Saturday, February 20, 2010

महंगाई मार गई......

आजकल महंगाई ईतनी बढ़ गई  हैं की सब्जियों के दाम आसमान को छु रहे हैं. "घर की मुर्गी दाल बराबर" अब यह कहावत भी गलेसे नहीं उतर रही. कहावत के साथ साथ दाल और सब्जी का भी गलेसे उतरना एक कसरत  हो गया हैं. आम आदमी की भाग दौड़ देख कर टमाटर भी हस हसकर लाल हो गया हैं.     प्याज   तो बिना कटे ही रुला रहा हैं. शक्कर भी कुछ कम नहीं हैं दाल और    चावल के साथ मिलकर आम आदमी पे हस रही हैं.

एक दिन में जल्दीमें ऑफिस जा रहा था तो बीवी ने आवाज दी
"आज ATM से पैसे ले आना"
"कितने "
"बस एक दो हजार ज्यादा  लाना"
"मेरे पास नोट छापने की  मशीन हैं ना!  दो क्या चार हज़ार ज्यादा लो "
"महंगाई बहुत ही बढ़ गई है"
"लेकिन salary तो नहीं बढ़ी ना"
"ठीक  हैं इस महीनेका पूरा सामान खुद ले आओ"
"ठीक  हैं"
"लेकिन एक शर्त पर"
"कौन सी" मैंने पूछा
"अगर आप पूरे  महीने का सामान बजट के अन्दर लाओगे तो में मेरा महीने का बजट  कम कर दूंगी" 
"अगर ज्यादा हुआ तो"
"जितना भी  ज्यादा होता हैं, उसमे और हज़ार रु और जोड़ देना"
"हज़ार बहुत ही ज्यादा हैं,थोडा और कम करो"
"फिर कितने"
"पांचसो उस से ज्यादा नहीं दे सकता"
"ठीक  हैं"
फिर हम दोनों में तय  हो गया.  महिने  सारा खर्चा कैसा  कम करने का  यह सोचते सोचते  जल्दी   निकल पड़ा   लंच टाइम में फ़ोन करके पुरे सामान  की सूचि बनाई.   मुझे लगने लगा की शायद मैंने जिम्मेदारी ली इस लिए  बड़ी लिस्ट मेरे हाथ में थमाई  हैं. यह सोचते सोचते में ऑफिस से सीधा  बिग बाज़ार में गया  और लिस्ट के मुताबिक सभी सामान ले आया   और मन मन में मैंने सोचा हज़ार रूपए तो बचाही लिया.
              फिर पेपर वाले का बिल  .केबल का ,लाइट बिल सभी का बिल चुकाते चुकाते में थक गया.  फिर भी मै खुश था की  थोड़े  रूपए तो बचा ही लिया    मुझे यह साबित करना था की तुमसे  कम रु  खर्च किये हैं.  जैसाही सप्ताह गुज़र गया फिर दूध वाला भैय्या आ टपका फिर मैने  उसका भी हिसाब चुकता किया. सब्जी वाले को बता रखा था की पुरे महीने का हिसाब  एक ही बार देयगा  और  हर रोज घर  में जो भी चाहिए होता दे देना.  मैं मन ही मन में सोच रहा था  की अभी तो  एकही  हप्ता बचा,  कुछ खर्चा नहीं होगा. मैंने जैसे ही घर में कदम रखा तो सब्जी वाला टपक गया .पध्रह सौ के आस पास उसका बिल था  फिर मैंने  वालेट  निकाला  तो उतने रु  नहीं थे. सब्जी वाले को  कल आके   ले जाने को कहा, क्यूँ की मेरी  जेब पुर खाली ही गई  थी.  अभी महीने के सिर्फ चार  दिन ही बच गए फिर मैने बीवी से पुछा
"कल मैं फिर से ATM जा रहा हूँ सब्जी वाले के सिवा और कुछ बाकी" इस बार मुझे दूसरी बार ATM जाना पड़ रहा था.
"LPG  गैस आने वाला हैं उसके लिए भी रु निकल लाना" उसने कहा.
और  दो दिन बीत  गए, अभी केवल दो   दिन बचे थे . गैसवाला सिलेंडर  ले आया  उसका भी बिल  चुकता किया . एक महिना गुज़र चूका  फिर हमने पूरा हिसाब किया  तो मैं हैरान रह गया क्यूँ की मेरे जेबसे तक़रीबन दो  हज़ार रु से भी ज्यादा खर्च हुये थे.
          अगला महिना शुरू हुआ, अब उसकी बारी थी, मैं मन ही मन में सोचने लगा पिछले महीने में  बीवी को दो हज़ार ज्यादा देता तो शायद ठीक होता.अभी मुझे बजट में दो हज़ार पांच सौ रु  ज्यादा बढाने  पड़े  हर घर की यही कहानी हैं. क्यूंकि  हमारी   सरकार और नेता लोग सो रहे हैं और आम आदमी  की फ़िक्र किसे.    अभी तो चुनाव का मौसम भी नहीं हैं. अगर हर साल चुनाव आता ती कितना अच्छा होता. हर चूनावके पहले महंगाई में कमी जरुर होती हैं. यही हैं  आम आदमी की जिंदगी  जो  महंगाई की चक्की में पिस रहा हैं. मुझे तो महंगाई मार गई ....

1 comment:

  1. इस महँगाई की मार से बचना अब बहुत मुश्किल है....सारी महिमा मोहन प्यारे की है..आम आदमी किस हाल मे जीता है यह सोचना वे चाहते ही नही.....कारण यह कि जब मनमर्जी करने पर भी जनता उन्हें आसन प्रदान कर देती है....तो कुछ करने की जरूरत क्या है???

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