"तू चीज बड़ी हैं मस्त मस्त", जब यह गाना मार्केट आया था, इससे यह पता चलता हैं की समाज में औरत और मर्द में कितना फर्क हैं। हमारें समाज का बड़ा हिस्सा हैं जो औरत को चीज समझता हैं।
औरत और मर्द में इतना फर्क
क्यूँ हैं? कौन हैं इसके लियें जिम्मेदार? हमारा सामाजिक ढांचा जो की स्त्री को केवल उपयोग की वस्तु समझता
हैं। शायद यही वजह हैं जो स्त्री को हमेशा एक वस्तु की नज़र से देखा जाता हैं और यही बलात्कार की वजह बन जाती हैं, जैसा की 'यूज़ एंड थ्रो'। यही हकीक़त हैं हर एक रेप पीडिता की।
स्त्री को आइटम समझकर पेश करना
- यह हमारा फ़िल्मी कल्चर बन गया हैं। फिल्मो में अगर हीरो हिरोइनसे छेड़ छाड़ करता
हैं तो बड़े ही चाव से देखते हैं। जहाँ हलकट और शिला की जवानी पे ठुमके लगते हैं तो,
बड़े ही चाव से हम देखते और पसंद करते हैं। क्या सिर्फ औरत ही आइटम होती हैं? इसका मतलब
क्या हैं? हमें इस कल्चर को बदलना होगा और औरत को इस मनोरंजन के रोल
से बहार लाना होगा। इस देश में तो एक पोर्न स्टार को भी इतना महत्व देते हैं की वो रातोंरात फेमस बन जाती हैं। इसेसे लोगों का स्त्री के प्रति देखनेका नज़रिया बदल जाता हैं और यही नज़रिया समाज के लियें घातक बन जाता हैं। आप पोर्न स्टार को देखते और चाहते लेकिन क्या आप अपनी बहन और बेटी को इसी रूप में स्वीकार करोगे?
दूसरी और अहम् बात क्या फाँसी की सजा मुक़रर करनेसे रेप केसेस में कमी आयेगी? नहीं
बिलकुल नहीं! लेकिन हमें यह सोचना होगा की इसे किस तरीके से रोक सकते।
इसके लियें एक जबरदस्त इच्छाशक्ती की जरुरत हैं, इच्छाशक्ती आने के लियें इमानदार नेता लोगों की जरुरत हैं, जो सभी का हेतु एक ही होना चाहियें,जो की इस सिस्टम में बदलाव ला सकें। जब दुसरें देशों में गर्भपात के कानून की वजह से एक औरत अपनी जान खो देती हैं तो उस देश में तत्काल कानून में बदलाव लाया जाता हैं, यहाँ इतनी देरी क्यूँ ? कौन हैं इसके लियें जिम्मेद्दार?
सबसे पहले हमारा कानून, विरोधी पक्ष का वकील के उलटे सीधे सवालों से
पीडिता का कई बार रेप होता हैं। हर एक सवाल का उत्तर देते समय वही यातना याँद करना पड़ता हैं, जो की रेप से कम नहीं। जब हमारीं न्यायिक प्रक्रिया की देरी जो की पीडिता के सहनशक्ति को चूर चूर कर देती हैं।
इसके बाद आता हैं हमारां राजनीतिक सिस्टम, जहाँ हम रेपिस्ट और गुंडों को चुनते हैं। जितने भी रेप केसेस सामने आतें हैं रेपिस्ट के पीछे कोई कोई राजनेता जरुर होता हैं। इसे बदलना नामुमकिन हैं। क्यूँ की हर पक्ष में यहीं रावण राज करतें हैं और सोने की लंका समझ कर पुरे देश और देश की इज्जत को लुटते हैं।
एक और बात की हमारा पुलिस दल जो की इस मामले को उतना गंभीर नहीं समझता और केस दर्ज करने में जो देरी करते हैं। सबसे पहली बात यह हैं हमारें समाज में बहुत से लोग हैं पुलिसपे भरोसा नहीं करतें, क्यूँ की हमारें नेता लोग पुलिस को अपने नियंत्रण में रखतें हैं।
हमारा मीडिया, आजकल जो भी समाचार पत्र निकलते हैं, उनका भी योगदान बहुत जादा हैं,
क्यूँ की स्त्री को जिस तरह पेश करते हैं लगता हैं समाचार पत्र पढने के
लियें नहीं बल्कि देखने के लियें निकलते हैं। जहाँ टाइम्स ऑफ़ इंडिया का
सप्लीमेंट बैंगलोर टाइम्स, मुंबई टाइम्स आदि।
टी वी मीडिया और विज्ञापन जहाँ औरत की जरुरत नहीं होती वहाँ भी औरत की नुमायश होती हैं, जैसा की औरत नहीं एक उपयोग की चीज हैं। हमारें न्यूज़ चैनल इसे एक समाचार का ज़रिया बनाकर अपनी रोजी रोटी सेंक लेते हैं।
अब आप पुछंगे की इस सब से रेप केसेस से क्या लेना देना हैं? आप ठीक कहतें हैं इससे रेप केसेस से कोई लेना देना नहीं लेकिन इससे एक बात साबित होती हैं की औरत की तरफ जो समाज का देखने का नज़रिया दिखाई देता हैं, जो "तू चीज बड़ी हैं मस्त मस्त"।
जब तक समाज का औरत के देखने का नज़रिया नहीं बदलता तब तक यह चलता ही
रहेगा। जो औरत और मर्द में अंतर हैं उसे हम बदल नहीं सकतें।
हम बलात्कारी को सजा तो मुकरर कर सकते हैं,क्या इससे रेप केसेस में कमी आएगी? क्या जिस किसीभी देश में मौत की सजा मिलती वहाँ रेप नहीं होतें?
और हम लोग इंडिया गेट पर मोर्चा निकालते हैं, और वोट देते समय एक गुंडे और बलात्कारी को वोट देते हैं। और अब चिल्ला चिल्ला कर उन्ही के पैर पड़ते हैं। क्या हम इसें बदल देंगे? इसे बदलना बहुत ही दूर की बात हैं, क्यूँ की हमारा सिस्टम सड गया हैं, अब हमें भी इस सड़े हुए सिस्टम के नशे की लत लग चुकी हैं, जो इस देश की मज़बूरी हैं। इस दुनियाँ में कई लोग ऐसे हैं जो बेटी को दुनिया में आने से पहले मार देते हैं। दहेज़ के लिए बहु को जलातें हैं और दूसरों की बहन बेटी को देख कर कहतें हैं की "तू चीज बड़ी हैं मस्त मस्त"।
जब तक हम औरत के तरफ देखने का नजरिया बदलते नहीं तब तक हम इसे रोक नहीं सकते, क्यूँ की समाज में कई ऐसे तत्व हैं जो औरत को चीज समझते हैं, इसे रोकना हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिएं। एक जमानें में सेक्सी शब्द का अर्थ गाली होता था आज वही शब्द एक सुन्दरता की मिसाल बन गया हैं। इसे बदलना जरुरी हैं जैसा की तू चीज बड़ी हैं मस्त मस्त ऐसे गाने बंद कर देना चाहियें जो की औरत को एक वस्तु के रूप में प्रस्तुत करतें हैं। जब तक हम इस चीज शब्द का उपयोग करतें हैं तब तक औरत को एक उपयोग की वस्तु बनकर रहेगी, इसे बदलना होगा और इसमें औरत का सहयोग बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।