Wednesday, December 30, 2009

नववर्ष की बधाई.....


जीवन की  रेल  में,
सफ़र करते करते,
किसी ने कहा उतरो अब स्टेशन आया हैं.
मैं  यह सुनकर हैरान रह  गया
मन ही मन सोचने लगा,
हम स्टेशन पे आये,
या स्टेशन हमारे पास आया हैं.
सोचते सोचते एक और ख़याल  आया.
क्या नया साल भी इसी तरह आया,
जैसा की स्टेशन आया.
मैंने खिड़की के बाहर देखा.
फिरसे देखा, और परखा,
बहुत सारे अंक भाग रहे थे.
जिसमे पल मिनट और
घंटे समाये थे.
और दिन पर दिन, 
जैसे की भागते हुए पेड़ ,
और साथ में महीने भी 
भाग रहे थे,
अब मुझे यकीन हो चला था,
सब उसी जगह खड़े थे.
सिर्फ समय भाग रहा था.
उसे सिर्फ हम नंबर  दे रहे थे. 
शायद इसेही हम नया 
साल कह रहे थे.
और साथ में सभी को नववर्ष की 
बधाई दे रहे थे, बधाई दे रहे थे.

Saturday, December 26, 2009

नया साल आया...

नया जोश, नया होश लेकर  नया साल आया.
गतवर्ष को अतीतमें धकेलकर नया साल आया.

महंगाईके मारसे दब गए सभी आज.
शायद सस्ते होगे दाल, चीनी और अनाज.
दुआ करते शायद मिले सस्ता माल नया.

मंत्रीजी निभायेंगे दिय  हुय  सभी वादे.
नए साल में  नेक होंगे इनके  भी इरादे. 
आशा हैं, अब तो  न  खेले कोई  खेल नया.

ना हो कोई आतंकी हमला एहां फिरसे. 
सुरक्षित रहे  एहां सब  जिए ना कोई डरसे.
हमें मिलेगा उनके हर पहेली  का हल नया.

सोचते हैं, बाज़ार छलांग लगाकर भागेगा.
दुआ करते की अब पैसोंसे ही पैसा आएगा.
लगता है 'बैल' भी अपनाएगा एक हाल नया.

पेट्रोल और  डिसेल के भी  कम होगे दाम.
अब  हर सड़क पर होगी नहीं ट्राफिक जाम.
अब सब एहां अपनायंगे ट्राफिक रुल  नया.

बारिश हो अच्छी, फसल भी हो अच्छी.
किसान भी जिएगा अपनी गिंदगी सच्ची.
आत्माहत्या को छोड़कर जियेगा कल नया.

आशा हैं,  मुबारक नया साल हो सबके लिए.
नयी तरंगे नयी उमंगें नया अहसास सबके लिए.
भूलो गुजरे कलको अब, आया एक पल नया.
नया जोश, नया होश लेकर नया साल आया.

Wednesday, December 23, 2009

राज़ पिछले जन्म का...


              भारतीय टेलीविज़न के इतिहास में पहली बार  एक ऐसा कार्यक्रम दिखाया जा रहा हैं. जो आपको  पिछले जन्म  में ले जाता हैं. जिसका नाम हैं "राज़  पिछले जन्म का का" अब हमें यह समझने की जरुरत हैं की, यह "रिअलिटी" शो है या केवल शो हैं ? वहां जो लोग आते हैं ओ तो रियल हैं. लकिन राज़  यह हैं की क्या ओ सही में पिछले जन्म की घटनाएँ हैं ? अगर ओ सभी पिछले जन्म की घटनाएँ हैं तो,  क्या हर कंटेस्टेंट को जब भी पिछला जन्म
मिला क्या ओ सिर्फ इंसान का ही था ?
       हिन्दू मान्यताओके आधार से पिछला जनम निश्चित हैं, लेकिन यह निश्चित नहीं हैं  की हर जनम में ओ इंसान ही रहेगा. एक एक योनी में एक करोर से भी ज्यादा  बार जन्म लेने के बाद ही मानव जन्म मिलता  हैं.लेकिन एहां तो मानव जन्मोकी लाइन ही लगी हैं.


                 एक बार भगवन श्रीकृष्ण और अर्जुन हस्तिनापुर में से गुजर रहे थे. तभी उनकी नज़र एक मछुआरे पर पड़ती हैं. जिसके पास मछ्लियोंकी टोकरी थी उसमे बहुत सारी मछलिया थी. मछुआरा का पूरा अंग सोने के गहोनोंसे भरा था. उसे देखतेही अर्जुन ने वासुदेव से पूछा.
           "भगवन यह कैसा न्याय! जो दिन में इतनी सारी मछलियों को मारता हैं, फिर भी ओ उतना आमिर?
          "अर्जुन वह इसके पिछले जन्म का फल है जो इसे इस जन्म में मिल रहा हैं"
दोनोही आगे  चलते रहे और  थोड़ीही दूर में एक और दृश देखा  की एक हाथी  जिसके अंग पर लाखों चींटिया थे. जो हाथी के चर्म  पर सूक्षम प्रहार कर रहे थे. मजबूर हाथी कुछ भी नहीं कर सकता था. जैसा की जब हम छोटे से तिनके को कम समझ कर पैरो तले कुचल देते हैं  लिकिन  वही तिनका जब हमारे आंख में घुस जाता हैं. तब हमें
तिनके ताकत  मालूम पड़ती हैं.


तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥


ठीक इसी तरह चींटिया भी  तिनके सामान   इतने छोटे होकर भी बड़े से बड़े हाथी को दर्द दे रहे थे लेकिन उतना विशाल हाथी कुछ भी नहीं कर पा रहा था.  यह दृश देख कर अर्जुन ने  भगवानसे पूछा.


          "क्या इस हाथी के साथ न्याय हो रहा हैं"
          "अर्जुन तुम जिस हाथी को देख रहे हो, ओ पिछले जन्म में मछुआरा था.और उसके अंग पर जो  अनगिनत चींटिया देख रहे हैं ओ सब पिछले जन्म में  मछलियाँ थी, और इस जन्म ओ उसका बदला ले रहे हैं "


          अब हमारे मन यह सवाल आता हैं. क्या जानवर का जन्म याद नहीं आता? क्या जो कुछ दिखाया जा रहा हैं ओ सही हैं ?  क्या जब पिछ्ला जन्म याद आता हैं, सिर्फ इंसान का ही क्यूँ ?जानवर का क्यूँ नहीं ? बहुत सारे सवाल . क्या इन सभी सवालों का राज़  मिल पायेगा?  आखिर क्या हैं राज़  पिछले जन्म का?

Wednesday, December 16, 2009

खजाना लूटना ही हैं... ग़ज़ल

हमें भी जीवन का  खजाना लूटना ही हैं.
फिर खुद को मौज मस्ती पे टूटना ही हैं.

अब हमें नई जिंदगी जीने की चाह में.
गुजरे हुए वक्त पे आज हमें रूठना ही हैं.

आधी जिंदगी गुजर गई इस चाहत में.
आज हमें खुदसे भी उपर उठना ही हैं

ख़ुशी के  नये मकाम की तलाश में.
खुशीयोंके आसुओंसे रोकर फूटना ही हैं.

कुछ तो कर गुजरने की चाहत में. 
कभी खुद को भी मर मिटना ही हैं.

चलना था उसी बने बनाए  रास्ते में.
फिर उसी रास्ते  से भी तो  हटना ही हैं.

लूटे  खजाने को फिर से बांटना ही हैं.
जिंदगी से भी एक दिन छूटना ही हैं.

Saturday, December 12, 2009

"अवतार" का महाभारत...


   लगभग २०००  करोड़ रुपयोंमें बनी    होलीवूड  पिक्चर 'अवतार'  रिलीज  होनेवाली  हैं. जो एलीयन के कहनियों  पे आधारित हैं. एलीएन पे फिलमाए गए  बहुतसे पिक्चर रिलीज हुये और बॉक्स ऑफिस पर बहुत  सारा पैसा  भी बटोरा. लेकिन समझनेवाली बात यह हैं की क्या सच में एलीयन हैं? और ओ कहाँ हैं ? कैसे हैं क्या खाते होंगे? और क्या पीते  होंगे? बहुत सारे सवाल.
                   महाभारत में इसी आधार  पर एक कहानी हैं. एक बार भागवान श्रीकृष्ण और  अर्जुन के बिच बहस चल  रही थी की ब्रहमांड की उत्पति कैसे  हुई और भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन को कहा  की तुम्हारे इस सारे सवाल का जवाब सिर्फ बकादल्व्ये  ऋषि ही  दे सकते हैं.
                  फिर अर्जुन और किशन भगवान बकादल्व्ये मुनि के पास पहुँच गए.  महर्षि ने कहा  "इसका सरल उत्तर तो केवल ब्रह्मा ही दे सकते हैं". फिर  तीनो   मिलकर ब्रह्माके पास गए उन्हें यह जानना था की ब्रहमांड  की उत्पति कैसे हुयी. ब्रम्हा ने बड़ेही गर्व के साथ कहने लगे " मैंने ही  यह दुनिया  बनाई हैं".


कुछ ही पलों में  एक बड़ा  चक्रवात आया और चारों  ही  उड़कर एक अलग दुनिया में पहुँच गए वहां के  लोग बहुत ही विचित्र थे और इन लोगोंको देखकर हसने लगे. पूछने लगे की तुम कौन हो? एहां कैसे ? फिर ब्रहमदेव ने कहा "मैं ब्रहमांड रचानेवाल ब्रहमदेव  हूँ ". ओ लोग  हस पड़े और उन्होंने कहा "हमारा ब्रह्मा तो अलग ही हैं"
                        देखते देखतेही यह खबर उस दुनिया के ब्रह्मा के पास गई. दूसरी दुनिया  का ब्रम्हा बहुत ही क्रोधित हुआ और तुरन्त पहले ब्रह्मा के पास आया. उस ब्रह्मा को देखकर कृष्ण, अर्जुन और सब साथी चकित रह गए, क्यूँ की उस ब्रह्मा को ८ चेहरे थे.  अष्टमुखी ब्रह्मा जैसेही  इनको देख कर हस पड़ता हैं और कहता हैं की 'मैं ही इस ब्रहमांड का रचिता हूँ'.
                    फिर से एक बड़ा चक्रवात आया और देखते देखतेही सब तीसरी दुनिया में पहुँच गए. ओ भी सीधा  तीसरे ब्रह्मा के द्वार पर, और वहां उन्हें जो ब्रह्मा देखा  उसको १६ चेहरे थे. इन्हें देखकर तीसरे दुनिया का ब्रह्मा हसने लगा, और पूछने लगा 'तुम कौन हो ऐसे भयानक ? और खुदको परिचित करते हुए उसने कहा 'मैं ब्रम्हा हूँ इस  ब्रहमांड की रचना मैंने ही की हैं'.
            और एक बड़ा चक्रवात आया और देखते देखतेही सब चारवी  दुनिया में पहुँच गए. ओ भी ब्रह्मा के द्वार पर, और वहां उन्हें जो ब्रह्मा देखा  उसको ३२  चेहरे थे. इन्हें देखकर चारवी  दुनिया का ब्रह्मा हसने लगा, और पूछने लगा 'तुम कौन हो ?कौनसी दुनियासे आये हो? और खुदको परिचित करते हुए उसने कहा "मैं ब्रम्हा हूँ और ब्रहमांड का निर्माण मेरे ही शुभ हतोंसे हुआ हैं"          
           उतने में और एक बड़ा चक्रवात आया और  देखते देखतेही सब पांचवी  दुनिया में पहुँच गए और ओ भी सीधे  पांचवे ब्रह्मा के द्वार पर, और वहां उन्हें जो ब्रह्मा दिखा उसको ६४  चेहरे थे. इन्हें देखकर पांचवी  दुनिया का ब्रह्मा हसने लगा, और पूछने लगा तुम कौनसे जिव हो? कहांसे आये हो? और आपकी कौनसी दुनिया हैं?  ६४ मुह वाला ब्रह्मा  बड़े ही घमंड से कहने लगा   "मैं ब्रम्हा हूँ इस  ब्रहमांड की रचना मैंने ही की हैं".


                       यह सिलसिला चलता ही रहा,  इसी प्रकार अलग अलग ब्रहमांड से गुजरते हुए आखिर में और एक  ब्रह्मा के पास पहुँच गए, उसको १००० चेहरे  थे. फिर सहस्रमुख के ब्रम्हा ने सभी का स्वागत किया और एक बड़े सभा का आयोजन  किया. आप सभी इस ब्रहमांड रचनाकार हैं.आप सभी के साथ ही मैं हूँ. यह बात सुनकर सभी ब्रह्म्देओको अपना अभिमान याद आया और यह भी मालूम हुआ एहां कोई भी बड़ा नहीं सबके लिए अपना अपना स्थान हैं. और उस स्थान की एक सीमा हैं. लेकिन उस सीमा के आप हक्कदार नहीं बल्कि सिर्फ रचिता हैं.
            सवाल यह हैं की क्या ओ जो दुसरे दुनिया के ब्रह्मा थे, क्या ओ एलियन तो नहीं थे ? जी हाँ इस कहानी के पीछे जो सन्देश छिपा  हैं,ओ यह हैं  की इस ब्रहामंड में तुमसे भी अलग और बड़े जिव हैं. इस लिए घमंड मत करो की हमारी दुनियाही सबकुछ हैं.
            ज़रा सोचो हमारे  ग्रंथो में सब कुछ हैं. "अवतार" की कहानी भी एहांपर ही मिलती हैं. यही हैं, हमारे  ज्ञान का भण्डार और कहानियों का  शब्दकोष  जहाँ हर शब्द में कई कहानियां हैं. फर्क तो इतनाही हैं की, हम उसकी रुपरेखा बदलकर दिखाते हैं,जैसा की "अवतार" में जो कहानी दिखाई गई हैं.  अगर हम इस महाभारत की कथा का उपयोग नये  ढंग से, या ब्रह्मा के जगह एलियन को बताकर करते हैं तो जरूर बनेगा   'अवतार' का महाभारत.

Wednesday, December 2, 2009

सहारा मिला था.....ग़ज़ल



तुफानोसें टकराकर दिलकी कश्ती को किनारा मिला था.
जिंदगी में पहली बार हमसफर का सहारा मिला था.

हरतरफ उलझे हुए चेहरे,पहचानना भी मुश्किल था.
राह पर चलते चलते एक बेनकाब चेहरा मिला था.

समां भी खुशी से समाया नही जा रहा था.
पल भर के लिए समय भी ठहरा मीला था.

गर्म हवा में भी मौसम सुहाना लगता था.
दोपहर की कड़ी धुप में भी कोहरा मिला था.

जिंदगी जीने का एक नयासा अंदाज़ मीला था.
सांसो की निगाह पर भी एक पहरा मिला था.

धड़कन की खुशबु का अहसास सासों में मीला था.
दिल पर गुनगुनाता हुआसा एक भवरा मिला था.

अब तो सांसे भी रुकी , उसे नया मोहरा मीला था.
धड़कन पर भी, अजनबीका पचम लहरा मीला था.