Thursday, June 9, 2011

जंतर मंतर.... छू मंतर ...



हमें कभी राजघाट तो  कभी  जंतर मंतर  
तो कभी रामलीला भी  रात को  छू मंतर 
कभी अन्ना के साथ
कभी बाबा के साथ
कभी उसी नेता के साथ 
तो कभी अपने साथ 
दगा करते हैं 
बड़ी बड़ी बाते करते हैं 
यह सोचते सोचते 
मैंने सिग्नल तोड़ दिया 
और पुलिस से जोड़ लिया 
निकालो दो सौ 
मैंने बिल बनाया हैं 
यहाँ साइन करो 
और दो सौ भरो 
मैंने कहा थोडा कम करो 
यह बहुत ज्यादा हैं 
बिल को  ज़रा दूर करो 
पचास हात में धरो 
उसने कहा बिल फाड़ दिया हैं
देखो उसमे और दस जोड़ दिया हैं 
उसने सच में बिल को फाड़ दिया 
फिर मैंने कहा अरे यह क्या किया 
डरो मत यह बिल भी नकली हैं 
इसे साहब ने बनाया हैं 
इस लिय, 
मैंने साहब  को बनाया हैं 
साला धोका  देकर लुटा 
चलो अब पीछा तो छुटा
घर आकर सोच में पड़ गया
मन  की आवाज़ पे  अड़ गया 
मेरी वजह से एक और बढ़ गया
जब मैंने टीवी खोल दिया
भ्रष्टाचार पे  वो बोल दिया
अन्ना के बाते सताने लगी
एक नयी राह बताने लगी 
भ्रष्टाचार को मिटाना हैं 
नहीं तो खुद को मिटाना हैं 
ऐसा अन्ना बोलते रहे 
बात पे बात खोलते रहे 
हमें फिर से पकड़ना हैं जंतर मंतर 
इस भर्ष्टाचार को करना हैं छु मंतर