जीवन की रेल में,
सफ़र करते करते,
किसी ने कहा उतरो अब स्टेशन आया हैं.
मैं यह सुनकर हैरान रह गया
मन ही मन सोचने लगा,
हम स्टेशन पे आये,
या स्टेशन हमारे पास आया हैं.
सोचते सोचते एक और ख़याल आया.
क्या नया साल भी इसी तरह आया,
जैसा की स्टेशन आया.
मैंने खिड़की के बाहर देखा.
फिरसे देखा, और परखा,
बहुत सारे अंक भाग रहे थे.
जिसमे पल मिनट और
घंटे समाये थे.
और दिन पर दिन,
जैसे की भागते हुए पेड़ ,
और साथ में महीने भी
भाग रहे थे,
अब मुझे यकीन हो चला था,
सब उसी जगह खड़े थे.
सिर्फ समय भाग रहा था.
उसे सिर्फ हम नंबर दे रहे थे.
शायद इसेही हम नया
साल कह रहे थे.
और साथ में सभी को नववर्ष की
बधाई दे रहे थे, बधाई दे रहे थे.
बहुत उम्दा!!
ReplyDeleteयह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
मैंने खिड़की के बाहर देखा.
ReplyDeleteफिरसे देखा, और परखा,
बहुत सारे अंक भाग रहे थे.
जिसमे पल मिनट और
घंटे समाये थे.
और दिन पर दिन,
जैसे की भागते हुए पेड़ ,
और साथ में महीने भी
भाग रहे थे, बहुत खूब, लाजबाब ! नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !
Ek dum sahi hai uncle ! Aap such me ek achhe Sahityic ho. Aapko nav Varsha ki hardik shubh kamnaye
ReplyDeleteअब मुझे यकीन हो चला था,
ReplyDeleteसब उसी जगह खड़े थे.
सिर्फ समय भाग रहा था
यह वक़्त है
बदलते रहना इसकी फितरत है
नव वर्ष की शुभकामनाएं!