Friday, July 30, 2010

अन्दर के तीन बन्दर....

नेता लोग ऐसा क्यूँ करते हैं ?
संसद भवन सर पे लेकर नाचते हैं
कभी कूदते हैं,
चिल्लाते हैं,
"बन्दर" की तरह उछलते हैं
कभी तोड़ फोड़ तो कभी माइक उठाकर
मारने दौड़ते,
कभी अपनेही साथियों को कुचलते हैं

कभी कभी तो लगता हैं
क्या  यही लोग देश को चलाते हैं ?
क्या होगा  इस पद के गरिमा का
सन्मान या,
अपमान,
क्यूँ इस  पद के गरिमा को रुलाते हैं ?
जब "गांधीजी" उप्पर से देखते होगे
और तरसकर यह कहते होगे
क्या इस लिए ही मैं इन्हें
आजाद किया था
यह वाकया देखकर, हैरान रहते होंगे
कभी कभी वो,  यह भी  सोचते होगे 
गलत हो गया,
इंसान की जगह "बन्दर" को चुनकर
बुरा मत सुनो,
बुरा मत देखो,
बुरा मत कहो,
अगर रखता एहां "इंसान" को चुनकर
शायद बन्दर सी हरकते रुक गई होती
उछलना,
कूदना,
फिर बन्दर सी चाल भी
इन्ही  के सामने झुक गई होती
यहाँ की  जनता सब कुछ देखती फीर भी
अपनी आँखे  ढक देती हैं
और नेता लोग, जनता की  यह
पीड़ा देखकर  आँखे ढक लेती  हैं
यहाँ तो जनता सब कुछ सुनकर भी
कुछ भी तो नहीं कह पाती
जनता ने  आवाज़ निकाली तो भी वह
नेता को सुनाई नहीं देती
यहाँ  जनता को जरुरी नहीं
बंद करना जुबान,
यहाँ तो सिर्फ नेता ही बोलते हैं
जनता कुछ भी तो नहीं  बोल पाती
फीरसे,
हर बार,
कुर्सी उन्ही के नाम हो जाती
अब हमें लगने लगा हैं की
वह  उपदेश,
सिर्फ जनता के लिए था
इस लिए नेता ल़ोग बेफिक्र थे
क्यूँ की
उपदेश ना की नेता के लिए था

Monday, July 5, 2010

भारत बंद!

बंद के नाम से देश के धन को क्यूँ जला रहे हैं यहाँ
जिम्मेदार ही  जिम्मेदारियों को क्यूँ भुला रहे हैं यहाँ

एक ही जात के राजनेता महंगाई रोको कहकर यहाँ
महंगाई के पिस्तोल से  गोलीयाँ क्यूँ चला रहे हैं यहाँ

अभी तक पता नहीं उनका, कई वादे कर गये यहाँ
आखिर उन्ही को हम सत्तासुख क्यूँ दिला रहें यहाँ

महंगाईके मारसे दबकर मरे हुए लगते हैं सब  यहाँ
उन्हीको मुर्दा समझकर अंतपे क्यूँ सुला रहे है यहाँ

महंगाई के पहाड़ सी सरकार हिलाना भी बेकार यहाँ
बंद के एक छोटे किलेसे पहाड़ क्यूँ हिला रहे हैं यहाँ  

दाल सब्जी  के दाम भी आसमान  को छू चुके  हैं यहाँ
पेट्रोल और डिजल के आंसुओंसे क्यूँ रुला रहे हैं यहाँ

इस दूषित हवा को भी बेचने के लिए ही बैठे हैं यहाँ
हर सांस के साथ कडवा जहर क्यूँ पिला रहे हैं यहाँ
 

भारत बंद! भारत बंद! यही नारा क्यूँ झुला रहे हैं यहाँ
जाम कहकर, चक्का वोटों की तरफ क्यूँ चला रहे हैं यहाँ