमारे नेता लोग आते(चुनाव के पहले )और हमें एक जीने का नया अहसास देते ठीक  उसी  तरह सड़क ने हमें कुछ दिन अहसास जरुर दिया था.
एक दिन मेरा दोस्त मेरे घर आया और उसने मुझे पूछा.
"यार जब मैं पिछली  बार आया था तो सड़क  ठीक ठाक थी, और अब ये गड्ढे "
"शायद तू हमारे सरकार को जानता नहीं,यहाँ जनतां अंधी हैं और सरकार लंगडी"
" जनता सब कुछ देख कर भी अंधी होती हैं, और सरकार तेज चल नहीं सकती क्यूँ की वहां का  हर विभाग अपने  अपने तरीके से काम करते हैं"
"चुनाव प्रचार के वक़्त तो बहुत ही तेज चलते हैं,तेज बोलते हैं "
"क्यूँ की तब ओ सरकार का हिस्सा नहीं होते, जब सरकार में आते खुद पे बोर्ड लगाकर फिरते हैं 'WORK IN PROGRESS' फिर लोगों को यह भी समझ  में नहीं आता की किसका काम PROGRESS में हैं" 
"जैसे की टेढी खीर "

       अब मैं "टेढी खीर" के बारेमें आपको बताना चाहता हूँ यह एक "लोककथा"हैं.
एक गाँव में दो दोस्त रहते थे. एक जन्मसे अंधा था और दूसरा लंगडा,  दोन्हो  भिख  मांग कर अपना गुजारा  करते थे . एक दिन लंगडे दोस्त ने गाँव में जाकर खीर ले आया. और अपने अंधे दोस्त से कहा.
"देख यार मै तेरे लिए क्या लाया हूँ"
"क्या लाया"
"सफ़ेद खीर"
'"सफ़ेद खीर यानी "
"ओ जो सफ़ेद गाय जा रही हैं बिल्कुक उसी तरह" अंधे के समझ में कुछ भी नहीं आया .
"सफ़ेद क्या होता हैं"
"दूध के जैसा"
"दूध कैसा  होता है"
"ओ जो बगला(CRANE)  होता हैं ना  बिलकुल सफ़ेद"   फिर भी उसे कुछ भी समझ में नहीं आया,फिर लंगडे दोस्त ने बहुत ही मेहनत करके एक बगला पकड के अंधे के हात में थमा दिया. जैसे  ही अंधे ने उसपर हाथ फिराकर बोला "टेढी खीर"
अंधी जनता  और लंगडी सरकार-----टेढी खीर,  यही  हमारी  कहानी हैं "WORK IN PROGRESS"

Thursday, October 29, 2009

SALESMAN







एक दिन की बात हैं. मैं बिग बज़ार में  से गुजर रहा था. उतने में मुझे एक SALESMAN की आवाज़ सुनाई दी , "भाईयो  और बहनों सुनो सुनो यह एक ऐसा तेल हैं जो आपको हमेशा FRESH रखता हैं".
   उस आदमीको  देखतेही मुझे हमारे  'बिग बी' याद आये,  जो इसी तरह "ठंडा ठंडा  कूल कूल का  ADD. करते हैं".उसके साथ साथ कई और प्रोडक्टस  आपने पिटारे में ले कर फिरते हैं. जैसा की सीमेंट  क्रीम जो क्रीम लगाने के बाद इन्सान मशीन में बदल जाता हैं . और काम भी मशीन की तरह ही करने लगता ऐसे बहुत सारे ऐसे ADD.हैं  जो लोगों  को.......  बनाकर माल बेचते हैं. 
            थोडी दूर एक और SALESMAN  "कोनेमें" खडा होकर एक JAPANESE  पंखे के बारे में लोगो को बता रहा था. उसे देखते ही मुझे हमारे  कप्तान  साहब  याद आयें जो एक पंखा  बेचने के लिए टीवी पर आते हैं ,जो कोने में तो खडा नहीं रहते लेकिन कोने कोनेमें हवा देने का  वादा जरूर करते, क्यूँ  की उन्हें आदत हैं सभी खिलाडियों को " कोने कोने में" खड़े  करने  की  शायद इस लियें उन्होंने यह ADD  चुना हैं. और ADD. में स्कूल के बच्चों  का "कप्तान" बनकर उसे भी कोने कोने में खडा करते हैं. क्यूँ की विपक्ष  के खिलाडी गेंद को  इतनी तेजीसे मारते  हैं की, जिसके हवासे फिल्डर के तों CATCHES भी छुट जाते  हैं. फिर तो हवा कोने कोने में जरूर लगेगी.और एक ADD में ओ बिग बाज़ार में काम करने लगे हैं.सॉरी..... बिग बाज़ार के लिए ADD कर रहे हैं. हामारे  कप्तान की  बात ही कुछ और हैं. बहुत ही  अच्छा काम करते  हैं. ( बिग बाज़ार में. )

       और थोडी दुरी पर एक और  SALESMAN  खडा था जो टीवी के साथ साथ  डिश भी बेचा  करता था,  उसे देखते ही मुझे हमारे  खान साहब  नज़र आये  जो घर घर जाकर "डिश के साथ विश भी करते हैं".

           थोडी दूर और एक SALESMAN जो पेन बेच रहाथा और ओ जोर जोर से लोगो को अपील  कर रहा था "भाईओ और बहनों पाच रुपये में एक, चलती ही जाएँ".मुझे हमारे  ब्लास्टर साहब याद आयें जो  पेप्सी के साथ  साथ पेन और कई सामान  अपनी  झोली  में लेकर फिरते हैं.

        एक बात तो तय  हैं की  हम सब इस जीवन में कुछ न कुछ बेचते और खरीदते हैं . कुछ चीजे पैसे से, कुछ चीजें बिना पैसो से लेकिन बेचनेवाले  कम तो  खरीदनेवाले  ज्यादा  शायद इसी वजह से उनका धंदा( ADD) चल रहा हैं.
        जीना बोले तो क्या है? क्या हमारी बुनियादी जरूरतें  सिर्फ रोटी, कपडा और मकान तक सिमित हैं?  या इससे भी कई  ज्यादा , नही हर एक की जरुरते  अलग हैं. उसके लिए कोई भी सीमारेखा ही नहीं. अब  आदमी की बुनियादी जरूरतों का कोई हिसाब  ही नहीं रहा.
      इसी वजह से तो SALSMAN कुछ भी बेचने के लिए उतारू हैं क्यूँ की हम ही हैं जो सब कुछ खरीदते हैं.हमारे बिना SALESMAN कुछ भी नहीं.   

Monday, October 26, 2009

किसान..

मुसीबत का यह पहाड़ क्यूँ टूटा ?
शायद भगवान भी क्यूँ रूठा ?
फसल उगाता,अनाज के लिए
पेट भर रोटी, मिले सब के लिए
एक साल, बारिश की तबाही
नेता आया  "हेलीक्याप्टरसे"
सुका पड़ा तब भी "हेलीक्याप्टरसे"
बड़े बड़े वादे , फिर दिलासा भी झुटा,
शायद भगवान भी क्यूँ रूठा
बच्चे, बीवी भूखे सोते,
खाने के लिए कुछ भी नहीं
जहर के अलावा
सोना चाहा नींद नही,
रोते बच्चे को गुस्से में आकर पिटा
शायद भगवान भी क्यूँ रूठा
सोचा, जहर या फंदा लगाऊं,
बच्चे का मुख देख कर रुक गया
सेठ से क़र्ज़ लाया इस बारिश से तो घर ही टूटा
रात भर खुद को तड़पाया,
फिर जहर को गले लगाया
अब सब छुटा,जीवन से नाता टूटा

Saturday, October 24, 2009

हलकी सी हवा

यह हलकी सी हवा मेरे पास में
यह हलकी सी हवा मेरे सांस में


जब मैं सुबह उठता हूँ,.
खिडकीसे तुम्हें देखता हूँ
खुद की पहचान मेरे पास में
यह हलकी सी हवा मेरे सांस में

जब तक हवा पानी हैं
तब तक तू मेरी रानी हैं
जीना भी क्या एक ही आस में
यह हलकी सी  हवा मेरे सांस में

जिंदगी एक पहेली हैं
जो जीता उसकी सहेली हैं

रानी ही गुम हो गई मेरे ताश में
यह हलकी सी हवा मेरे सांसमें

जिंदगी भर भटकता रहा
जीवन के जाल में अटकता रहा
बीती पूरी जिंदगी तेरी तलाश में
यह हलकी सी हवा मेरे सांस में

Friday, October 23, 2009

चिड़िया और दाल- लोककथा


एक  जंगल में चिड़िया रहती थी। सूखे के कारण वह दिन भर दाने की खोज में रहती थी। बहुत ही मुश्किल के बाद उसें  एक दाल मिली जैसे ही दाल का दाना लेकर एक पेड़ पे बैठी थी। उसके चोच में से दाल फिसलकर पेड़ के खूंटे में अटक गई।

खूंटे खूंटे दाल दो, क्या खाऊ क्या पिऊ क्या ले परदेस जाऊ?

खूंटे ने दाल देने से मना किया, फिर चिड़िया बढई के पास गई।


बढई बढई खूंटा चिरो, खूंटे में दाल है, 
क्या खाऊ क्या पिऊ, क्या ले परदेस जाऊ ?

बढई ने खूंटा चिर ने से मना किया।
फिर चिड़िया ने राजा  के पास गई।

राजा राजा बढई दण्डो, बढाई ना खूंटा चीरे, खूंटे में दाल है,
क्या खाऊ क्या पिऊ क्या ले परदेस जाऊ ?

राजा ने सोचा इस मामूली चिड़िया की बात क्यूँ सुनु , राजा ने भी मना किया।
फिर चिड़िया ने रानी के पास गई।

रानी रानी राजा छोडो , राजा न बढाई दण्डे,

बढई न खूंटा चीरे, खूंटे में दाल है,
क्या खाऊ क्या पिऊ , क्या ले परदेस जाऊ?

रानी ने भी चिड़िया की बात नहीं सुनी।
फिर चिड़िया ने सांप के पास गई।

सांप सांप रानी डसों , रानी ना राजा छोड़े
राजा न बढाई दण्डे, बढई न खूंटा चीरे,
खूंटे में दाल है,
क्या खाऊ क्या पिऊ , क्या ले परदेस जाऊ ?

सांप ने भी चिड़िया की बात नहीं सुनी।
फिर चिड़िया ने लाठी के द्वार पर दस्तक दी।

लाठी लाठी सांप पीटो , सांप न रानी डसें

रानी न राजा छोड़े , राजा न बढाई दण्डे,
बढई न खूंटा चीरे, खूंटे में दाल हैं 
क्या खाऊ क्या पिऊ , क्या ले परदेस जाऊ ?

चिड़िया परेशान हो गई लेकिन हिम्मत के साथ ओ चींटी के पास गई  और अपनी पूरी दास्तान सुनाई
उसके बाद चींटी ने मदद करने का फैसला किया।

चींटी चींटी लाठी पीसो, लाठी न सांप पिटे,
सांप न रानी डसे,
रानी रानी न राजा छोडे , राजा न बढाई दण्डे,
बढई न खूंटा चीरे, खूंटे में दाल हैं,
क्या खाऊ क्या पिऊ, क्या ले परदेस जाऊ ?

फिर चीटियों की फौज लाठी के और बढी, लाठी सांप की और ,सांप रानी की ओर, रानी राजा की ओर,राजा ने बढई को हुक्म दिया की खूंटे को चिर कर दाल निकल दो. चिड़िया खुश हुई दाल लेकर  परदेस चली गयी।



बन्दर और टोपीवालें का बेटा

    यह दूसरे "जनरेशन" की कहानी है | एक गाँव में टोपियाँ बेचने वाला रहता था | वह अपनी पुरानी साइकिल पर सवार हो कर, पीछे कैरियर में एक बडासा  बक्सा लेकर,  और इस बक्से में टोपियाँ बेचकर ओ अपनी  रोजी रोटी कमाता था | उसके पिताजी हमेशा उसे बताते  थे की, बेटे इस धंधे में हमेशा सावधान रहना चाहिये क्योंकि, मैं एक बार बुरी तरह फस गया था | अब तुम्हारे पास साइकिल तो है, मैं तो  गाँव गाँव पैदल जा कर  टोपियाँ बेचता था | एक दिन की बात है जब दोपहर का समय था | धुप अपनी जवानी दिखा रहा था| पास में बडा  इमली का पेड़  देखकर  कुछ देर के लिए  आराम करते करते  मुझे नींद लग गई | जब मैं नींद से उठा तो मेरी गठडी में से पुरे टोपियाँ  ग़ायब थी|  मै थोडासा हडबडा गया और उप्पर  पेड़ पे देखा तो ५० के करीब बन्दर थे,और हर एक के सर पे एक एक टोपी थी | जब मैंने बंदरों को गुजारिश  की मेरी टोपियाँ  निचे फेंके,  पर बंदरोने माना नहीं |  मैंने  बंदरों  को हुकलाया,  तो ओ उल्टा मुझे ही हुकलाने लगे | मैंने पत्थर फेककर डराने  की फिजूल कोशिस कर रहा था,  बंदरों का जवाब भी उसी तरह था | मेरे कोशिशों से  बन्दरों को  मनाया जा सके, लेकिन मैं विफल रहा फिर मैंने गुस्से में आकर मेरे सर की टोपी निकाल कर जमीं पर  फेक दीं | इसी तरह सभी बअन्दारोने  आपने आपने सर की सभी टोपिया निचे फेक दी | फिर मैंने सभी टोपियाँ इक्कठा करके वहां से चल दिया |

            बाप की पुरानी  यादों में सोचते सोचते बेटे को नींद लग गई|  जैसे ही  ओ नींद से जागता है तो पुरे टोपियाँ  गायब थी| जैसे ही उप्पर नज़र उठाकर देखता है तो वही पुरानी  कहानी,  सभी बंदरोने  अपने अपने सर पे एक एक टोपी पहन रखी थी | लेकिन अब ओ खुश था क्यूंकि उसके पास पिताजी की दी हुई तरकीब थी | उसी तरकीब का इस्तेमाल करके वह टोपियाँ  वापस लेने के लिए अपने सर की टोपी निचे फेक दी | लेकिन बन्दोरोने  ऐसा  कुछ भी नहीं किया ना तो टोपियाँ निचे फेकीं ना  हीं जगह से हिले|  अब टोपीवालें  को पसीना आ रहा था,और वो सोच में पड़ गया की क्या मेरे अब्बू ने गलत सलाह तो नहीं दी ? वह बहुत ही निराश  होकर देखता रहा और सोच में पड़ गया की यह कैसे  हुआ ? उतने में वहां से एक राही जा रहा था इसे परेशां  देख कर पुछा क्या हुआ भाई ? क्यूँ परेशां हो? टोपीवालेनी आपनी पूरी दास्ताँ सुनाई |

        राही हसकर बोला "अरे बाबा वह तकनीक पुरानी हो गई है,और यह बन्दर भी पूरी तरहसे वाकिफ है |
 जैसे ही तुम्हरे बापू तुम्हे सिखाया, ठीक उसी तरह बन्दोरोंके  बापू ने  भी वही कहानी सुनाकर उन्हें आधुनिक   बनाया हैं |  अगर तुम्हे टोपियाँ हासिल करना हो तो कुछ नया तारिक सोचना होगा,नया तरिका सोचो | क्यूँ की वक्त के साथ साथ हमें भी बदलना पड़ता हैं।



Sunday, October 18, 2009

मन की दिवाली शुभ हो

दीवाली का यह पावन पर्व हर्ष और उल्ल्हस के साथ मनाया जाता है.

             जहाँ दीपों की कतारें घर को घेर कर अपना प्रदर्शन करती तो दूसरी  तरफ अनेक प्रकार के पटाखों  की आवाजे, क्या यही हैं असली दीवाली ? दीवाली यानि प्रकाश का त्यौहार जो अंधकार को मिटा देता हैं, और हमें दिशा देखने को मदद करता हैं.
मेरा कहने का मतलब थोड़ा अलग है. आप बाहरी दुनिया को तो सजा रहे हैं , लेकिन आपने मन में जो अंधकार हैं उसे कैसे मिटाओगे ? बाहर की रौशनी से मन का अन्धकार तो मिटता नहीं.

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥

         संत कबीर कहते हैं की माला फेरते फेरते जी भरा लेकिन मनका फेरते फेरते अपने मन का मनका नहीं फेरा. जो आपने मन का मनका फेरने के लिए मन के अँधेरे को दूर करने के लिए जिस रौशनी की जरुरत है, उसी रौशनी से मन का मनका फेर सकते हैं.
     आज हमें जरुरत हैं की हम सब आपने मन का अँधेरा मिटा कर मन में दीपों की माला सजाकर मन की दिवाली मनाएंगे जो आपने मन का मनका फेरने के लिए मददगार साबित हो.

मन की दिवाली शुभ हो.

Tuesday, September 29, 2009

सत्य और सच


क्या आपको मालूम हैकी सत्य और सच में क्या फर्क हैं? सच को हम देख सकते ,परख सकते, सबूत इकट्ठा कर सकते मगर सत्य की परिभाषा ही अलग हैं. मेज पर एक पानी से भरा ग्लास रखा गया हैं. वह ग्लास आधा भरा हुआ और आधा खाली हैं, हमने कुछ लोगो से पूछा, कुछ लोगो ने कहा ग्लास आधा भरा हुआ तो कुछ और लोगो ने कहा आधा खाली हैं अगर हम दोनों पहलुओं  का सही तरीके से विचार करते तो हमें दोनो हीं पहेलूं में सच्चाई नज़र आती हैं. जो लोग आधा भरा हुवा कहते, ओ सकारात्मक दृष्टि से विचार करते है और जो सोचते की आधा खाली, ओ नकारात्मक दृष्टि से देखते हैं. लेकिन दोनो ही पहेलु सच तो हैं, लेकिन सत्य तो कदापि नहीं. क्योंकि सत्य तो यह हैं की, ग्लास पूरा भरा हुवा है. शायद उसमें पदार्थ अलग अलग हैं. आधा ग्लास   पानी से भरा तो आधा ग्लास हवा से भरा हुवा हैं.

                 एक बार समर्थ रामदास एक जगह प्रवचन कर रहे थे, प्रवचन करते समय उन्होंने कहा की परब्रह्म सभी  जगह भरा हुआ हैं. उतने एक आदमी उनके पास एक कटोरा लेकर गया, और कहने लगा इसमें परब्रहम भर दो, तो समर्थ ने कहा, मित्र यह तो पहले से ही भरा हुआ हैं. पहले इस कटोरे को  खाली कर ले आओ बाद मैं इसे परब्रह्म  भर दूँगा.

                               दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जो अपनी  आखोंसे देखते हैं. उसे सच मान जाते हैं बहुत ही पुरानी  बात, और इसे हम नए तरीके देखते हैं जैसा की दुसरे की बीवी हरेक को अच्छी लगती, लेकिन कब तक जबतक दूसरा यह शब्द जीवित हैं, तब तक. जब आप दूसरा शब्द निकाल देते  हैं, तभी सब समांतर दिखने लगते हैं. दूसरा शब्द काल्पनिक हैं, जब हम दूसरा शब्द निकल देते हैं वह सत्य बन जाता हैं. हम इस भौतिक जीवन के आधार से बहुतसे बातों  का निर्णय लेते हैं अगर वही निर्णय अगर हम अध्यात्मिक दृष्टी से परखते है तो हमें सच और सत्य में फर्क मालूम पड़ता है.
कुछ और बातें सच का समय के साथ साथ बदलाव होता हैं. लेकिन सत्य में कोई बदलाव नहीं होता. सत्य के लिए दूसरा पर्याई शब्द ही नहीं हैं.
               समझो आपको आज एक लड़की सुंदर दिखती हैं. इसका मतलब यह तो नहीं की और कुछ दिनों के बाद भी वह सुंदर ही दिखेगी, अगर आपके सामने एक पत्थर रख दिया और पुछा गया यह पत्थर बडा  है या छोटा? तो आपके पास कोई जवाब नहीं होगा, क्यूंकि आप तुलना नही कर सकते, तुलना करने के लिए आपके पास और एक पत्थर की आवश्कता है, तो आप बेहिचक  उत्तर दे सकते हैं, क्योकि अब हमारे पास प्रमाण हैं, नाप तोल का साधन है, उसी प्रकार आप जिस लड़की को देखा उससे भी कई सुंदर लड़कियां हो सकती हैं. इस के बाद आपकी सोच में परिवर्तन आता हैं. इधर लड़की यह शब्द सत्य हैं लेकिन सुन्दरता यह सच हैं, और समय के साथ साथ सुन्दरता को परखने में भी परिवर्तन  आता है.

JEEVAN

जीवन के इस सफ़र में बहुत से लोग मिलते हैं।
लेकिन कुछ लोग हमेशा के लिए यादगार बन जाते है।
कुछ  लोग जीवन में धुन्दलिसी  यादें छोड़ जाते हैं।
बार बार याद करनेसे कुछ धुन्द्लेसे  चेहरे याद आते हैं।लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं!
जो मददगार बनकर खुद चले आते हैं।
लेकिन हम वही भूल करते हैं।
अक्सर उन्ही लोगोंके चेहरे भूल जाते हैं!
जिसे हम हमेशा पाते हैं,वही चेहरे भूल जाते हैं।

Monday, September 28, 2009

kabir- chahat

चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह । जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥

         जब आदमी को लगता हैं की, मुझे यह चाहिए, मुझे वो चाहिए, लेकिन मिलता वही हैं, जो आपको मिलना है। हमारी चाहतों की कोई सीमा रेखा नहीं होती, लेकिन हर एक को कुछ ना कुछ चाहिए होता, जो आदमी पैदल चलता हैं उसे साइकिल की जरुरत होती है। जिसके पास साइकिल हैं उसे मोटर साइकिल की जरुरत होती हैं। और उसके बाद कार, बाद में कौनसी कार इसके लिए कोई भी सीमा नहीं।
संत कबीर कहते हैं,लेकिन दुनिया कोई ऐसा आदमी है जिसे कुछ भी नहीं चाहिए होता ओ तो राजा से भी बढ़कर हैं। उसके जैसा सुखी  कोई नहीं हो सकता,होता भी नहीं और होगा भी नहीं
ऐसे इंसान राजा ही नहीं बल्कि भगवान् का रूप होते हैं, जैसे की भगवन बुद्धने  आपना सर्वस्व त्याग कर जो मार्ग अपनाया। भारत में ऐसे बहुतसे महत्मा हो गए उनके बारे में जितना भी कहे वो  बहुत ही कम है
जो असलियत में राजा है, वह सच है और संत कबीर ने राजा कहा है वही सत्य है।


My New Peon

Aate jaate khoobsurat awaara sadakon pe kabhi kabhi ittefaq se kitne anjaam log mil jaate hai...
Un me se kuchh log bhool jaate hain, kucchh yaad rah jaate hai...