Thursday, October 29, 2009
SALESMAN
एक दिन की बात हैं. मैं बिग बज़ार में से गुजर रहा था. उतने में मुझे एक SALESMAN की आवाज़ सुनाई दी , "भाईयो और बहनों सुनो सुनो यह एक ऐसा तेल हैं जो आपको हमेशा FRESH रखता हैं".
उस आदमीको देखतेही मुझे हमारे 'बिग बी' याद आये, जो इसी तरह "ठंडा ठंडा कूल कूल का ADD. करते हैं".उसके साथ साथ कई और प्रोडक्टस आपने पिटारे में ले कर फिरते हैं. जैसा की सीमेंट क्रीम जो क्रीम लगाने के बाद इन्सान मशीन में बदल जाता हैं . और काम भी मशीन की तरह ही करने लगता ऐसे बहुत सारे ऐसे ADD.हैं जो लोगों को....... बनाकर माल बेचते हैं.
थोडी दूर एक और SALESMAN "कोनेमें" खडा होकर एक JAPANESE पंखे के बारे में लोगो को बता रहा था. उसे देखते ही मुझे हमारे कप्तान साहब याद आयें जो एक पंखा बेचने के लिए टीवी पर आते हैं ,जो कोने में तो खडा नहीं रहते लेकिन कोने कोनेमें हवा देने का वादा जरूर करते, क्यूँ की उन्हें आदत हैं सभी खिलाडियों को " कोने कोने में" खड़े करने की शायद इस लियें उन्होंने यह ADD चुना हैं. और ADD. में स्कूल के बच्चों का "कप्तान" बनकर उसे भी कोने कोने में खडा करते हैं. क्यूँ की विपक्ष के खिलाडी गेंद को इतनी तेजीसे मारते हैं की, जिसके हवासे फिल्डर के तों CATCHES भी छुट जाते हैं. फिर तो हवा कोने कोने में जरूर लगेगी.और एक ADD में ओ बिग बाज़ार में काम करने लगे हैं.सॉरी..... बिग बाज़ार के लिए ADD कर रहे हैं. हामारे कप्तान की बात ही कुछ और हैं. बहुत ही अच्छा काम करते हैं. ( बिग बाज़ार में. )
और थोडी दुरी पर एक और SALESMAN खडा था जो टीवी के साथ साथ डिश भी बेचा करता था, उसे देखते ही मुझे हमारे खान साहब नज़र आये जो घर घर जाकर "डिश के साथ विश भी करते हैं".
थोडी दूर और एक SALESMAN जो पेन बेच रहाथा और ओ जोर जोर से लोगो को अपील कर रहा था "भाईओ और बहनों पाच रुपये में एक, चलती ही जाएँ".मुझे हमारे ब्लास्टर साहब याद आयें जो पेप्सी के साथ साथ पेन और कई सामान अपनी झोली में लेकर फिरते हैं.
एक बात तो तय हैं की हम सब इस जीवन में कुछ न कुछ बेचते और खरीदते हैं . कुछ चीजे पैसे से, कुछ चीजें बिना पैसो से लेकिन बेचनेवाले कम तो खरीदनेवाले ज्यादा शायद इसी वजह से उनका धंदा( ADD) चल रहा हैं.
जीना बोले तो क्या है? क्या हमारी बुनियादी जरूरतें सिर्फ रोटी, कपडा और मकान तक सिमित हैं? या इससे भी कई ज्यादा , नही हर एक की जरुरते अलग हैं. उसके लिए कोई भी सीमारेखा ही नहीं. अब आदमी की बुनियादी जरूरतों का कोई हिसाब ही नहीं रहा.
इसी वजह से तो SALSMAN कुछ भी बेचने के लिए उतारू हैं क्यूँ की हम ही हैं जो सब कुछ खरीदते हैं.हमारे बिना SALESMAN कुछ भी नहीं.
Monday, October 26, 2009
किसान..
मुसीबत का यह पहाड़ क्यूँ टूटा ?
शायद भगवान भी क्यूँ रूठा ?
फसल उगाता,अनाज के लिए
पेट भर रोटी, मिले सब के लिए
एक साल, बारिश की तबाही
नेता आया "हेलीक्याप्टरसे"
सुका पड़ा तब भी "हेलीक्याप्टरसे"
बड़े बड़े वादे , फिर दिलासा भी झुटा,
शायद भगवान भी क्यूँ रूठा
बच्चे, बीवी भूखे सोते,
खाने के लिए कुछ भी नहीं
जहर के अलावा
सोना चाहा नींद नही,
रोते बच्चे को गुस्से में आकर पिटा
शायद भगवान भी क्यूँ रूठा
सोचा, जहर या फंदा लगाऊं,
बच्चे का मुख देख कर रुक गया
सेठ से क़र्ज़ लाया इस बारिश से तो घर ही टूटा
रात भर खुद को तड़पाया,
फिर जहर को गले लगाया
अब सब छुटा,जीवन से नाता टूटा
शायद भगवान भी क्यूँ रूठा ?
फसल उगाता,अनाज के लिए
पेट भर रोटी, मिले सब के लिए
एक साल, बारिश की तबाही
नेता आया "हेलीक्याप्टरसे"
सुका पड़ा तब भी "हेलीक्याप्टरसे"
बड़े बड़े वादे , फिर दिलासा भी झुटा,
शायद भगवान भी क्यूँ रूठा
बच्चे, बीवी भूखे सोते,
खाने के लिए कुछ भी नहीं
जहर के अलावा
सोना चाहा नींद नही,
रोते बच्चे को गुस्से में आकर पिटा
शायद भगवान भी क्यूँ रूठा
सोचा, जहर या फंदा लगाऊं,
बच्चे का मुख देख कर रुक गया
सेठ से क़र्ज़ लाया इस बारिश से तो घर ही टूटा
रात भर खुद को तड़पाया,
फिर जहर को गले लगाया
अब सब छुटा,जीवन से नाता टूटा
Saturday, October 24, 2009
हलकी सी हवा
यह हलकी सी हवा मेरे पास में
यह हलकी सी हवा मेरे सांस में
जब मैं सुबह उठता हूँ,.
खिडकीसे तुम्हें देखता हूँ
खुद की पहचान मेरे पास में
यह हलकी सी हवा मेरे सांस में
जब तक हवा पानी हैं
तब तक तू मेरी रानी हैं
जीना भी क्या एक ही आस में
यह हलकी सी हवा मेरे सांस में
जिंदगी एक पहेली हैं
जो जीता उसकी सहेली हैं
रानी ही गुम हो गई मेरे ताश में
यह हलकी सी हवा मेरे सांसमें
जिंदगी भर भटकता रहा
जीवन के जाल में अटकता रहा
बीती पूरी जिंदगी तेरी तलाश में
यह हलकी सी हवा मेरे सांस में
यह हलकी सी हवा मेरे सांस में
जब मैं सुबह उठता हूँ,.
खिडकीसे तुम्हें देखता हूँ
खुद की पहचान मेरे पास में
यह हलकी सी हवा मेरे सांस में
जब तक हवा पानी हैं
तब तक तू मेरी रानी हैं
जीना भी क्या एक ही आस में
यह हलकी सी हवा मेरे सांस में
जिंदगी एक पहेली हैं
जो जीता उसकी सहेली हैं
रानी ही गुम हो गई मेरे ताश में
यह हलकी सी हवा मेरे सांसमें
जिंदगी भर भटकता रहा
जीवन के जाल में अटकता रहा
बीती पूरी जिंदगी तेरी तलाश में
यह हलकी सी हवा मेरे सांस में
Friday, October 23, 2009
चिड़िया और दाल- लोककथा
एक जंगल में चिड़िया रहती थी। सूखे के कारण वह दिन भर दाने की खोज में रहती थी। बहुत ही मुश्किल के बाद उसें एक दाल मिली जैसे ही दाल का दाना लेकर एक पेड़ पे बैठी थी। उसके चोच में से दाल फिसलकर पेड़ के खूंटे में अटक गई।
खूंटे खूंटे दाल दो, क्या खाऊ क्या पिऊ क्या ले परदेस जाऊ?
खूंटे ने दाल देने से मना किया, फिर चिड़िया बढई के पास गई।
बढई बढई खूंटा चिरो, खूंटे में दाल है,
क्या खाऊ क्या पिऊ, क्या ले परदेस जाऊ ?
बढई ने खूंटा चिर ने से मना किया।
फिर चिड़िया ने राजा के पास गई।
राजा राजा बढई दण्डो, बढाई ना खूंटा चीरे, खूंटे में दाल है,
क्या खाऊ क्या पिऊ क्या ले परदेस जाऊ ?
राजा ने सोचा इस मामूली चिड़िया की बात क्यूँ सुनु , राजा ने भी मना किया।
फिर चिड़िया ने रानी के पास गई।
रानी रानी राजा छोडो , राजा न बढाई दण्डे,
बढई न खूंटा चीरे, खूंटे में दाल है,
क्या खाऊ क्या पिऊ , क्या ले परदेस जाऊ?
रानी ने भी चिड़िया की बात नहीं सुनी।
फिर चिड़िया ने सांप के पास गई।
सांप सांप रानी डसों , रानी ना राजा छोड़े
राजा न बढाई दण्डे, बढई न खूंटा चीरे,
खूंटे में दाल है,
क्या खाऊ क्या पिऊ , क्या ले परदेस जाऊ ?
सांप ने भी चिड़िया की बात नहीं सुनी।
फिर चिड़िया ने लाठी के द्वार पर दस्तक दी।
लाठी लाठी सांप पीटो , सांप न रानी डसें
रानी न राजा छोड़े , राजा न बढाई दण्डे,
बढई न खूंटा चीरे, खूंटे में दाल हैं
क्या खाऊ क्या पिऊ , क्या ले परदेस जाऊ ?
चिड़िया परेशान हो गई लेकिन हिम्मत के साथ ओ चींटी के पास गई और अपनी पूरी दास्तान सुनाई
उसके बाद चींटी ने मदद करने का फैसला किया।
चींटी चींटी लाठी पीसो, लाठी न सांप पिटे,
सांप न रानी डसे,
रानी रानी न राजा छोडे , राजा न बढाई दण्डे,
बढई न खूंटा चीरे, खूंटे में दाल हैं,
क्या खाऊ क्या पिऊ, क्या ले परदेस जाऊ ?
फिर चीटियों की फौज लाठी के और बढी, लाठी सांप की और ,सांप रानी की ओर, रानी राजा की ओर,राजा ने बढई को हुक्म दिया की खूंटे को चिर कर दाल निकल दो. चिड़िया खुश हुई दाल लेकर परदेस चली गयी।
बन्दर और टोपीवालें का बेटा
यह दूसरे "जनरेशन" की कहानी है | एक गाँव में टोपियाँ बेचने वाला रहता था | वह अपनी पुरानी साइकिल पर सवार हो कर, पीछे कैरियर में एक बडासा बक्सा लेकर, और इस बक्से में टोपियाँ बेचकर ओ अपनी रोजी रोटी कमाता था | उसके पिताजी हमेशा उसे बताते थे की, बेटे इस धंधे में हमेशा सावधान रहना चाहिये क्योंकि, मैं एक बार बुरी तरह फस गया था | अब तुम्हारे पास साइकिल तो है, मैं तो गाँव गाँव पैदल जा कर टोपियाँ बेचता था | एक दिन की बात है जब दोपहर का समय था | धुप अपनी जवानी दिखा रहा था| पास में बडा इमली का पेड़ देखकर कुछ देर के लिए आराम करते करते मुझे नींद लग गई | जब मैं नींद से उठा तो मेरी गठडी में से पुरे टोपियाँ ग़ायब थी| मै थोडासा हडबडा गया और उप्पर पेड़ पे देखा तो ५० के करीब बन्दर थे,और हर एक के सर पे एक एक टोपी थी | जब मैंने बंदरों को गुजारिश की मेरी टोपियाँ निचे फेंके, पर बंदरोने माना नहीं | मैंने बंदरों को हुकलाया, तो ओ उल्टा मुझे ही हुकलाने लगे | मैंने पत्थर फेककर डराने की फिजूल कोशिस कर रहा था, बंदरों का जवाब भी उसी तरह था | मेरे कोशिशों से बन्दरों को मनाया जा सके, लेकिन मैं विफल रहा फिर मैंने गुस्से में आकर मेरे सर की टोपी निकाल कर जमीं पर फेक दीं | इसी तरह सभी बअन्दारोने आपने आपने सर की सभी टोपिया निचे फेक दी | फिर मैंने सभी टोपियाँ इक्कठा करके वहां से चल दिया |
बाप की पुरानी यादों में सोचते सोचते बेटे को नींद लग गई| जैसे ही ओ नींद से जागता है तो पुरे टोपियाँ गायब थी| जैसे ही उप्पर नज़र उठाकर देखता है तो वही पुरानी कहानी, सभी बंदरोने अपने अपने सर पे एक एक टोपी पहन रखी थी | लेकिन अब ओ खुश था क्यूंकि उसके पास पिताजी की दी हुई तरकीब थी | उसी तरकीब का इस्तेमाल करके वह टोपियाँ वापस लेने के लिए अपने सर की टोपी निचे फेक दी | लेकिन बन्दोरोने ऐसा कुछ भी नहीं किया ना तो टोपियाँ निचे फेकीं ना हीं जगह से हिले| अब टोपीवालें को पसीना आ रहा था,और वो सोच में पड़ गया की क्या मेरे अब्बू ने गलत सलाह तो नहीं दी ? वह बहुत ही निराश होकर देखता रहा और सोच में पड़ गया की यह कैसे हुआ ? उतने में वहां से एक राही जा रहा था इसे परेशां देख कर पुछा क्या हुआ भाई ? क्यूँ परेशां हो? टोपीवालेनी आपनी पूरी दास्ताँ सुनाई |
राही हसकर बोला "अरे बाबा वह तकनीक पुरानी हो गई है,और यह बन्दर भी पूरी तरहसे वाकिफ है |
जैसे ही तुम्हरे बापू तुम्हे सिखाया, ठीक उसी तरह बन्दोरोंके बापू ने भी वही कहानी सुनाकर उन्हें आधुनिक बनाया हैं | अगर तुम्हे टोपियाँ हासिल करना हो तो कुछ नया तारिक सोचना होगा,नया तरिका सोचो | क्यूँ की वक्त के साथ साथ हमें भी बदलना पड़ता हैं।
बाप की पुरानी यादों में सोचते सोचते बेटे को नींद लग गई| जैसे ही ओ नींद से जागता है तो पुरे टोपियाँ गायब थी| जैसे ही उप्पर नज़र उठाकर देखता है तो वही पुरानी कहानी, सभी बंदरोने अपने अपने सर पे एक एक टोपी पहन रखी थी | लेकिन अब ओ खुश था क्यूंकि उसके पास पिताजी की दी हुई तरकीब थी | उसी तरकीब का इस्तेमाल करके वह टोपियाँ वापस लेने के लिए अपने सर की टोपी निचे फेक दी | लेकिन बन्दोरोने ऐसा कुछ भी नहीं किया ना तो टोपियाँ निचे फेकीं ना हीं जगह से हिले| अब टोपीवालें को पसीना आ रहा था,और वो सोच में पड़ गया की क्या मेरे अब्बू ने गलत सलाह तो नहीं दी ? वह बहुत ही निराश होकर देखता रहा और सोच में पड़ गया की यह कैसे हुआ ? उतने में वहां से एक राही जा रहा था इसे परेशां देख कर पुछा क्या हुआ भाई ? क्यूँ परेशां हो? टोपीवालेनी आपनी पूरी दास्ताँ सुनाई |
राही हसकर बोला "अरे बाबा वह तकनीक पुरानी हो गई है,और यह बन्दर भी पूरी तरहसे वाकिफ है |
जैसे ही तुम्हरे बापू तुम्हे सिखाया, ठीक उसी तरह बन्दोरोंके बापू ने भी वही कहानी सुनाकर उन्हें आधुनिक बनाया हैं | अगर तुम्हे टोपियाँ हासिल करना हो तो कुछ नया तारिक सोचना होगा,नया तरिका सोचो | क्यूँ की वक्त के साथ साथ हमें भी बदलना पड़ता हैं।
Sunday, October 18, 2009
मन की दिवाली शुभ हो
दीवाली का यह पावन पर्व हर्ष और उल्ल्हस के साथ मनाया जाता है.
जहाँ दीपों की कतारें घर को घेर कर अपना प्रदर्शन करती तो दूसरी तरफ अनेक प्रकार के पटाखों की आवाजे, क्या यही हैं असली दीवाली ? दीवाली यानि प्रकाश का त्यौहार जो अंधकार को मिटा देता हैं, और हमें दिशा देखने को मदद करता हैं.
मेरा कहने का मतलब थोड़ा अलग है. आप बाहरी दुनिया को तो सजा रहे हैं , लेकिन आपने मन में जो अंधकार हैं उसे कैसे मिटाओगे ? बाहर की रौशनी से मन का अन्धकार तो मिटता नहीं.
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥
संत कबीर कहते हैं की माला फेरते फेरते जी भरा लेकिन मनका फेरते फेरते अपने मन का मनका नहीं फेरा. जो आपने मन का मनका फेरने के लिए मन के अँधेरे को दूर करने के लिए जिस रौशनी की जरुरत है, उसी रौशनी से मन का मनका फेर सकते हैं.
आज हमें जरुरत हैं की हम सब आपने मन का अँधेरा मिटा कर मन में दीपों की माला सजाकर मन की दिवाली मनाएंगे जो आपने मन का मनका फेरने के लिए मददगार साबित हो.
मन की दिवाली शुभ हो.
जहाँ दीपों की कतारें घर को घेर कर अपना प्रदर्शन करती तो दूसरी तरफ अनेक प्रकार के पटाखों की आवाजे, क्या यही हैं असली दीवाली ? दीवाली यानि प्रकाश का त्यौहार जो अंधकार को मिटा देता हैं, और हमें दिशा देखने को मदद करता हैं.
मेरा कहने का मतलब थोड़ा अलग है. आप बाहरी दुनिया को तो सजा रहे हैं , लेकिन आपने मन में जो अंधकार हैं उसे कैसे मिटाओगे ? बाहर की रौशनी से मन का अन्धकार तो मिटता नहीं.
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥
संत कबीर कहते हैं की माला फेरते फेरते जी भरा लेकिन मनका फेरते फेरते अपने मन का मनका नहीं फेरा. जो आपने मन का मनका फेरने के लिए मन के अँधेरे को दूर करने के लिए जिस रौशनी की जरुरत है, उसी रौशनी से मन का मनका फेर सकते हैं.
आज हमें जरुरत हैं की हम सब आपने मन का अँधेरा मिटा कर मन में दीपों की माला सजाकर मन की दिवाली मनाएंगे जो आपने मन का मनका फेरने के लिए मददगार साबित हो.
मन की दिवाली शुभ हो.
Tuesday, September 29, 2009
सत्य और सच
क्या आपको मालूम हैकी सत्य और सच में क्या फर्क हैं? सच को हम देख सकते ,परख सकते, सबूत इकट्ठा कर सकते मगर सत्य की परिभाषा ही अलग हैं. मेज पर एक पानी से भरा ग्लास रखा गया हैं. वह ग्लास आधा भरा हुआ और आधा खाली हैं, हमने कुछ लोगो से पूछा, कुछ लोगो ने कहा ग्लास आधा भरा हुआ तो कुछ और लोगो ने कहा आधा खाली हैं अगर हम दोनों पहलुओं का सही तरीके से विचार करते तो हमें दोनो हीं पहेलूं में सच्चाई नज़र आती हैं. जो लोग आधा भरा हुवा कहते, ओ सकारात्मक दृष्टि से विचार करते है और जो सोचते की आधा खाली, ओ नकारात्मक दृष्टि से देखते हैं. लेकिन दोनो ही पहेलु सच तो हैं, लेकिन सत्य तो कदापि नहीं. क्योंकि सत्य तो यह हैं की, ग्लास पूरा भरा हुवा है. शायद उसमें पदार्थ अलग अलग हैं. आधा ग्लास पानी से भरा तो आधा ग्लास हवा से भरा हुवा हैं.
एक बार समर्थ रामदास एक जगह प्रवचन कर रहे थे, प्रवचन करते समय उन्होंने कहा की परब्रह्म सभी जगह भरा हुआ हैं. उतने एक आदमी उनके पास एक कटोरा लेकर गया, और कहने लगा इसमें परब्रहम भर दो, तो समर्थ ने कहा, मित्र यह तो पहले से ही भरा हुआ हैं. पहले इस कटोरे को खाली कर ले आओ बाद मैं इसे परब्रह्म भर दूँगा.
दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जो अपनी आखोंसे देखते हैं. उसे सच मान जाते हैं बहुत ही पुरानी बात, और इसे हम नए तरीके देखते हैं जैसा की दुसरे की बीवी हरेक को अच्छी लगती, लेकिन कब तक जबतक दूसरा यह शब्द जीवित हैं, तब तक. जब आप दूसरा शब्द निकाल देते हैं, तभी सब समांतर दिखने लगते हैं. दूसरा शब्द काल्पनिक हैं, जब हम दूसरा शब्द निकल देते हैं वह सत्य बन जाता हैं. हम इस भौतिक जीवन के आधार से बहुतसे बातों का निर्णय लेते हैं अगर वही निर्णय अगर हम अध्यात्मिक दृष्टी से परखते है तो हमें सच और सत्य में फर्क मालूम पड़ता है.
कुछ और बातें सच का समय के साथ साथ बदलाव होता हैं. लेकिन सत्य में कोई बदलाव नहीं होता. सत्य के लिए दूसरा पर्याई शब्द ही नहीं हैं.
समझो आपको आज एक लड़की सुंदर दिखती हैं. इसका मतलब यह तो नहीं की और कुछ दिनों के बाद भी वह सुंदर ही दिखेगी, अगर आपके सामने एक पत्थर रख दिया और पुछा गया यह पत्थर बडा है या छोटा? तो आपके पास कोई जवाब नहीं होगा, क्यूंकि आप तुलना नही कर सकते, तुलना करने के लिए आपके पास और एक पत्थर की आवश्कता है, तो आप बेहिचक उत्तर दे सकते हैं, क्योकि अब हमारे पास प्रमाण हैं, नाप तोल का साधन है, उसी प्रकार आप जिस लड़की को देखा उससे भी कई सुंदर लड़कियां हो सकती हैं. इस के बाद आपकी सोच में परिवर्तन आता हैं. इधर लड़की यह शब्द सत्य हैं लेकिन सुन्दरता यह सच हैं, और समय के साथ साथ सुन्दरता को परखने में भी परिवर्तन आता है.
JEEVAN
जीवन के इस सफ़र में बहुत से लोग मिलते हैं।
लेकिन कुछ लोग हमेशा के लिए यादगार बन जाते है।
कुछ लोग जीवन में धुन्दलिसी यादें छोड़ जाते हैं।
बार बार याद करनेसे कुछ धुन्द्लेसे चेहरे याद आते हैं।लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं!
जो मददगार बनकर खुद चले आते हैं।
लेकिन हम वही भूल करते हैं।
अक्सर उन्ही लोगोंके चेहरे भूल जाते हैं!
जिसे हम हमेशा पाते हैं,वही चेहरे भूल जाते हैं।
लेकिन कुछ लोग हमेशा के लिए यादगार बन जाते है।
कुछ लोग जीवन में धुन्दलिसी यादें छोड़ जाते हैं।
बार बार याद करनेसे कुछ धुन्द्लेसे चेहरे याद आते हैं।लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं!
जो मददगार बनकर खुद चले आते हैं।
लेकिन हम वही भूल करते हैं।
अक्सर उन्ही लोगोंके चेहरे भूल जाते हैं!
जिसे हम हमेशा पाते हैं,वही चेहरे भूल जाते हैं।
Monday, September 28, 2009
kabir- chahat
चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह । जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥
जब आदमी को लगता हैं की, मुझे यह चाहिए, मुझे वो चाहिए, लेकिन मिलता वही हैं, जो आपको मिलना है। हमारी चाहतों की कोई सीमा रेखा नहीं होती, लेकिन हर एक को कुछ ना कुछ चाहिए होता, जो आदमी पैदल चलता हैं उसे साइकिल की जरुरत होती है। जिसके पास साइकिल हैं उसे मोटर साइकिल की जरुरत होती हैं। और उसके बाद कार, बाद में कौनसी कार इसके लिए कोई भी सीमा नहीं।
संत कबीर कहते हैं,लेकिन दुनिया कोई ऐसा आदमी है जिसे कुछ भी नहीं चाहिए होता ओ तो राजा से भी बढ़कर हैं। उसके जैसा सुखी कोई नहीं हो सकता,होता भी नहीं और होगा भी नहीं
ऐसे इंसान राजा ही नहीं बल्कि भगवान् का रूप होते हैं, जैसे की भगवन बुद्धने आपना सर्वस्व त्याग कर जो मार्ग अपनाया। भारत में ऐसे बहुतसे महत्मा हो गए उनके बारे में जितना भी कहे वो बहुत ही कम है
जो असलियत में राजा है, वह सच है और संत कबीर ने राजा कहा है वही सत्य है।
जब आदमी को लगता हैं की, मुझे यह चाहिए, मुझे वो चाहिए, लेकिन मिलता वही हैं, जो आपको मिलना है। हमारी चाहतों की कोई सीमा रेखा नहीं होती, लेकिन हर एक को कुछ ना कुछ चाहिए होता, जो आदमी पैदल चलता हैं उसे साइकिल की जरुरत होती है। जिसके पास साइकिल हैं उसे मोटर साइकिल की जरुरत होती हैं। और उसके बाद कार, बाद में कौनसी कार इसके लिए कोई भी सीमा नहीं।
संत कबीर कहते हैं,लेकिन दुनिया कोई ऐसा आदमी है जिसे कुछ भी नहीं चाहिए होता ओ तो राजा से भी बढ़कर हैं। उसके जैसा सुखी कोई नहीं हो सकता,होता भी नहीं और होगा भी नहीं
ऐसे इंसान राजा ही नहीं बल्कि भगवान् का रूप होते हैं, जैसे की भगवन बुद्धने आपना सर्वस्व त्याग कर जो मार्ग अपनाया। भारत में ऐसे बहुतसे महत्मा हो गए उनके बारे में जितना भी कहे वो बहुत ही कम है
जो असलियत में राजा है, वह सच है और संत कबीर ने राजा कहा है वही सत्य है।
My New Peon
Aate jaate khoobsurat awaara sadakon pe kabhi kabhi ittefaq se kitne anjaam log mil jaate hai...
Un me se kuchh log bhool jaate hain, kucchh yaad rah jaate hai...
Un me se kuchh log bhool jaate hain, kucchh yaad rah jaate hai...
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