Thursday, September 27, 2012

पाठकों का आभार - तीन साल का सफ़र


Pageviews by Countries

Graph of most popular countries among blog viewers

EntryPageviews
India
2151
United States
405
Russia
300
Germany
239
Ukraine
161
Latvia
133
Netherlands
73
France
45
Brazil
42
Japan
37


 देश वीदेश के सभी पाठकों का आभार ...


 ब्लॉगस लिखते लिखते तकरीबन तीन साल का सफ़र में मेरे पाठक दोस्तों की अहम भूमिका रही हैं। जो की देश वीदेश में रहते हैं,जिन्होंने मेरे इस सफ़र को जिन्दा रखा हैं। हमारे जीवन में बहुत सारे मोड़ आते हैं. जहाँ की हमारे स्कूल के दोस्त, बादमें कॉलेज के दोस्त,ऑफिस के दोस्त और अंत में आते हैं नेटवर्क के दोस्त. स्कूल के दोस्त कहाँ है, यह तो पता करना बहुत ही मुश्किल का काम हैं। कॉलेज एक या दो  दोस्त  मिलते हैं, कभी फोन पे बाते होती और हालचाल पूछ लेते हैं। ऑफिस के सभी  दोस्त तो हर रोज मिलते हैं, लेकिन वो बाते नहीं होती जो हम करना चाहते। अब मैं नेटवर्क के दोस्तों की बात करता हूँ। हम तो हर रोज़ मिलते हैं और अपने विचार शेयर करते वो  भी कोई आवाज़ के बिना ही लेकिन उनकी आवाज़ हमारे दिल पे दस्तक जरुर देती हैं. 
                 सुना था भीड़ में भी आदमी अकेला होता हैं।  आजु बाजु में बहुत सारे  ल़ोग  होने के बाद भी सन्नाटा क्यूँ सुनाई देता हैं? भीड़ में बहुत सारी आवाज़े होती, लेकिन उसे केवल मन की आवाज़ ही सुनाई देती हैं।  भीड़ की आवाज़ से मन की  आवाज़ कई गुना ज्यादा होती और इसे ही हम सन्नाटे की आवाजें कहते हैं। इस लिए कुछ जानकार कहते हैं की, आप किसी की बात सुने या ना सुने मन की बात जरूर सुनियेगा।
              
"जीवन"

जीवन के इस सफ़र में बहुत से लोग मिलते हैं! लेकिन कुछ लोग हमेशा के लिए यादगार बन जाते है! कुछ लोग जीवन में  धुंदलीसी  याँदें  छोड़ जाते हैं! बार बार याद करनेसे कुछ धुंदलेसे चेहरे याद आते हैं! लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं! जो मददगार बनकर खुद चले आते हैं! लेकिन हम वही भूल करते हैं! अक्सर उन्ही लोगोंके चेहरे भूल जाते हैं! जिसे हम हमेशा पाते हैं, वही चेहरे भूल जाते हैं।

"प्यारे दोस्तों मैं कोई लेखक या कवी नहीं हूँ, क्यूँ की मैं भी कुछ लिखना चाहता हूँ। इस ज्ञान के सागर मे डुबकी लगाकर कुछ मोती समेटकर आप लोगोंके साथ बाँटना चाहता हूँ। मुझे मालूम हैं की आप सभीको मोतियोंकी परख हैं। इस लिए कुछ गलतियां हुई  तो बेहिचक बता दीजिएगा।"

Thanks

आपका एक साथी 

उत्तमकुमार 

Sunday, September 16, 2012

कॉमन मैन और दो कार्टून


जीवन के बस में सफ़र करते समय मेरी बाजु वाली सीट पर एक आदमी आ बैठा, ऐसे  ही बात करते करते पहचान हो गई और और मैंने पूछा।

"काम क्या करते हो?"

"मैं एक कलाकार हूँ?" उसने कहा।

"कलाकार! कौनसी कला हैं आपके पास?" मैंने पूछ।

"मैं एक  कार्टूनिस्ट हूँ " उसने कहा।

"अच्छा, किस प्रकार के  कार्टून बनाते हैं आप?"

"मैं देश के पार्लमेंट को शौचालय का रूप देना, देश के अशोक चिन्ह को  भेड़िए का रूप देना और ऐसे बहुत सारें, आपने वह समाचार तो सूना होगा की मेरे कुछ कार्टून आपत्तिजनक हैं, यह कहकर सरकार ने मुझे जेल भेजा था। उसने अपने मोबाइल में बताते हुए कहा, यह देखो मैं इस कार्टून में पार्लिमेंट को शौचालय बता दिया, क्या कुछ गलत किया क्या ?"


"क्या पार्लमेंट में शौचालय नहीं हैं? पुरे पार्लमेंट को शौचालय बताने की जरुरत क्या थी? यह तो गलत हैं ना। मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा हैं।" मैंने कहा।

"मैं तो कभी पार्लमेंट में गया नहीं, मुझे क्या पता की पार्लमेंट में शौचालय हैं या नहीं। लेकिन उतने बड़े पार्लमेंट  में शौचालय तो होगा ही, नहीं तो खाने पीने के बाद वहाँ के लोग कहाँ जाएंगे?"

"किसी एक कोने में शौचालय बता दिया होता, कुछ तो वजह होगी पुरे पार्लमेंट को शौचालय बताने की? एक बात और, ये जो पार्लमेंट के  लोग वेस्टर्न टॉइलट का उपयोग करते हैं या इंडियन? फिर आप ने वेस्टर्न रूप  में जो टॉइलट बनया, और उसे नेशनल टॉइलट का नाम दिया हैं। इस देश में कई लोग तो ऐसे हैं की,टॉइलट का नाम तक पता नहीं, फिर इसे नेशनल टॉइलट कहने  की वजह क्या हैं?"

"वजह यह हैं की मैं देशप्रेमी हूँ।"

"क्या आपका देशप्रेम वेस्टर्न  टॉइलट तक ही सिमित हैं? फिर तो देशद्रोही इसे क्या समझते होगे?"

"अब मुझे कैसे पता? मैं तो देश प्रेमी हूँ।"

उसने अपने मोबाइलपे दुसरा कार्टून बताते हुए, मोबाइल फोन मेरे हाथ में दिया। मैंने कहा, "अच्छा हैं, कितने का हैं?"

उसने हाँसते हुए कहा, "क्या साहब, क्यूँ मज़ाक करतें हो? यह तो अनमोल हैं।"

"कुछ तो कीमत होगी? कहाँसे लिया हैं?"

"लिया नहीं यह कार्टून मैंने बनाया हैं?"

"मैं कार्टून की नहीं, इस मोबाइल फोन की बात कर रहां हूँ।"

"लेकिन मैं तो इस कार्टून की बात कर रहां हूँ।"

"मैं इस मोबाइल की।"

"क्यूँ पका रहे हो ? हमारी बहस तो इस कार्टून पर हो रही हैं।"

"क्या करूँ साहब मैं एक कॉमन मैन हूँ। मैं बहुत ही दुविधा में जी रहा हूँ। चैनल बदल बदल कर समाचार देखता हूँ, कुछ अच्छा समाचार मिलेगा, जो की कॉमन मैन के लिए होगा। करवट बदल बदल कर सपने देखने की आदत हैं, आज नहीं तो कल महंगाई कम होगी। इस लियें विषय बदल गया होगा। सॉरी सॉरी!! चलों बता दो आप किस कार्टून के बारें में बता रहे थे?"


"यह देखो यह भेड़िए वाला, इसके निचे लिखा हैं की "भ्रष्टमेव जयतें" अब बता दो इससे सरकार क्यूँ एतराज होना चाहियें, जो की मुझे जेल में दाल दिया, क्या देश से प्रेम करना कोई गुनाह हैं?"

"इसे देख कर तो लगता हैं की, एतराज नहीं होना चाहियें। लेकिन एक बात समझ में नहीं आ रही हैं की इसमें देश प्रेम कहाँ हैं?

"देखो मेरी लड़ाई इस भ्रष्टचार के खिलाप हैं, इस लियें इस कार्टून के निचे लिखा हैं पढो।

"भ्रष्टमेव जयते' लिखा हैं, और बिच में खोपड़ी का निशाँ हैं। मैंने देखा, लेकिन इस खोपड़ी के निशाँ का मतलब क्या हैं? क्या यह  देशप्रेमी की निशानी हैं? यह तो खतरा 440 वोल्ट का निशाँ लगता हैं।  पता ही नहीं चल रहा हैं की, भ्रष्टाचार के साथ हैं या इसके खिलाप।"

"गौर से देखो इसके निचे क्या लिखा हैं?"

"हाँ मैंने देखा हैं 'भ्रष्टमेव जयते' लिखा हैं, इस लियें तो पूछ रहाँ हूँ की आप तो भ्रष्टाचार के विरोध में हैं, फिर भी उसी के जय की बात कर रहे हों, ऐसा क्यूँ ?"

"देखो आप एक कॉमन मैन हैं, आप को इस देशप्रेम के बारें क्या पता चलेगा?"

"ठीक कहा साहब आपने, मैं तो कॉमन मैन हूँ ,मुझे हर रोज़ बिजली के झटके और महंगाई के मार दिखाई देती हैं। देश प्रेम क्या होता हैं, आप मेरेसे अच्छा जानते हैं, मुझे वही बिजली का निशाँ दिखाई देगा क्यूँ की एक कमरे में की बिजली बंद करने के बाद दुसरें कमरे की बिजली चलाता हूँ,  बिजली के बिल का झटका ना लगे, इस लिए बार बार वही खोपड़ी का निशाँ दिखाई देता हैं।अच्छा!! एक बात और, इस तीन भेड़ीए का मतलब क्या हैं?"                 

"यह कलाकार की भाषा हैं, आपके समझ में नहीं आयेगी, यही देश प्रेम हैं। इस लियें तो सारें हिन्दुस्तान के लोग सडक पर उतर आयें थे, जो की सरकार पर दवाब बनाकर मुझे जेल से छुड़ाया, समझे? कॉमन मैन।

"एक और सवाल, जो लोग आपकी रिहाई के लिय सडक पर उतरे थे उसमे कॉमन मैन कितने थे?"

"हे भगवान!! चलों मेरा स्टॉप आ गया मैं उतरता हूँ।"उसने सीट से उठकर बैगको  कंधे पे लटकाते हुए कहा।

"जातें जातें फोन की कीमत तो बता दीजिएगा" मैं ऐसा कहते ही उसने हाथसे माथा पटककर निचे उतर गया।

वह जाते ही मैं सोचने लगा, कॉमन मैन वही हैं, जो हर आन्दोलन में शामिल होता हैं। जो हर दिन भ्रष्टाचार और महंगाई के मार से मरता हैं, जो देश के लिए अपना सब कुछ त्याग देता हैं। यही  हैं कॉमन मैन, जो सरकार को चुन कर अपना खजाना उन्ही के हातों में दे देता हैं, जो की देश को लुट सके, यहीं हैं वो कॉमन मैन जिसका देश प्रेम दिखाई नहीं देता।  सोचते सोचते अगला स्टॉप आ गया, उतने में एक औरत की आवाज़ सुनाई दी, "ये  मिस्टर  दिखाई नहीं देता यह रिज़र्व सीट हैं, देखो लिखा हैं सिर्फ महिलाओं के लिए।"

 मैं उस सीट से उठकर दुसरे सीट पर जा बैठा और फिर वहीँ सफर चालू हुआ। मेरे बाजुमें   एक और आदमी आकर बैठ गया फिर से वही सिलसिला चालू हुआ, वही संवाद लेकिन अब विषय दुसरा था।

Sunday, September 9, 2012

ख़रगोश कछुए की दौड़

         

   कहानी कुछ नयी और कुछ पुरानी हैं। एक बार एक जंगल में 'ख़रगोश'और 'कछुए'  के  बिच दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन हो रहा था। जंगल' में उत्साह का माहौल था। इस बार की दौड़ में ख़रगोश से बहुत ही आशा थी, क्यूँ की वह पिछले मुकाबले में 176 कीमी की दौड़, 176 मिनिट में पूरा करके  अव्वल स्थान पर काबिज़ था। इस लियें उसका का नंबर  176 था। 186 नबर की काली जर्सी के साथ कछुए का कुछ अलग ही अंदाज़ था।  जगह जगह बैनर से पूरा जंगल सजाया  गया और मीडिया के जानवर भी मौजूद थे।  यह मुकाबला एक बड़े मैदान से शुरू होकर टेढ़े -मेढ़े  रास्ते से होकर एक बड़े पहाड़पे खत्म होना था।  इमानदार जज जीत का सही निर्णय करने के लिय तत्पर थे, जो की इस स्पर्धा की निगरानी सही ढंग से कर सकें। उधर ख़रगोश टीम के सभी साथी उत्साहित थे। उन्हें पता था की यह दौड़ प्रतियोगिता इस बार भी ख़रगोश ही जितेगा।

           स्पर्धा के ठीक पहलें उधर जंगली टीवी के  रिपोर्टर बन्दर ने ख़रगोश से बात करने लगा, "चलो अब हमारे साथ हैं, ख़रगोश जो की इस स्पर्धा के गतविजेता रहें है, चलो हम अब उन्ही से बात करते हैं।

 "आप ने इस स्पर्धा में जो एक नया रिकॉर्ड बनया था, क्या इस साल भी आप अव्वल आएंगे ?"  रिपोर्टर बन्दर ने पूछा।

"देखो मेरी बराबरी उस कछुए से कभी भी मत करो! यह स्पर्धा मैं ही जीतने वाला हूँ।" ख़रगोश ने जवाब दिया।

"अगर आप यह सपर्धा जीत जातें हैं तो इसका श्रेय  किसे देंगे?" रिपोर्टर ने पूछा।

"मैं आज जो भी हूँ, इन जानवरों  की वजह से हूँ, उन्होंने मुझे प्रेरणा और सहयोग दिया हैं, जो की आगे भी देते रहेंगे" ख़रगोश ने मैदान में बैठे सभी साथियों के तरफ हाथ हिलाते हुए कहा।

जैसा ही ख़रगोश ने हाथ हिलाकर प्रेक्षकों के तरफ देखा, प्रेक्षकगन जोर शोर से उसका स्वागत किया।

"अगर आप इसका श्रेय किसी एक को देना चाहते तो किसे देंगे"  रिपोर्टर ने पूछा।

"मैं यह श्रेय  कौवे को दूंगा जो की मेरे  बॉस और गुरु हैं।" ख़रगोश ने कहा।

"एक आखरी सवाल जीतने के बाद जो राशी मिलेगी उसका क्या करोगे?" रिपोर्टर ने पूछा।

"सब साथी मिल बाँट कर खाएँगे, जैसा की हमने पिछले बार किया था, इसमें सबका योगदान हैं।" ख़रगोश ने कहा।

         रिपोर्टर ने माइक हाथ में लेकर कहने लगा, "ये हैं हमारे ख़रगोश जो की पिछले मुकाबले के विजेता रहे हैं। अब हमें यह देखना होगा क्या इस बार भी वही चैम्पियन होंगे या नहीं? उनके उत्साह और जोश को देखे तो ऐसा लगता हैं की, इस बार भी वो आसानी से जीत जायेंगे।  कैमराबर्ड  उल्लू के साथ मैं रिपोर्टर बन्दर जंगली टीवी से, लाइव। ब्रेक के बाद हम कछुए  से बात करेंगे, और जान लेंगे की वो इस स्पर्धा के बारें में क्या कहतें  हैं।"


   "चलो अब हम ब्रेक के बाद मिलते हैं, दुसरे प्रतिस्पर्धी कछुएजी से।" रिपोर्टर  बन्दर ने कहा।
"क्या आप यह प्रतयोगिता जीत जायेंगें?"
लेकीन कछुए ने  कुछ भी जवाब नहीं दिया, इशारें में ही अपनी बॉस लोमड़ी के तरफ इशारा किया।

उतने में रिपोर्टर बन्दर ने लोमड़ी के तरफ माइक करते हुये पूछा, "क्या आपको लगता हैं की यह स्पर्धा कछुएजी जीत जायेंगे?"

" देखो हमने इस स्पर्धा के लियें बहुत ही हार्ड वर्क किया हैं, इस लियें मुझे लगता हैं की मेहनत का फल जरुर मिलेगा।" लोमड़ी ने कहा।"

"अगर मेहनत का फल मिलता हैं तो, उस फल का क्या करेंगे?" रिपोर्टर ने पूछा।

"क्या बात करते हो?  इसका कुछ हिस्सा हम ख़रगोश के टीम को भी दे देंगे,  जब उनकी जीत का फल वो हमसे मिल बांटकर खाते हैं, तो हम क्यूँ नहीं?"लोमड़ी ने कहा।

"और एक बात, आपने यह कछुआ जी का स्पर्धा क्रमांक 186 देने की वजह क्या हैं।" रिपोर्टर ने पूछा।

"इसके लियें आपको  स्पर्धा के अंत तक इन्तजार करना पडेगा।" लोमड़ी ने हँसते हुए कहा।

"हमारें दुसरे प्रतिस्पर्धी, कछुएजी  की चेहरें पर कोई हाव-भाव नहीं है। लोमड़ी जी ने कहा की मेहनत का फल जरुर मिलेगा। चलों कुछ ही देरमें स्पर्धा शुरू होने वाली ही हैं। कैमराबर्ड उल्लू  के साथ बन्दर।
 
         कुत्ते के भौंकने के साथ साथ यह स्पर्धा आरंभ होती हैं। खरगोश घमंड के साथ दौड़ने लगता हैं। 176 कीमी दौड़ने के बाद पीछे मुड़कर देखता हैं तो, दूर दूर तक कछुआ दिखाई नहीं देता। हरी घाँस पर लेटे लेटे ही सो जाता हैं। लेकिन कछुआ धीरे धीरे चलकर 186 कीमी के मार्क पर पहुँच जाता हैं। जब खरगोश जाग जाता, तब तक कछुआ स्पर्धा जीत चुका था।

      कछुए ने एक नया इतिहास रच दिया हैं।  सभी साथी जश्न मना रहे थे, इस बड़ी जीत का।  जंगली टीवी के रिपोर्टर ने  जब कछुए की जीत के बारें में पूछा तो जवाब आया "लाख सवालों से अच्छी हैं करोड़ों रुपयों की ख़ामोशी।"



          चलों अब हम इस कहानी के अभिप्राय पर नज़र डालते हैं।  यह स्पर्धा दो घोटालों के बिच में हैं, जो की 2जी और कोयला। यहाँ ख़रगोश ने 2जी वालें का अभिनय किया हैं। ठीक इसी तरह कोयले वालें का रोल कछुए ने निभाया हैं, जो की धीरे धीरे चल कर सबसे आगे पहुँच जाता हैं। जंगल का मतलब  देश, और मैदान जो एक संसद, जहाँ  से इस स्पर्धा की शुरुवात होती हैं।  जजोंका रोल कैग ने निभाया, 176 नंबर का मतलब हैं 1.76 लाख करोड़ रूपये, ठीक इसी तरह 186 का मतलब हैं 1.86 लाख करोड़ रूपये। हरी घाँस का मतलब नोटों की हरी गड्डियां। अब हमें यह बताने की जरुरात नही होगी की, यहाँ  कौवा  और लोमड़ी का रोल क्या हैं।
 
         अगर यह स्पर्धा देश के विकास के लियें होती तो कितना अच्छा होता। आज हम भी कछुए की जीत का जश्न मना रहे होते,

(photos from google)