Sunday, September 25, 2011

"जादू की छड़ी"





(इस कहानी में दिए गए  सभी नाम और पात्र काल्पनिक हैं)
दिन भर की थकान लिए मोहन बिस्तर पर जा गिरा और मन ही मन खुश था की जादू की छड़ी के शब्द का उपयोग करके सबके मुह पे ताला लगा दिया यह सोचते सोचते मोहन की आंख लग गयी.  अचानक उसी  कमरे में बिजली जैसी  रौशनी चमककर  एक  आवाज़  आती  है. 



“जागो   वत्स  जागो.” 
"कौन  हैं !  कौन  हैं!"  मोहन  ने   आँखे  पूछते  हुए  कहा.
"मैं  ईश्वर."
"कौन  ईश्वर कौनसे पार्टीसे  आये हो ?"
"मैं  साक्षात  प्रभु  हूँ  यानि  भगवान."
"मेरा  तो  विश्वास  ही   नहीं  हो  रहा  हैं."
"वत्स मुझे  पता  हैं की  तुम्हें  क्या  चाहियें."
"क्या   भगवान?"
"जादू  की छड़ी." 
"आप को  कैसे  पता?"
"मैं सब  जानता  हूँ  मोहन."

"मुझे मालूम  हैं की तू  आजकल  बहुत  परेशान   रहता  हैं. रात  में ठीक  तरह  से  सो  नहीं पता. तेरे  साथी  और विरोधी  सभी  तेरा  उपयोग  कर  ले  रहे  हैं."


उतने में भगवान कान में रखी एक तीली निकालकर  हाथ में लेते  हैं उसे अपनी हथेली में रखकर मंत्रोचार करने  लगते हैं.

"इली मिली तीली बन जा छड़ी
होकर बड़ी बन जा जादू की छड़ी 
सबक सिखा सबको देखने पड़े घडी 
इली मिली तीली बन जा छड़ी "

देखते देखते ही वो तीली एक पीले रंग की छड़ी बन गई.मोहन यह  सब देखकर दंग रह गया और सोचमें पड़ गया. उसे रहा नहीं गया भगवानसे पूछ ही लिया.

"भगवन इसे अगर फिर से छोटी करना हैं तो ?"
"वत्स अगर इसे छोटा करना हैं तो यह मंत्र याद रखना इडी पीडी छड़ी बन जा तीली.अगर फिरसे उसे बड़ा करना चाहते तो इस मंत्र का प्रयोग करना इली मिली तीली बन जा छड़ी ."
"लेकिन भगवन इसका मैं क्या करू?"
"इससे तुम भ्रष्ठाचार और आतंकवाद पर काबू पा  सकते हो लेकिन याद रहे इसे पहले एक साल तक  एक ही काम के लिए इस्तमाल कर सकते हैं.जैसा की भ्रष्ठाचार बाद में इसका उपयोग आतंकवाद कम करने के लिए कर  सकते हैं.अब तुम्हे यह बताना हैं, तुम्हारी सबसे पहली प्राथमिकता क्या हैं और क्यूँ ?"
"मैं  सबसे  पहले भ्रष्ठाचार खत्म करना चाहता हूँ."
"ठीक हैं! मैं तुम्हे इसका उपयोग करने हेतु मार्गदर्शन करता हूँ."
"नहीं भगवान दूरदर्शन को मत बुलावो,मीडिया को पता चल गया तो वो बात का बतंगड़ बना देंगे."
"अरे मोहन मैं दूरदर्शन नहीं बल्कि मार्गदर्शन यानि की इस छड़ी का उपयोग कैसा और कब करे यह बताने जा रहा हूँ."  
"मुझे लगा आप दूरदर्शन के बारे में कह रहे हैं. लेकिन एक बात  सही हैं की दूरदर्शन तो हमाराही तो  चैनल हैं. "ठीक हैं आप बता दीजियेगा".   
"नियम एक -इस जादू की छड़ी का उपयोग करने  वाला इमानदार होना चाहियें और छड़ी  का  उपयोग  लोक कल्याण हेतु होना चाहिएँ."      
"लेकिन मैं तो  उतना इमानदार नहीं हूँ."
"तुम्हारा यह कहना ही एक ईमानदारी हैं इस लिए आप इस  जादू की छड़ी का बेहिचक इस्तमाल कर सकते हैं'
"ठीक हैं आप कहते तो  मैं इसका उपयोग लोक कल्याण के लिए जरुर करूँगा."
"अब ध्यान से सुनो इसका दूसरा नियम, आप इस  छड़ी का उपयोग जिस भ्रष्टाचारी पे करेंगे वह पूरी तरह कंगाल हो जाएगा और  उसका पूरा धन सरकारी तिजोरी में जमा हो जायेगा लेकिन एक बात का स्मरण रहे की वो भ्रष्ट हो. "
"लेकिन भगवन मुझे कैसे पता चलेगा की फलां आदमी भ्रष्ट हैं ?"
"वत्स इस जादू की छड़ी में एक ३.५ मी मी  का जाक दिया हैं इसमें मै मैक्रो फोन लगाकर वह छड़ी जीस भी इंसान पर घुमायेगा वह छड़ी बोल उठेगी की वो भ्रष्टाचारी हैं या नहीं."
"क्या मैक्रोफोन के अलावा दुसरा कोई रास्ता नहीं हैं?"
"और एक रास्ता हैं इस छड़ी को चार्ज करना पडेगा. इसके लिए कौनसा भी चार्जर चलेगा. जब भी यह छड़ी किसी भी आदमी पर घुमायेगा अगर छड़ी में से लाल रौशनी आएगी तो समझ लेना के वह व्यक्ति भ्रष्ट है. अगर  हरी बत्ती जलती हैं तो समझ लेना की वो इमानदार हैं. अगर वह आदमी भ्रष्ट निकलता हैं तो उसकी चल संपति जहां कही भी हो, किसके पास भी हो, देश में हो या विदेश में हो वो  सारी चल सम्पति  सरकारी खजाने में जमा होगी. लेकिन एक  और बात  उसकी अचल संपति जो पाप से बनायी गई हैं वह धीरे धीरे एक साल के अन्दर हाथ से चली जाएगी. किसके हाथ में जाएगी यह बताना मुश्किल हैं. लेकिन उसके अचल सम्पति का कुछ हिस्सा लोककार्य में जरुर लगेगा."
"यह तरीका ठीक लगता हैं".
"और आखरी शर्त इस छड़ी का उपयोग ३ महीने में एक बार तो जरुर करना चाहियं और हर तिन महीने बाद मैं खुद आकर परिक्षण करूँगा की इस छड़ी का उपयोग क्यूँ और कैसे हो रहा हैं. एक बात और तिन महीने तक इसका उपयोग नहीं हुआ तो यह छड़ी अपने आप गायब भी हो सकती हैं. क्या तुम्हे मेरी शर्तें मंजूर हैं?"
"हाँ भगवान् मुझे आपके शर्तें मंजूर हैं"
"इस  छड़ी से आप कौनसा भी रूप धारण कर सकते हैं.

              भगवान वह जादू की छड़ी मोहन के हाथ में देकर चले जाते हैं.मोहन ख़ुशी से उस छड़ी देखता ही रहता हैं. "इडी पीडी छड़ी बन जा तीली"  इस मंत्रोचार से उस छड़ी को तीली बनाकर जेब में रख लेता हैं. फिर से एक बार  जेब से तीली निकलकर फिर से मंत्रोच्चार करता हैं "इली मिली तीली बन जा छड़ी " फिर वह तीली छड़ी का रूप ले लेती हैं. यही प्रयोग कई बार करने के बाद उस  छड़ी  को चार्ज करने लगाता हैं. बेडरूम में फिरसे अँधेरा छा जाता हैं.मोहन बिस्तर पे लेटना ही चाहता था उतने में टेलिफ़ोन की घंटी बजती हैं. मोहन हडबडाकर कोने में रखा हुआ फोन उठाता हैं.

"हेलो कौन मैं मोहन."
"मोहन मैं पिछले आधे घंटे से तुम्हारा मोबाइल ट्राय कर रही हूँ क्या कर रहे हो?" दूसरी और से आवाज़ आती हैं 
"मैडम  जी बात यह हैं की फ़ोन की बैटरी खत्म हो गई हैं"
"मैंने  तुम्हे इस लिए फोन किया हैं की, आपने अपने भाषण में ऐसा क्यूँ कहा की हमारे पास कोई जादू की छड़ी नहीं हैं की जिससे  हम भ्रष्ठाचार कम कर सके."
"आपको कैसे  पता की मेरे पास जादू की छड़ी हैं ?"
"मैं तुम्हारे भाषण के बारे में बात कर रही हूँ जादू की छड़ी के बारेमें नहीं. "
"मैडम अब आपको चिंता करने की जरुरत  नहीं हैं. क्यूँ की अब मेरे पास जादू की  छड़ी आ  गयी हैं"
"क्या बक रहे हो ? नशे  में हो क्या ? अब मैं तुम्हे सुबह मिलूंगी अब मैं फोन रखती हूँ "

              दुसरे दिन सुबह मोहन जादू की छड़ी लेकर मैडम के पास  जाकर मैडम को पूरी हालात से अवगत करवाते हैं.इसके बाद मैडम अपनी पार्टी के सभी अहम नेताओं को बुलाकर उस जादू की छड़ी के बारें में बता देती हैं और सभी को निवेदन करती हैं की अपना अपना फैसला सुनाएँ.

कपिल बोलने लगते हैं - "सबसे पहले हमें इस छड़ी का उपयोग किसी एक भ्रष्ट पे अजमाने के बाद ही मैं इसके बारे में कुछ बोल पाउँगा."
"चलो फिर पहले तुम्हे ही मौका देते हैं"  मोहन ने कहा.
"मोहन! यह तो अपने पक्ष के हैं"मैडम ने कहा.
"फिर हम इस छड़ी का प्रयोग किसपे कर सकते हैं." मोहन ने मैडम से पूछा.
"किसी  ऐसे  व्यक्ति को ढुन्ड़ो की साप भी मरे लाठी भी ना टूटे" कपिल ने कहा. 
"सबसे पहले सुरेश पर अजमा कर देख लेते हैं" मोहन ने कहा .
"कौन सुरेश"कपिल ने पूछा .
"वही जो तिहार जेल में हैं" कपिल  ने कहा.
"लेकिन तिहार में जाएगा कौन? अगर विपक्ष को इसकी भनक लग गयी तो." मोहन ने कहा.
"मैं जाउंगा तिहार जेल." कपिल ने कहा.
"लेकिन इस जादू की छड़ी को चलाने वाला इमानदार व्यक्ति होना चाहियं." मोहन ने कहा.
"फिर तो आप ही जा सकते हैं." कपिल ने हसते हुए कहा.
"ठीक हैं मैं ही जाकर अजमाता हूँ और मैं कल ही यह काम करूंगा, क्यूँ की मैं इस जादू के छड़ी से कौनसा भी रूप धारण कर सकता हूँ." मोहन ने कहा.

                इसी तरह सबकुछ तय हो गया फिर दुसरे दिन सुबह ही मोहन ने जेलर के  वेश में तिहार पहुँच गया. मोहन ने सुरेश के वार्ड में जाकर अपने जेब में से एक तीली निकलकर हाथ में पकड ली सुरेश कुछ कहने से पहले ही वह तीली एक छड़ी बनकर मोहन के हाथ में आयी और देखते देखते ही मोहन ने वह छड़ी सुरेश पे घुमाई और छड़ी में से लाल रौशनी आयी फिर से मोहन मंत्रोचारसे उस छड़ी को जेब में रखकर वहांसे चल दिए. सुरेश को पता ही नहीं चला की जेलर ऐसी हरक़त क्यूँ कर रहा हैं. मोहन को एक बात समझ  नहीं आ रही थी की सुरेश के बाजु में राजा क्यूँ खड़ा था.शायद इस लिए छड़ी में दो बार लाल रौशनी आयी होगी. 

              अब मोहन के चेहरे पे एक अजीब से ख़ुशी झलक रही थी. मन ही मन में यह सोच रहा था की जिंदगी में कुछ तो अच्छा काम किया हैं.  सोचते सोचते मैडम का घर कब आया इसका पता भी नहीं चला.  वहा सभी वरिष्ठ साथी उनका इन्तजार कर रहे थे.

"क्या कैसा रहा प्रयोग?" कपिल ने पूछा.
"ठीक रहा" यह कहते कहते मोहन मैडम के सामने बैठ गए.

            उतने में कपिल के फोन की घंटी बजी .कपिल बात करते करते बाहर  चले गए फोन से बातचीत होने के बाद पसीने से लाल होकर आ गए.

"क्या कपिलजी क्या हुआ? इतना पसीना क्यूँ ? क्या अन्ना ने फिर से अनशन की धमकी दी हैं?" तिवारी ने मुस्कुराते हुए कहा.
"नहीं स्वीज़ बैंक से फोन था हमारे खाते में सी बहुतसी जमा पूंजी  गायब हुयी हैं." कपिल ने पसीना पूछते हुए कहा.
"लेकिन यह कैसे संभव हैं? मैंने तो छड़ी का उपयोग सिर्फ सुरेश पे किया था." मोहन ने कहा.
"जो जमा पूंजी हमारे खाते से गायब हुयी हैं वह हम सुरेश के जरियेही  कमायी थी." कपिल ने कहा.

          थोड़ी ही देर में सभी के फोन की घंटिया एक साथ बजने लगे सब लोग अपना अपना फोन लिए बाहर  जा कर बात करने लगे. पता चला की सभी खातोंमें से बहुत सारी रक्कम गायब थी. सभी सदस्य समझ  चुके थे की यह छड़ी तो जनलोकपाल से वस्ताद निकली. 

"अब से इस छड़ी उपयोग नहीं होगा."  कपिल ने कहा.
"लेकिन मैं भगवान् से क्या कहू?" मोहन ने पूछा.
"आप भगवान्  कह दो की यह छड़ी का उपयोग करने के लिए अभी तक अप्रोवल नहीं मिला क्यूँ की यह छड़ी  विचाराधीन हैं. ऐसा कहते कहते तिन महीने का वक्त काट लो फिर यह छड़ी गायब हो जाएगी" तिवारी ने कहा."

      कुछ दिन और बीत गए. एक दिन मोहनने फोन करके  मैडम को बता देता हैं की जादू की छड़ी गायब हो गयी. यह बात सुनकर सभी सद्स्योनें राहत की साँस  ली. 

   "हमारे पास कोई ऐसी  जादू की छड़ी नहीं हैं की इस देश को  भ्रष्टाचार से  मुक्त कर सके" यह बात वो बार बार दोहराते हैं, और आज भी उन्होंने यही कहा   कैमरामन  "हरी" के साथ "भगवान" "सत्य लाइव से ..... "




Sunday, July 31, 2011

जीतें हैं हम यहाँ......


जीतें हैं हम यहाँ जीने की एक  आस लिए !
जिंदगी  में अटकी अपनी एक सास लिए !!
 

आज नहीं तो कल की एक सोच लिए !
ढुन्डते सुकून को एक नया अहसास लिए!!
 

घर से जब बाहर  निकलते रोज़ी के लिए !
जीते हैं जैसें की चलती फिरती लाश लिए !!

इंसानी जान की कीमत की कीमत लिए !
खेल लेते हैं वो अपना दावं एक ताश लिए !! 

उन्हें कुछ गम नहीं जीते हैं वो अपने लिए !
जुबान चलातें हैं कुछ पाने की तलाश लिए !!

हादसे रोक नहीं सकते, जाँ  की कीमत लिए !
मरते हैं इस हमलें में, जान अपने पास लिए !!

बेपरवाह होकर जुबान चलाते कुछ पाने के लिए !
खूनका कीचड़ उछालते हाथ में एक पाश लिए !!

बेशर्म  मांगने आते हैं हात में  कलश लिए !
फिर से कुर्सी पर बैठने का एक रास लिए !!

Thursday, June 9, 2011

जंतर मंतर.... छू मंतर ...



हमें कभी राजघाट तो  कभी  जंतर मंतर  
तो कभी रामलीला भी  रात को  छू मंतर 
कभी अन्ना के साथ
कभी बाबा के साथ
कभी उसी नेता के साथ 
तो कभी अपने साथ 
दगा करते हैं 
बड़ी बड़ी बाते करते हैं 
यह सोचते सोचते 
मैंने सिग्नल तोड़ दिया 
और पुलिस से जोड़ लिया 
निकालो दो सौ 
मैंने बिल बनाया हैं 
यहाँ साइन करो 
और दो सौ भरो 
मैंने कहा थोडा कम करो 
यह बहुत ज्यादा हैं 
बिल को  ज़रा दूर करो 
पचास हात में धरो 
उसने कहा बिल फाड़ दिया हैं
देखो उसमे और दस जोड़ दिया हैं 
उसने सच में बिल को फाड़ दिया 
फिर मैंने कहा अरे यह क्या किया 
डरो मत यह बिल भी नकली हैं 
इसे साहब ने बनाया हैं 
इस लिय, 
मैंने साहब  को बनाया हैं 
साला धोका  देकर लुटा 
चलो अब पीछा तो छुटा
घर आकर सोच में पड़ गया
मन  की आवाज़ पे  अड़ गया 
मेरी वजह से एक और बढ़ गया
जब मैंने टीवी खोल दिया
भ्रष्टाचार पे  वो बोल दिया
अन्ना के बाते सताने लगी
एक नयी राह बताने लगी 
भ्रष्टाचार को मिटाना हैं 
नहीं तो खुद को मिटाना हैं 
ऐसा अन्ना बोलते रहे 
बात पे बात खोलते रहे 
हमें फिर से पकड़ना हैं जंतर मंतर 
इस भर्ष्टाचार को करना हैं छु मंतर 


Wednesday, April 27, 2011

तुम मुझे भुला देना....




तुम मुझे भुला देना सुबह के अखबार की तरह !
तुम मुझे भुला देना तेज समाचार की तरह !!

तुम मुझे वोट देकर, एक राजनेता की तरह !
तुम मुझे भुला देना एक मतदार की तरह !!

तुम मुझे देश भक्त कहकर,एक सरफ़रोश की तरह !
तुम मुझे भुला देना एक शहीद सरदार की तरह !!

तुम मुझे अभिनेता कहकर, एक नायक की तरह !
तुम मुझे भुला देना एक फिल्मी किरदार की तरह !!

तुम मुझे रास्ता दिखाकार, एक मार्गदर्शक की तरह !
तुम मुझे भुला देना एक सही सलाहगार की तरह !!


तुम मुझे मौसमी मिजाज देकर,एक हवा की तरह !
तुम मुझे भुला देना एक खुशबू सदाबहार की तरह !!

तुम मुझे सच्चाई दी, जिनेकी एक चाह की तरह !
तुम मुझे भुला देना एक पाक इज्जतदार कि तरह !!

तुम मुझे उपहार से सजाया, एक सुंदर वस्तू की तरह !
तुम मुझे भुला देना एक सुशोभित अलंकार की तरह !!

तुम मुझे सहारा दिया, एक अंगरक्षक की तरह !
तुम मुझे भुला देना एक नेक पहरेदार की तरह !!

तुम मुझे एक साहस दिया, एक कहानी की तरह !
तुम मुझे भुला देना एक कवी रचनाकार की तरह !!

तुम मुझे खूब नचाया, एक कटपुतली की तरह !
तुम मुझे भुला देना एक नौटंकी कलाकार की तरह !!

तुम मुझे अस्थीर किया, एक सही बरकरार कि तरह !
तुम मुझे भुला न देना एक मजबूर लाचार कि तरह !!


Wednesday, January 26, 2011

मेरा भारत महान..



सिर्फ कहने को हैं मेरा भारत महान 
देश तरफ कोई भी नहीं देता ध्यान
यहाँ नेतावों का बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार
देश को चख रहे जैसा "आम" का अचार 
अब  देश में यही बना हैं एक वरदान
सिर्फ कहने को हैं मेरा भारत महान 

हर रोज़ निकलता हैं एक नया घोटाला 
कैसे बंद होगा यह, कैसे लगेगा ताला 
महंगाई के तले डूबा हुआ हैं हर इंसान 
सिर्फ कहने को हैं मेरा भारत महान 

प्रजातंत्र  मनाते हैं उत्साह और शानसे 
तिरंगा फहराते  नेता अपने अपने मानसे
मिटेगा भ्रष्टाचार तो ही होगा सन्मान  
सिर्फ कहने को हैं मेरा भारत महान 

कितने ल़ोग येहाँ भूखेही सो जाते हैं
नेता माल खाकर प्रजातंत्र मनाते हैं 
जागो, हमें रखना होगा तिरंगे का मान
तब शान से कहेंगे मेरा भारत महान