Friday, November 27, 2009

नोबल पुरस्कार किसे........



नोबल पुरस्कार दुनिया का सबसे महान पुरस्कार हैं। और ओ केवल अच्छे कामों के लिए ही दिया जाता हैं। लेकिन हमारे एक नेता का कहना हैं की अगर गन्दगी के लिए पुरस्कृत करना हो तो भारत अव्वल नम्बर आता और नोबल पुरस्कार भी मिलता यह सब क्यूँ कहना चाहतें हैं। इस गन्दगी के लिए जिम्मेदार कौन? मैं उस नेता को पूछना चाहता हूँ की अगर रिश्वत लेने के लिए नोबल पुरस्कार होता तो किसे मिलता?



६ अगस्त १९४५ के दिन जापान के शहर हिरोशिमा पे परमाणु बम हमला हुआ था। उसके दो साल बाद हमारा भारत देश आज़ाद हुआ। आज अगर आप हिरोशिमा को देखते तो कहते, क्या वो वही शहर हैं, जो पुरी तरह तबाह हो गया था। अगर हम इससे तुलना करते हैं तो आज हिरोशिमा हमारे शहरोंसे १० से १५ साल आगे हैं। इसका मतलब यह हैं की हम तक़रीबन १० से १५ साल पीछे हैं।

एक बार जापान के PM और हमारे PM के बिच वार्तालाप हुई। जब जापान के पिएम ने कहा की अगर आप हमें एक सालके लिए आपका पिछड़ा हुआ राज्य देते तो हम उसे जापान जैसा ही बना देंगे। लेकिन हमारे पिएम ने कहा, अगर आप जापान हमें सिर्फ़ एक महीने के लिए दे दो हम उसे हमारे पिछड़े हुए राज्य जैसा ही बना देंगे।



हमारे देश में सरकार का चुनाव करना हमारे लोगों के हाथ में हैं। फिर भी हम इतने पीछे क्यूँ? इसके लिए हमारे सिस्टम में परिवर्तन लाना जरुरी हैं। हम अगर दो ही पक्षों को चुनाव की अनुमति देते हैं तो हमारे पास एक विकल्प होता की कौन से पार्टी को जिताना हैं, और क्यूँ? हमारे एहां जनमत का विभाजन सही तरीकेसे नही होता। क्यूँ की एक जगह के लिए दस दस उम्मीदवार खड़े होते हैं। और हम सही अंदाज नही लगाते की किसको जिताना हैं। और इसी तरह हम हमारे प्रगति का रास्ता बंद कर देते हैं। अगर हमारे पास अगर दो में किसी एक का चुनाव करना होता तो हम निश्चिंत होकर किसी एक को जिताते। और हमें सही नापतोल मिलता की कौन कितना सही हैं। किसने अच्छा काम किया हैं। अगली बार किसे जिताना हैं।



क्या हम सब इससे सहमत हैं। हमें पहले यह जानना जरुरी हैं की क्या सही हैं क्या ग़लत हैं। अगर हम ऐसाकर पाते तो हमारा देश भी 'नोबल' नेताओं की दौड़ में सबसे आगे होगा। आज हमारे पास प्रतिभा की कोई कमी नही हैं। आज हमारे वैज्ञानिक विदेश में रहकर नोबल पुरस्कार जित रहे हैं। हम यह चाहते हैं की ओ स्वदेश में रहकर जीते। इस राम, बुद्ध , और नानक की धरती का अपमान करना छोड़कर, यह सोचने की जरुरत हैं की इस समस्यासे कैसे निपट सकते और इसके लिए हमें क्या करना चाहियें? मुझे तो नही लगता की की हमारा देश उस नेता की सोच से ज्यादा गंदा हैं। अब सोचो नोबल पुरस्कार किसे .......

Monday, November 23, 2009

किस्सा राममंदिर का



आज हमें एक ऐसा किस्सा चाहिए को जो जीवन भर चल सके। सत्ताधारी और विपक्ष अपने अपने तरीके से इसका प्रयोग कर सके । इसके साथ साथ मीडिया भी अपनी रोटियां सेंक कर पेट भर सके। अभी हमारे पास एक बड़ा मुद्दा हैं। आप सब इससे अच्छी तरह से वाक़िफ हैं। यह एक ही मुद्दा ऐसा हैं की, सभी लोगोको इक्कठा कर सकता हैं। और जरुरत पड़े तो भारत को तोड़ भी सकता हैं। ओ हैं "बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि "
जरा सोचो, अगर हमारे पास यह विषय नही होता तो क्या होता? हमारे नेताओं को नए मसले की खोज रहती। शायद मीडिया को भी नया और इससे मसालेदार किस्सा खोजना पड़ता। कभी कभी यह किस्सा इतना भारी बन जाता हैं की, कश्मीर का किस्सा भी इसके सामने फीका नज़र आता हैं। कितने साल बीत गएँ इस ढांचेको गिराकर फिर भी ये मसला सबके लिए नया हैं। हमारे एहां दो तरह के लोग रहते हैं। कुछ लोग हिंदू(मतदाता) के तरफ़ हैं। कुछ लोग मुस्लिम (मतदाता) के तरफ हैं। जो हिंदू के तरफ़ हैं। ओ यह बताते हैं की हम मन्दिर बनायंगे और जो मुस्लिम के तरफ़ हैं ओ कहते हैं जिसने भी यह ढांचा गिरया हैं उसे हम सजा दे कर ही दम लेंगे।


हम किस जगह पर मन्दिर बनायेंगे ? और क्यूँ ? मेरा कहना तो यह हैं की आप मन्दिर बनाने के बारें में सोचानाही नहीं। मैं सभी हिन्दुओं को कहना चाहता हूँ की मन्दिर के लिए बहुत ही कम जगह चाहियें। मन्दिर किधर भी हो, हमें तो हरी का स्मरण ही तो करना हैं। हमारा शरीर ही एक मन्दिर हैं। उसमे जो आत्मा हैं वही हमारा भगवान हैं। यही हमारे संतोने कहा हैं।
सोचने वाली बात यह हैं की इस्लाम की स्थापना सातवी सदी में हुई। क्या उसके पहले भी मस्जिद हुआ करते थे, या उसके पहले लोग अल्लाह इश्वर को मानते ही नही थे?
जब जीसस को क्रूस पर बांधकर गोल्गुथा के पहाड़ पर ले जा रहे थे वहाँ एक लाख से भी ज्यादा लोग देख रहे थे। लोहालुहान जीसस ने सभीसे गुजारिश की, कोई पिने के लिए पानी दे। लेकिन एक आदमी भी आगे नहीं आया। आज दुनिया में जीसस के चाहनेवाले सबसे ज्यादा हैं। एहिं समय का परिवर्तन हैं।
सौ साल के बाद भी यह किस्सा ऐसा ही रहेगा। फर्क सिर्फ इतना होगा की तब हिंदू अल्पसंख्यक होगे। और देश का पिएम कोई "गांधी" ही होगा। जिसका नाम .........गांधी हो सकता हैं। लेकिन उस समय ओ अल्पसंख्यकको की समस्यां को जरुर सुनेगा। और मीडिया का भी पुरा सहयोग(गांधी और अल्पसंख्यकको) मिलेगा। और मंदिर बनाने का वादा भी। समय का इन्तजार करो। यही हैं किस्सा राममंदिर का।

Monday, November 16, 2009

हम हिन्दुस्तानी


हम हिन्दुस्तानी हैं। इसका हमें गर्व हैं। सबसे पहले हमें यह सोचना जरुरी हैं की,क्या हम अपनी विचारधारा का विभाजन कर रहें हैं? या देश का ? किसी भी हिन्दुस्तानी को गर्व के साथ कहना चाहिए की हम भारतीय हैं। आज हमारी भाषा, हमारा रहनसहन अलग हैं। हम कभी कभी यह गलती कर बैठते हैं की , सचिन जैसे महान खिलाड़ी को भी हम सीमारेखा के बोज़ तले दबा देते, और ओ कह नही सके की हम हिन्दुस्तानी हैं। कौन हैं इस के लिए जिम्मेदार? मैं यहाँ किसी एक आदमी का नाम नही लेना नही चाहता क्यूँ की इसमे हम सब शामिल हैं। ऐसी ख़बर को हम चस्का लगाकर सुनते, पढ़ते और देखते हैं। इसके साथ हमारा मीडिया भी उतना ही जिम्मेदार हैं। क्यूँ की एक हिन्दुस्तानी को यह बताने की नौबत क्यूँ आई की हिन्दुस्तानी हूँ। क्या हमें उस पर शक कर रहे हैं? या जानबुझकर महनायक को किसी विवादों में खिंचकर क्या साबित करना चाह्ते हैं ?

इन सभी बातों का मेरे पास जवाब हैं। हमारा मीडिया पहले चिंगारी लगाकर उसपे दिन रात तेल डालते रहता हैं। क्या इन सब बातों की कोई सीमा हैं ही नही ? आज भारत देश में हजारो समस्याए हैं। जो कही ऐसे गाँव हैं, जहाँ अभी तक पिने का पाणी, या सड़क आदि , ऐसे और बहुत ही मुद्दे हैं। जिसे मीडिया लोगों के सामने ला सकता हैं। लेकिन नही, हमारे मीडिया को सनसनीखेज किस्से चाहिए, जो की एक बड़ी ख़बर बनाकर उसे पेश कर सके। उसके लिए, किसी महान खिलाड़ी या महानायक का चुनाव करके अपने रेट के साथ साथ अपने समाचार पत्र या चैनल का भी जोर शोर से इस्तमाल करते हैं। प्रजातंत्र में मीडिया स्थान बहुत ही ऊँचा हैं। क्या हमारा मीडिया महान हस्तियों का इस्तमाल टीआरपि के लिए नही कर रहा हैं? शायद आज हमारे देशवाशियों को फिरसे राष्ट्र गीत सुनाने की जरुरत है। जिसमे सभी प्रान्तों का वर्णन हैं। क्या हमारा मीडिया का समतल इतना गिर गया की, किसी भी व्यक्ति का इस्तमाल कर के उस ख़बर को बढ़ा चढा कर लोगों को बताते हैं।
मीडिया में बहुत ही प्रतिस्पर्धा हैं लेकिन, इसका मतलब यह तो हरगिज़ नही की, ख़बर का इस्तमाल करके किसको दिखाना चाहते हैं, की हम भारतीय एक नही। हम मीडिया वाले से यह गुजारिश करना चाहतें हैं की, यह सभी खबरे हमारे पड़ोसी मुल्क के लोग भी देख रहे हैं। जो इसका फायदा जरुर उठाएंगे। आतंकवादी भी आपके ख़बरों का जायजा ले रहे हें। दुनीया में हमारा देश ही एक ऐसा देश है की, जहाँ वन्दे मातरम् के खिलाप आप कुछ भी कह सकते हैं। क्यूँ की हमने कई सीमाए बनाई है। जिसे हम देश से भी बड़ा समझते हैं। जैसा की हमारा राज्य देश से बड़ा हैं। या हमारे वसूल,हमारे नियम और हमारी मान्यताए , क्या यह सब देश से बड़े हैं? या हमारा मीडिया इससे बड़ा हैं? सुनो देश यानि एक जमीं का टुकड़ा नही बल्कि देश यानि हम लोग। हम हिन्दुस्तानी।





Saturday, November 14, 2009

चाय साब! पेशल चाय!



एक गाँव में नया बालभवन बनया गया, और उसके उदघाटन  के लिए मंत्रीजी को आमंत्रित किया गया. उस उदघाटन समारंभ का  इंतजाम  गाँव के सरपंच के जिम्मे था.सरपंच के समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था. सरपंच मन ही मन में सोचने लगा की,मंत्रीजी ने अचानक ही  कैसे ? रातोरात पूरा इंतजाम... शायद मुझे ही मौका मिलता...
       गाँव में  खबर हवा की तरह  फ़ैल गयी की मंत्रीजी आने वाले हैं.  बाल दिवस के अवसर पर. गाँव के सरपंच  ने तत्काल सभी लोगो को आमंत्रित किया और कहने लगे.
"कल हमारे गाँव में मंत्रीजी आ रहे हैं, बालभवन के उदघाटन के लिए. मैं सभी लोगों से निवेदन करता हूँ की  आप  लोग उपस्थित  रहकर गाँव की शोभा बढायंगे, येही मेरी आशा हैं  ".
रातोरात टेंट तैयार  हो गया और लोगों के बैठने का भी इंतजाम भी हो गया. नेता को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी और पूरा मैदान  लोगोसे भर गया.  कुछ समझदार लोग  अभी अभी आ रहे थे शायद उन्हें पता था की मंत्री का वक्त यानि   बेवक्त की बरसात.   उसके बाद हमारे मंत्री साहब आ गए ओ भी  तक़रीबन दो घंटे देरीसे.  मंत्री का स्वागत बाल गोपलोने  गाना गाकर किया.  सरपंच ने मंत्री साहब को नारियल देकर, गले में पुष्प माला दालकर   मंत्रीजी के हाथ में कैंची थमा दी. मन्त्री जी ने रिब्बन काट कर बालभवन के उदघाटन किया . मंत्रीजी अपना भाषण शुरू किये.
"प्यारे  भाइयो  और बहनों आज मेरा भाग्य हैं की मैं आपके बिच में हूँ . सबसे पहले मैं  आप लोगों से माफ़ी चाहता  हूँ की,  मैं समय  पर नहीं आ सका. क्यूँ की उसके लिए भी एक कारण हैं. एक बार, एक कर्यक्रम में गलतीसे  सही  वक्त पर पहुंचा, और मैं हैरान रह गया की वहां सिर्फ चार लोगों के सिवा कोई भी मौजूद नहीं था . उस  घटना  के बादसे मैंने यह निर्णय ले लिया हैं की, किसी भी कार्यक्रम को दिए गए  समय को उपस्थित नहीं रहूंगा . आज का दिन हमारे  लिए बहुत ही महत्व का हैं,  जिसे  बाल दिवस के रूप  में मानते हैं. और इसी मौके पर हमने जो बालभवन बनया, इसके पीछे   हमारा  उद्देश  यह हैं की, हम बाल मजदूरी जैसी  समस्या को जड़ से उखाड़ देंगे, इसलिए  हमने यह बालभवन बनया हैं.  क्यूँ की बच्चे मुफ्त मे शिक्षा ले सके. आप सभी  लोग से मेरा यह अनुरोध हैं की, सभी बच्चोंको बालभवन भेज कर उन्हें जरुर  पढाना. हामारी सरकार ने कई और बालभवन बनाना चाहती हैं, जो हर गाँव शिक्षा की तरफ बढ़ सके. मुझे यकीन  हैं की, आप सब ,मेरे बातों  से सहमत हैं.  आज हमारी सरकार सत्ता में आने के बाद, गाँव गाँव में पाणी, बिजली और सड़क का काम बहुत  ही तेजी से किया हैं. आज हर घर में बच्चे  स्कूल जाते हैं.  यह तो हमारी सरकार के कामकाज का जरासा नमूना हैं.  अब आपसे एक गुजारिश करना चाहता  हूँ की, आप मुझे और मेरी पार्टी इसी तरह जीतायंगे.  मैं अभी मेरा भाषण समाप्त  करने की इजाज़त चाहता हूँ. क्यूँ की मुझे अभी आगले कार्येक्रम को जाना हैं.  वहां  लोग मेरा इन्जार कर रहें होगे.   जय हिंद! जय हिंद!"

 कार्यक्रम अच्छी तरह से संपन हुआ. सरपंच और उसके साथी बहुत ही खुश थे. एक साथी ने पूछा.
"सरपंचजी  इतना सब इतजाम कैसे  संपन हुआ, और ओ भी इतने कम समय में.

 "सबसे पहले मैं टेंट वाले को बुला लिया, उसे कहा रातोरात काम होना चाहिए, लेकिन उसने कहा साहब मेरे पास टेंट का सामन तो हैं, लेकिन लेबर्स  नहीं हैं.  फिर रामू से कहकर उसके होटल में काम करने वाले चार बच्चोंको बुलाकर रातोरात टेंट का काम करवाया".
"आपने सही किया! आखिर बाल दिवस का इंतजाम बच्चे ही तो करंगे, और कौन करेगा".
सभी ने हसीं का ठहका लगा  दिया, सरपंच ने इशारे से  ही  रामू को चार पेशल  चाय भेजने को कहा.  थोडीही देर में  एक दस साल का लड़का  चाय ले आया,  चाय का ग्लास सरपंच की और बढाकर बोला,
चाय साब! पेशल चाय!

 



Friday, November 13, 2009

फिल्म ही फिल्म....

 इधर 'बरसात' तो उधर 'आग'.
'बरसात की एक रात' में 'आग ही आग'.

जहाँ 'शबनम' वही 'शोले'.
जहाँ 'दिल' वही 'दिलजले'.
जहाँ 'साया' वही 'सुराग'.
'बरसात की एक रात' में 'आग ही आग'.

जहाँ 'गीत' वही 'सरगम'
जहाँ 'मीत' वहां 'संगम'
जहाँ 'पापी' वही 'दाग'
'बरसात एक रात' में 'आग ही आग'

जहाँ 'ब्रम्हा' वहीँ 'त्रिदेव'
जहाँ 'अर्जुन' वहीँ   'देव'
जहाँ 'सिन्दूर' वही 'खून भरी मांग'
'बरसात एक रात' में 'आग ही आग'

जहाँ 'बादल' वहीँ 'दामिनी'
जहाँ 'सुर  वहीँ 'रागिनी'
जहाँ 'चिंगारी' वही 'चिराग'.
'बरसात की एक रात' में 'आग ही आग'

जहाँ 'सुर' वहीँ  'ताल'
जहाँ 'चालबाज़' वही 'मालामाल'
जहाँ 'जीवन' वही 'बैराग'
'बरसात एक रात' में  'आग ही आग'

Tuesday, November 10, 2009

शपथ का नाता दिल से जोडो भाषा से नहीं ...


एक गाँव में बहुत ही पुराना मंदिर था. लोग श्रद्धासे  उस मंदिर में आते थे और पूजा अर्चना करते थे. गाँव किसी एक  राज्य की  सीमा रेखा में आता था, गाँव की भाषा,उस राज्य की   भाषा नहीं थी, राज्य की भाषा का प्रयोग करनेवाले लोग न के बराबर थे. सभी लोग पडोसी राज्य की  भाषा  का प्रयोग किया  करते थे. यांनी की मंदिर की पूजा गाँव की भाषा  में ही होती थी. उस देवी के मदिर में दोन्हो ही  राज्यों के लोग आते थे. कुछ दिनों बाद यह  मंदिर बहुत  ही प्रसिद्ध  हो गया और अब वहां पुरे भारत देश   के लोग आते थे,  लोगो  की आस्था थी, सभी  भारतीय लोग अपनी अपनी  भाषा में भगवान  की  प्रार्थना करते थे.

      कुछ दिन  बीत गए समय के  साथ  साथ  लोगों  की विचार  करने की द्रष्टि   बदल  गई   राज्य  के लोग कहने लगे की मंदिर हमारे  राज्य में  हैं,  फिर भी ओ पूजा गाँव की भाषा  में क्यूँ करते है ? इसी  वाद और विवाद से  दो गुटों के बिच हथापायी  हुई फिर मामला कोर्ट कचहरी  तक गया. फिर मंदिर के द्वार बंद कर दिए गए और द्वार पर एक बडासा  ताला  लगा दिया गया.  लेकिन लोगों की  भीड़  कम नहीं हुइ  लोग आते रहे और बाहरसे दर्शन लेकर जाते रहे यह सिलसिला तो चलता ही रहा. 

         इससे  पहले हमें यह जान लेना जरुरी हैं की, भगवान कौन सी भाषा में प्रार्थना  सुनता हैं.  दुनिया में कई भाषाएँ हैं भगवान की कौन सी भाषा हैं ? भगवान  के लिए भाषा की नहीं बल्कि भाव की जरुरत हैं. भगवान को श्रदधा  की जरुरत हैं. फिर भी हम जोर जोर से गाते हैं, लोउड स्पीकर भी लगाते हैं  यह सब किसको सुनाने के लिए ? पब्लिक को या भगवान  को ?


            संत कबीर एक मुल्ला को अजान करते  देख कहते हैं. तेरा खुदा  क्या बहीरा हैं.  अगर चींटी के पैर में  घुंघरू बांधे  तो भी भगवान  को सुनाई  देता हैं.  आप को भगवान ने बोलने की क्षमता  दी इस लिए आप गाते हैं , बोली का उपयोग करते हैं . अब मुझे भगवान से यह पूछना चाहिये की गूंगा कौन सी  भाषा  में प्रार्थना करता हैं ? क्या गूंगे की प्रार्थना भगवान को सुनाई  नहीं देती ? या गूंगे को प्रार्थना करने का अधिकार हैं ही नहीं ?  हमें  भी प्रार्थना ठीक गूंगे की तरह ही करना चाहिए.

            कल की ही बात हैं एक नेता हिन्दी में शपथ ले रहां  था. कुछ मराठी भाषीकोने  , उसे मराठी में शपथ लेने को कहा. बात  हथापायी  तक उतर आई.  अब मेरा कहना यह हैं हम किसी को जबरदस्ती से नहीं कह सकते की तुम मराठी में ही शपथ लो. क्यूँ की शपथ की कोई बोली नहीं होती, शपथ एक भाव हैं जिसका स्वीकार ही  प्रेम  हैं  जिस के लिए आप वचनबध्ध हैं. शपथ को हम किसी एक  भाषा या बोली में बांध नहीं सकते,   अगर उस का पालन ही नहीं करना हैं तो कौनसी भाषा ,कौनसी बोली या कौनसी   शैली ये कुछ भी मायने नहीं रखता. क्यूँ की शपथ में जिस भाषा का उपयोग किया जाता हैं ओ  स्टेज में जाकर लोगो को बताने के लिए नहीं, बल्कि शपथधारक  उसका अर्थ समझ सके और सही तरीके से पालन कर सके .शपथ भाषा में हो, लेकिन बोली में नहीं,  यहाँ कौन सी भाषा में शपथ लेता हैं इस से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण यह हैं की ओ शपथ को समझा  या नहीं,  और उसका कैसा पालन हो ....शपथ तो वचन हैं, अपने कर्त्तव्य की  भावना को जागृत करने का. शपथ का नाता दिल से जोडो भाषा से नहीं ...

Saturday, November 7, 2009

परलोक में भी भारत का डंका......





साल २०१२ में प्रथ्वी पर मानव जाती पूर्णता नष्ट होनी वाली है ऐसा माया कैलेंडर का कहना हैं. हमारे तेज न्यूज़ चैनल भी पीछे ही नहीं बल्कि मसाला डालकर लोगों को विस्वास में ले रहे हैं की सही में प्रकोप आयेगा और पूरी दुनिया तबाह हो जायेगी.
समझो अगर ऐसा होता हैं तो क्या होगा ? स्वर्ग और नरक में क्या होगा ?
यमधर्म ने भगवान इन्द्रदेव को एक सन्देश भेजकर तत्काल 'मीटिंग' कराने की सलाह दी. इन्द्र ने मीटिंग को सभी मान्यगन को निमंत्रित कीया.
मीटिंग का एजेंडा कुछ इस तरह था यमधर्म कहने लगे.
"प्रथ्वी से भारी संख्या में जिव आ रहे हैं. सभी जीव भूलोक से स्वर्ग लोक तक कतार में खड़े हैं. चित्रगुप्त ने परलोक के द्वार बंद कर दिए हैं.

     हमारी पहली प्राथमिकता यह हैं , की उनके लिए जगह का प्रबंध करना . चित्रगुप्त दिन रात मेहनत करने के बाद हिसाब किताब नहीं कर पा रहे हैं. हमारे पास MANPOWER की बहुत ही कमी हैं. और जो जगह बची है ओ भी प्रयाप्त नहीं हैं. हमें और जगह चाहियें स्वर्ग में तो ज्यादा जगह हैं, क्यूँ की हमें यकीन हैं ९५% लोग नरक में दाखिल होंगे. स्वर्ग की  COMPOUND WALL तोड़कर नरक के लिए जगह मुहय्या करनी पड़ेगी".
इन्द्र देव ने कहा
" यमराज क्या यह संभव हैं ? हमारे पास ज्यादा देवगन हैं और हमें खुली हवा चाहिये इससे हमें ज्यादा प्रॉब्लम होगी क्यूंकि स्वर्ग और नरक के बीच में अंतर कम हो जायेगा और नरक की सारी घटनाएं स्वर्ग में सुनाई देगी इससे स्वर्ग और नरक में क्या फर्क रह जायेगा?.किसी भी हालत में स्वर्ग की जगह नरक को नहीं मिलेगी"
.यमधर्म ने कहा.
"ठीक हैं हम सभी लोगों को स्वर्ग में भेज देंगे"
इन्द्रदेव के माथे पर तनाव की लकीरे दिखने लगी, फिर थोडा सोच कर देवराज ने कहा.
"पश्चिम के तरफ जो पहाडी इलाका हैं उसे आप ले सकते हैं"
"ठीक हैं'
"उसमेसे कुछ जगह मैं आपको देता हूँ"
यमराज आसन से उठकर कहने लगे.
"अब हमारी दूसरी समस्या हैं MANPOWER नरक मे सहायक यमों की संख्या बहुत ही कम है. और हमारे चित्रगुप्त को भी बडा ग्रुप चाहिये जो सब कुछ हिसाब किताब रख सके. क्या आप कुछ देवताओं को इस काम के लिए दे सकते हैं ?
"हमारे सभी देवगणों को पहले ही बहुत काम हैं , चाहे तो मैं एक सलाह देता हूँ."
"ठीक है, लेकिन आपकी सलाह उपयुक्त होनी चाहिए"
"आप ऐसा करो जो धरती से जो जीव आते हैं, उन्हीमे से कुछ जीवों को नियुक्त करो,जिनको इन सभी का अभ्यास और अनुभव हो "
"ठीक हैं! चित्रगुप्त आप एक सूची तैयार करो, लेकिन याद रहें की पापी को कोई जगह नहीं मिलनी चाहियें.जब
तक हर एक जीव का पूरा हिसाब नहीं मिलता तब तक कोई फैसला नहीं होना चाहियें"
"लेकिन जो जीव कतार में खड़े हैं उनका क्या?"
"उनके लिए एक तम्बू लगा दो,और सुनो उस पर WAITING HAAL का फलक लगा दो"
सभी इंतजाम हो गया और कुछ दिन के बाद सभी काम सुचारू रूप से चलने लगा.लेकिन एक बडी समस्या खड़ी हो गई.अब स्वर्ग में लोग ज्यादा आने लगे यमराज का हिसाब गलत निकला.अब तो यहाँ बीस से पच्चीस प्रतिशत लोग स्वर्ग में आने लगे. इन्द्रदेव ने यमराज को बुला लिया और दोनों ने मिलकर एक अहम फैसला लिया. नारद मुनि को जाँच के लिए नियुक्त कर दिया.
और कुछ दिन बीत गएँ नारद मुनि रिपोर्ट पेश की,नारदजी ने कहा.
"इस रिपोर्ट के हिसाब से स्वर्ग में जो भी लोग हैं. उन्ही में ज्यादातर भारतीय हैं.मेरा शक और बढ़ गया मैंने एक आदमी की रिपोर्ट देखि मुझे बहुत ही ठीक ठाक लगी  मैंने पुरे लोगों की रिपोर्ट देखि उसमे कोई भी खराबी नज़र नहीं आयी. फिर मैंने चित्रगुप्त की मुख्य सलाहकार की रिपोर्ट देखी तो मुझे पता चला की, उसने ही सभी लोगों की रिपोर्ट बदल दी थी. क्यूँ की ओ भारत देश में एक नेता था रिश्वत लेकर सभी लोगों को स्वर्ग भेज दिया था. लेकिन सोचने वाली बात यह थी की उस नेता को यह पद कैसे मिला ? यही था... परलोक में भी भारत का डंका...... "

Wednesday, November 4, 2009

VANDE MATARAM

जब  इंसान जैसा प्राणी धरती पर आकर अपने आपको सीमाओं में बांटता चला गया. सबसे पहले घर की सीमा बाद में अपने गाँव की सीमा फिर तहशील की,जिल्हे की,राज्य  की, फिर देश की.
      लेकिन कुछ दिनों बाद यह सीमाएं बढती गई और लोगों की विचारधारा की जिसे हम "समुदाय"  कहते तो बेहतर होगा क्यूँ की हम इसे "धर्म" तो कदापि नहीं कह सकते. धर्मं का मतलब ही अलग हैं. जब हम हिन्दू, इस्लाम, सिख या इसाई, इनके सामने धर्म शब्द का उपयोग करना  उचित नही होगा, तो समझ लेना की हमें  धर्म का  सही अर्थ मालूम ही  नहीं. शायद  हमारी  धारनाए बहुत  ही गलत हैं.  क्यूँ की धर्म का मतलब ही  अलग हैं, जो सत्य शब्द का समंतार रूप हैं.  अभी सत्य किसी एक समुदाय का प्रतिक तो नहीं हो सकता. अब हमें  एक पर्यायी   शब्द सोचना होगा जो हर समुदाय को जोड़ सके या  समांतर अर्थ दे सके. मेरे हिसाब से धारणा एक शब्द है जो किसी भी समुदाय को जोड़ा जा सकता हैं .  यहाँ  धारणा शब्द का प्रयोग उचित होगा,जैसा की हिन्दू धारणा  इसी प्रकार इसाई या इस्लामी धारणा,  शब्द प्रयोग कर सकते हैं.
स्वधर्मे निधनम् श्रेयहा  | परधर्मो भयावहा |
अब यहां धर्म का मतलब ,जब कोई गलत काम कर रहा हैं तो  उसे रोकना,  इंसान का धर्म होता हैं,धर्म हैं और रहेगा.  इसे  ही हम स्वधर्म कह सकते हैं.  अगर आप स्वधर्म में जियोगे  तो श्र्येय होगा. हम सत्य के साथ अपना जीवन व्यतीत करना चाहते तो धर्म के यानि सत्य के साथ मरना ही  उचित होगा .अगर आप किसी अधर्म के साथ जीवन व्यतीत करते  हैं तो वह भयानक या भयभित होगा.
      गीता के पहले अध्याय में भी येही कहा गया हैं. जो धर्मक्षेत्र जैसे कुरुक्षेत्र में कौरव और पांडव की सेना खड़ी थी. अब सोचने बात यह हैं की,उस क्षेत्र को धर्म क्षेत्र क्यूँ कहा गया हैं? कुरुक्षेत्र तो ठीक हैं लेकिन धर्मं क्षेत्र क्यूँ ? इसका एक ही मतलब, जहाँ हम सत्य के लिए लड़ते  हैं.  या सत्य के लिए लड़ रहे हैं वही हमारा  धर्मं क्षेत्र कहलाता हैं.
आज हम देखते हैं यहाँ  अलग अलग धारणा के लोग रहते हैं. सत्य तो यह हैं की सब लोग खाते हैं, पीते हैं,हासते हैं रोते हैं. क्या हम कहते हैं फलां आदमी इस्लाम  है ओ सोता नहीं, फला आदमी इसाई हैं ओ कभी रोता नहीं, या फला आदमी हिदू हैं, खाना खाए बिना ही रहता हैं. जी नहीं! हम सब इंसान हैं हमारे  नियम  हम बना सकते हैं.  फलां आदमी हिदू है ओ बिना प्राणवायु  के जीता हैं और फलां आदमी इसाई  हैं ओ बिना पानी के रह सकता हैं.
आज देश को जरुरत हैं उस धर्म की जो सत्य का रास्ता दिखा  सके. क्या यही  हमारा  धर्म नहीं हैं ?
       आज देश में कितने लोग ऐसे हैं जिनको दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती.  लेकिन हम हमारी धारणा में ऐसे जकडे हुए हैं की हमें उसके सिवा कुछ दिखता ही नहीं. हम रोज एक नया किस्सा बनाते और बताते हैं.
जैसा की "वन्दे मातरम्" हमें पहले यह जानना जरुरी हैं की, वन्दे मातरम का अर्थ क्या हैं.इसका सरल अर्थ तो यह हैं की, हम अपने वतन को नमन करते,या प्रणाम करते. मेरे हिसाब इससे ज्यादा कुछ भी नहीं.
     मेरे  और आपके  मानने या ना  मानने से क्या होगा?  कुछ नहीं! हम दिल से जिसे मानते वही हमारा वन्दे मातरम हैं................ वही वन्दे मातरम हैं.

Tuesday, November 3, 2009

WORK IN PROGRESS...... टेढी खीर



हमारे मोहल्ले में  PWD  ने सभी सड़को की मरम्मत करने की ठान ली थी. उसी प्रकार काम तेजी से चलता गया और कुछ ही दिन में  हमारी सड़क अच्छी और चिकनी  दिखने लगी. नज़र उतारनेका मन कर रहा था लेकिन क्या करता मैं मेरे काम में  इतना व्यस्त था की पूछो मत.(खुद का WORK IN PROGRESS)
        आखिर में जिस बात का डर था वही हो गया. नज़र तो  लग ही गई ओ भी  "वाटर सप्लाई" विभाग की, और उन्होंने "WORK IN PROGRESS "  का बोर्ड लगा कर सड़क खोदने  का काम "तमाम" कर दिया. कुछ दिन और बीत गए, हमने  फिर से सड़क मरम्मत करवाई. उसके बाद टेलीफोन डिपार्टमेन्ट ने  एक और बोर्ड लग दिया," WORK IN PROGRESS" सड़क की खुदाई का काम शरू  कर दिया.और सड़क की हालत  जैसी की तैसी. जैसा  की हमारे नेता लोग आते(चुनाव के पहले )और हमें एक जीने का नया अहसास देते ठीक  उसी  तरह सड़क ने हमें कुछ दिन अहसास जरुर दिया था.
एक दिन मेरा दोस्त मेरे घर आया और उसने मुझे पूछा.
"यार जब मैं पिछली  बार आया था तो सड़क  ठीक ठाक थी, और अब ये गड्ढे "
"शायद तू हमारे सरकार को जानता नहीं,यहाँ जनतां अंधी हैं और सरकार लंगडी"
" जनता सब कुछ देख कर भी अंधी होती हैं, और सरकार तेज चल नहीं सकती क्यूँ की वहां का  हर विभाग अपने  अपने तरीके से काम करते हैं"
"चुनाव प्रचार के वक़्त तो बहुत ही तेज चलते हैं,तेज बोलते हैं "
"क्यूँ की तब ओ सरकार का हिस्सा नहीं होते, जब सरकार में आते खुद पे बोर्ड लगाकर फिरते हैं 'WORK IN PROGRESS' फिर लोगों को यह भी समझ  में नहीं आता की किसका काम PROGRESS में हैं" 
"जैसे की टेढी खीर "

       अब मैं "टेढी खीर" के बारेमें आपको बताना चाहता हूँ यह एक "लोककथा"हैं.
एक गाँव में दो दोस्त रहते थे. एक जन्मसे अंधा था और दूसरा लंगडा,  दोन्हो  भिख  मांग कर अपना गुजारा  करते थे . एक दिन लंगडे दोस्त ने गाँव में जाकर खीर ले आया. और अपने अंधे दोस्त से कहा.
"देख यार मै तेरे लिए क्या लाया हूँ"
"क्या लाया"
"सफ़ेद खीर"
'"सफ़ेद खीर यानी "
"ओ जो सफ़ेद गाय जा रही हैं बिल्कुक उसी तरह" अंधे के समझ में कुछ भी नहीं आया .
"सफ़ेद क्या होता हैं"
"दूध के जैसा"
"दूध कैसा  होता है"
"ओ जो बगला(CRANE)  होता हैं ना  बिलकुल सफ़ेद"   फिर भी उसे कुछ भी समझ में नहीं आया,फिर लंगडे दोस्त ने बहुत ही मेहनत करके एक बगला पकड के अंधे के हात में थमा दिया. जैसे  ही अंधे ने उसपर हाथ फिराकर बोला "टेढी खीर"
अंधी जनता  और लंगडी सरकार-----टेढी खीर,  यही  हमारी  कहानी हैं "WORK IN PROGRESS"