Monday, June 11, 2012

बाकी है.....



जमीं तो बिक चुकीं , अब आसमान  बाकी  है।
सपने  तो बिक चुकें, अब  अरमान  बाकी  हैं।

यहाँ इंसानियत की कद्र नहीं, आदमी चलता हैं।
इंसानियत तो बिक चुकी, अब इंसान बाकी हैं।।

आप  सरकार नहीं,  सिर्फ गाड़ी चला रहें हैं।
जुर्माना तो बिक चुका,  अब चालान बाकी  हैं।।

ईमान  का वास्ता देकर, जीतते चलें आये हैं।
नाम तो बिक चुका, अब ईमान बाकी हैं।।

झूठा  सन्मान लिए, सर उठाकर चलते हैं।
सन्मान तो बिक चुका, अब अपमान बाकी हैं।।

हथियार बिना झगड़े तो हमने देख लिए  हैं।
हथियार तो बिक चुके, अब घमासान बाकी हैं।।

तूफान की गुंजाईश नहीं, मौसम तो ठिक हैं।
हवामान तो  बिक चुका, अब तूफान बाकी है।।

ज़िंदा लाश का सामान लिए हम यहाँ जीते हैं।
ताबूत  तो बिक चुके, अब सामान बाकी  हैं।।

जीताने की  एक आस लिए, फिर भी जी रहे हैं।
मत तो बिक चुकें, अब मतदान बाकी  हैं।।

चुनाव जीतने की चाह में,  कुछ भी करतें हैं।
जित तो बिक चुकी , अब अनुमान बाकी  हैं।।

भीड़ के शक्ल लिए, जीत का जश्न मनाते हैं ।
भीड़ तो बिक चुकीं, अब सुनसान बाकी  हैं।।

वासना के जंगल में, इज्जत भी बिक जाती हैं।
शरीर तो बिक चुका, अब विचारान बाकी  हैं।।

बड़ी ही  मेहनत से फुल पौधे खिला दिए हैं।
खुशबू तो बिक चुकी, अब  फूलदान बाकी हैं।।

तीर कमान हाथ में लिए निशाना लगातें  हैं।
तीरेंनिशाँ  तो बिक चुका, अब कमान बाकी हैं।।

समागम तो बिक चुकें, अब समाधान बाकी  हैं।
मंदिर तो बिक चुके, अब भगवान बाकी  हैं।




Tuesday, June 5, 2012

टीवी,बीवी और....



आज रवीवार यानि छुट्टी का दिन पुरे सप्ताह की थकान दूर करने का दिन. मैने जब टीवी ऑन किया और देखा की सभी न्यूज़ चैनल के  केंद्रबिंदु पर एक ही खबर छायी हुयी थी. रामदेव और अन्ना ने साजा अभियान में एक दिन का  अनशन जो की भ्रष्टाचार  के खिलाफ खोला था. मैं टीवी देखने में मग्न था. जैसा की उस आन्दोलन का एक हिस्सा हूँ.  उतने में बीवी ने आवाज़ दी.
"सुनो! सुबह सुबह टीवी देखते क्या बैठे हो? घर में पानी की एक बूंद नहीं हैं. पिछले पन्द्रह दिन से सीएमसी के नल में पानी नहीं आया और संप पूरा  सुख गया है. जाकर उस पानी वाले से पूछकर एक टेंकर पानी मंगवाकर संप भरवा लेना."
 जब मैं अपनी जगह से उठा नहीं तो हमारी धर्मपत्नी ने जबरदस्ती से मेरे हाथ में से रिमोट छीन लिया और चैनेल बदलते हुए कहा.
"भ्रष्टाचार मिटाने चले, यहाँ घर में पानी का एक बूंद नहीं हैं. चलो कुछ तो करो."
फिर मैं उठा, बैठ कर भी क्या करता, क्यूँ की अब रिमोट मेरी धर्मपत्नी के हाथ में था. अब टीवी भी उसीके इशारे पर नाच रहा था.  मैं चल पड़ा "जीवन" की तलाश में यानि की पानी सप्लाय करने वाले के पास. चलते चलते मन ही मन मे मैं यही सोचने लगा कि मुझे अब पता चला की रामदेव और अन्ना ने शादी क्यूँ नहीं की. अब मेरा अनुमान सही साबित हो रहा था इस लिए रामदेव और अन्ना इतने मग्न होकर अनशन करते हैं. इस"जीवन"से कोसों दूर थे. थोड़ी देर बाद मैं घर लौट आया तो बीवी ने चैनल चेंज करते हुए टीवी पर राज कर रही थी. टीवी देखते देखतेही उसने पूछा.
"क्या कहा पानी वाले ने ?"
"अब उसके पास भी पानी का स्टॉक नहीं हैं. हमें और दो दिन का इन्तजार करना पड़ेगा."
माथे पर तनाव लेकर उसने कहा 
"हे भगवान अब क्या करें? अन्ना और रामदेव ये भ्रष्टाचार का मुद्दा लेकर बैठे हैं. पानी का मुद्दा लेकर अनशन करते तो शायद ही कोई राहत तो मिल गई होती." 
मुझे रहा नहीं गया और में बोल पड़ा.
"क्या बात करती हों, उन्हें पानी के बारेंमें क्या मालूम, वो अभी तक कुँवारे  हैं." 
बीवी ने रिमोट मेरे हाथ में सौंप कर किचन में चली गयी। मैंने रिमोट हाथ में लेकर एक हल्किसी मुस्कराहट लिए टीवी ऑन किया और  का भ्रष्टाचार आन्दोलन देखने लगा. बीवी ने फिर से आवाज़ दी.
"सुनो टीवी क्या देख रहें हो?"  ऐसा कहतेही बिजली चली गयी और टीवी बंद हो गया. उसी के साथ साथ अन्ना और रामदेव का अनशन का लाइव कवरेज भी खत्म हुआ. जब टीवी बंद हुआ और दिमाग चलने लगा. मैं सोचने लगा क्या अन्ना और रामदेव का आन्दोलन भी इस बिजली की तरह तो नहीं जो आता और जाता हैं. इस आन्दोलन के बिच जो भी हलचल होती हैं, वही टीवी चैनल  हैं. लेकिन अभी तक यह पता नहीं चला की इसका रिमोट किसके हाथ में हैं. उतने में बीवी ने फिर आवाज़ दी.
"बिज़ली का बिल आया हैं."
"कितना आया हैं ?"
"दो सौ रुपये ज्यादा हैं"
"बिजली तो रहती ही नहीं फिर दो सौ ज्यादा क्यूँ? "
"जाकर पूछों उस बिजली वालोंको मुझे क्या पता."
उतने में बिजली आ गयी और टीवी फिर से चालू हो गया. बाहर सब्जी वाले का ठेला खडा था. बीवी  उसके पाससे सब्जिया लेकर आती हैं.
"सुनो ज़रा पांचसौ रुपये दे देना"
"क्यों महीने का बजट तो दिया हैं ना? फिर से पांचसौ रुपए?"
"हाँ मैं पैसे खा रही हूँ. देखते नहीं हो सब्जी की कीमते कितनी बढ़ी हैं. आप जो भी बजट दे रहे हो उसमें घर का खर्चा चलाना बहुत ही मुश्किल हैं.कभी कभी सब्जीयाँ भी लाया करो, फिर पता चलेगा की सब्जी का भाव क्या होता हैं."
मैंने बिना कुछ कहे है पांचसौ का नोट बीवी के हाथ में थमा दिया.
"महंगाई इतनी बढ़ गयी हैं की पता नहीं अब क्या होगा?" फिर पत्नी अपने पल्लूसे पसीना पौछ्तें  हुए बोली.  
"और एक बात इस सालसे सोनू की स्कूल की फीस बढ गयी हैं."
"हे राम! मुझे अब पता चला की रामदेव और अन्ना ने शादी क्यूँ नहीं की?"
"बस करो यह शादी का इससे क्या लेना देना हैं?"
"यह तुम नहीं समझोगी ज़रा चाय बना देना."
 
     फिर से बिजली चली गयी और उसीके साथ रामदेव और अन्ना टीवी स्क्रीन से गायब हुए. क्या भ्रष्टाचार के इस आन्दोलन से आम आदमी को कुछ मिलेगा? क्या इससे समाज में परिवर्तन आयेगा? क्या हम हमारी छोटी छोटी जरूरतें पूरा कर सकेंगे? जैसा की पानी, बिजली और सड़क आदी. इसके सिवा समाज एक वर्ग ऐसा हैं की जिन्हें दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती. अब सोचने वाली बात यह हैं की जिसे दो वक्त की रोटी नहीं मिलती वो इस आन्दोलन के बारेमें क्यूँ सोचेगा? उसे तो सिर्फ रोटी की तलाश हैं. इस रोटी के चक्कर में उसे इस आन्दोलन के बारे में सोचने का वक्त ही नही मिलता. ठीक इसी तरह मिडल क्लास के जो लोग हैं उन्हें तो उनके घर संसार की समस्या से फुर्सत कहाँ मिलती? अब सोचने वाली बात यह हैं की क्या समाज का यह हिस्सा भी पूरी तरह इस मुहीम का समर्थन दे पायेगा?  नहीं क्यूँ की इसमें से कुछ लोग इस मुहीम से जुड़ तो जाते हैं तो सिर्फ इसलियें की चलो आज रविवार हैं .इस लिए कुछ लोग चले आतें हैं.  अब सवाल हैं की अप्पर क्लास के लोगों का क्या? उन्हें तो कुछ पडा ही नहीं उन्हें इस आन्दोलनसे क्या लेना देना उन्ही के पास सब कुछ हैं. 
  अब हमें आम आदमी के बारें में सोचना हैं. यह आम आदमी हैं कहाँ? कहांसे आता हैं? समाज के कौनसे क्लास से आता हैं? क्या वह इस आन्दोलन में अपने आपको झुका देगा?                
   

      फिर से बिजली आ गई और फिर टीवी ऑन हुआ और फिर से वही लाइव शो दिखने लगा. लेकिन मैं यहाँ एक बात जरुर कहना चाहता हूँ की जो भी आन्दोलन हो उसका रिज़ल्ट जरुर आना चाहियें जो की हम आस लगाएं बैठें हैं. अगर यह आन्दोलन बेनतीजा चलता रहा तो एक दिन ऐसा आयेगा की आन्दोलन के नामसे लोगों को नफरत होने लगेगी. इस लियें यह जरुरी हैं की इसका कुछ नतीजा निकलें.

     बिजली के बिना टीवी नहीं चलता और रिमोट के बिना टीवी नहीं चलता. बीवी के बिना मैं नहीं चलता. अब सवाल यह हैं की रिमोट किसके हाथ में हैं. वो क्या देखना चाहता हैं? अब हमें यह सोचना हैं की हम टीवी में क्या देखना चाहते हैं?  जो हमारी आने वाली पीढ़ी का सुखद भविष्य या वही जिंदगी जो आप और हम जी रहे हैं. सोचो रिमोट आपके हाथ में हैं सिर्फ वक्त का इन्तजार करों और सही जगह पर सही चैनेल देखना हैं......