Thursday, May 27, 2010

बेटा या बेटी -३

(अब तक आपने पढ़ा की रोहन को दूसरी बेटी होती है. माँ को बेटी होना पसंद नहीं इस लिए फ़ोन काट देती हैं.दूसरी बेटी जन्म के तुरंत बाद ही वह प्लानिंग करता हैं यह बात किसी को बताता नहीं . राकेश की माँ यह सलाह देती हैं की मशीन  (सोनोग्राफी) द्वारा परिक्षण के बाद ही उसें पोता मिला था इस लिए रोहन भी वैसाही करें.  रोहन पत्नी और बच्चे के साथ आपनी बेटी का पहला जन्म दिन मानाने गाँव चले  जाते  हैं. वहां उसका बचपन का दोस्त रमेश मिलता हैं. रमेश पांच बेटियों के बाद बेटा पाने के लिए दूसरी शादी करना चाहता हैं.  रोहन के  बापू को मालूम पड़ता हैं की रोहन ने दो बेटियों के बाद  संतान रोकने का आपरेशन किया हैं इस लिए  उन्हने रोहन के सामने दूसरी शादी का विकल्प रखते हैं ताकि पोता पा सके . बेटी का पहला जन्म दिन मनाने का सपना अधूरा छोड़ कर रोहन बपुजिके फैसले का विरोध कर गाँव से निकल पड़ता हैं .... और आगे ...)
भाग -3


           रोहन को चार  दिन बाद  ऑफिस ज्वाइन करना था इस लिए बिस्तर पर लेटे लेटे ही अख़बार पड़ रहा था उतने में रेवती ने  आवाज़  दी.
"सुनो हम अर्चना का जन्म दिन गाँव में मना नहीं सके लेकिन हम एहां तो मना सकते हैं ना"
"हम कल उसका जन्म दिन यहीं पर   मनाएंगे"
"ठीक हैं सिर्फ राकेश  चम्पा और माँ जी  को ही बुला लो"
"और साथ में उनके बेटियों को भी बुला लेंगे".
 "ठीक हैं"
और समय के साथ साथ सब तय हो गया केक लाया गया और पड़ोस के कुछ बच्चों को भी बुलाया गया केक काटकर शहरी परम्परा से अर्चना का जन्म दिन का कार्यक्रम का समापन हो गया. माँ के आलावा राकेश के घर से सभी लोग उपस्थित थे लेकिन रोहन रहा नही पूछ ही लिया की माँ के अनुपस्थिति की वजह क्या हैं? राकेश ने कहा फिलहाल माँ घर में नहीं हैं ओ अपने एक रिश्तेदार के एहां चली गयी हैं. राकेश ने आगे कहा
"यार अर्चना का जन्म दिन तो १९ को था बी २१ को कैसे"
"उसके लिए एक लम्बी  कहानी है फिर कभी"
"अरुण का जन्म दिन कैसा हुआ"
"बहुत बढ़िया एक बड़े होटल में तक़रीबन ४०० लोगोंको आमंत्रित किया  था. मेरी पहली बेटी का जन्म दिन भी इतने धूम धाम से नहीं मनाया था.रोहन तुम होते  तो और भी मजा आता"
"बहुत बढ़िया"
"अच्छा रोहन मैं चलता हूँ"
राकेश के जाने के बाद  रोहन सोच में पड़ गया की समाज में ऐसे कई लोग हैं जो बचपन से ही बेटा और बेटीके  पालन पोषण में इतना बड़ा फासला बना देते हैं की यह सब देखकर भगवान को  भी कभी कभी बेटी बनाने के गलती का अहसास होता होगा. हम बचपनसे ही बेटी को पराया धन कहकर उसके मन में बिठा देते हैं की यह घर उसका नहीं हैं. इस घर पे केवल बेटे का ही अधिकार हैं.

          एक दिन रोहन ऑफिस से निकलने के लिये तैयार हो ही रहा था उसे खबर मिली की बहार रीशेपशन   में कोई इन्तजार  कर रहा हैं. जाकर देखता तो दो अधेड़ उम्र की महिलएं बैठी थी जैसाही रोहन  उनके पास गया उनमेसे के महिला बोल पड़ी.
"साहब मैं आशा और संजना  संजीवनी अनाथ आश्रम से आये हैं कुछ देणगी चाहते हैं"
"लेकिन मैं तो बस एक १०० या २०० रु दे सकता हूँ बस"
" साहब हमारे आश्रम में  २५ निराधार महिलएं रहती हैं"
"तो मैं क्या कर सकता हूँ"
"आप उन में से एक का साल भर का खाना दे सकते हैं, सुबह का नाश्ता ८०० रु हर साल दो वक्त का खाना २००० रु और दो वक्त का खाना और नास्ता २५०० रु साल भर के लिए"
"मुझे सोचने के लिए थोडा वक्त चाहियें  दो तिन दिन में मैं आपको बता दूंगा क्या करना हैं"
"साहब आपसे से  गुजारिश हैं आप सिर्फ एक बार हमारे  आश्रम को देख लीजिएगा और उसके बाद ही  फैसला लीजियेगा"
"ठीक हैं यह सब बादमें"
"नहीं साहब हमारा आश्रम  एहां से नजदीक ही हैं आज ही देखे तो ठीक रहेगा"
ओ दोनो  औरतें हाथ जोड़कर मिन्नते करने लगी रोहन को रहा नहीं गया और आज ही आश्रम देखने का फैसला कीया.

            थोडीही देर में तिनोही  आश्रम के नजदीक आ गए बड़े बड़े निलगिरी के पेड़ आश्रम की शोभा बड़ा रहे थे. कुछ महिलएं गाना गाते गाते ही पापड़ बेल  रहे थे वैसा तो  ही आश्रम ठीक ठाक लग रहा था. पूरा आश्रम देखकर रोहन ने दो तिन दिन का वक्त मांगकर वहां से निकलने लगा. उतने में पीछे से आवाज़ आयी :"बेटा"आवाज़ कुछ जानी  पहचानी लगती थी इस लिए रोहन पीछे मुड़कर देखा माँ जी यानी राकेश की मा.
"माँ आप एहां"
"हाँ बेटा"
"क्या राकेश को मालूम हैं की आप एहां हैं"
"बेटा राकेश खुद मुझे एहां छोड़ गया हैं"
"मैं घर में कुछ काम नहीं कर रही हूँ ऐसा बहु ने शिकयत की और इधर से मैनेजर  से बात कर मेरा एहां दाखिला करवाया.  मेरा एक ही बेटा था जो मुझे इस हालात में छोड़  गया हैं. बेटा उस दिन मैं तुम्हे अस्पताल में कही थी की बेटा होना चाहियें लेकिन अब मैं तुझे यह कहती हूँ की बेटा हो या बेटी कुछ फर्क नहीं पड़ता"
"माँ जी कुछ जरुरत रहे तो फ़ोन कीजयेगा मैं मेरा नंबर एहां आशा मैडम के पास छोड़ जाता हूँ" ऐसा कहकर रोहन ने जेब में से ५०० रु निकाले और उस वृद्ध महिला के हाथ में थमा दियें.
वृद्ध महिला के आंख भर आयें और जाते जाते उसने कहा.
"बेटा तू मुझे मिला था इस बात जिक्र राकेश के से मत  करना शायद मुझे बेटी होती तो कुछ सहारा मिल गया होता लेकिन भगवान की येही मर्जी हैं"

       रोहन वहां से निकल पड़ा और सोचने लगा जीवन भी एक अजीब खेल खेलता हैं. बचपन पूरा बड़ा होने में गुजर जाता हैं.  जवानी पूरी काम और  मस्ती में  गुजर जाती हैं.  बुढ़ापा सिर्फ जवानी के यादों को ताजा करके जीना चाहता हैं. लेकिन बचपन जवानी की ओर , और बुढापा जवानी के यादोमें गुजर जाता हैं और जवानी में हम बेटा या बेटी के चक्कर में न जाने कितने अपराध करते हैं. लेकिन अभी भी बहुतसे लोग आपनी मंजिल आपने बेटो में तलाशते हैं. उन्हें यह पता नहीं होता की अंधरे में सिर्फ नजदीक का रास्ता ही दिखता हैं दूर का नहीं. लेकिन याद रहे बेटा हो या बेटी ओ तुम्हारे साथ तब तक चलते हैं जब तक उनके पास खुद की  रौशनी नहीं होती. जब तुम्हारी रौशनी ख़त्म होती हैं तो सिर्फ अन्धेरा ही अन्धेरा होता हैं. मंजिल अभी भी बहुत दूर दिखाई पड़ती हैं  रास्ता लम्बा हैं और अन्धेरा घना हैं.  यह जीवन का   रास्ता हमें पार करना ही हैं चाहे कोई साथ हो या ना हो.
(समाप्त)

Wednesday, May 26, 2010

बेटा या बेटी- २

(अब तक आपने पढ़ा की रोहन को दूसरी बेटी होती है. माँ को बेटी होना पसंद नहीं इस लिए फ़ोन काट देती हैं . दूसरी बेटी जन्म के तुरंत बाद ही वह प्लानिंग करता हैं यह बात किसी को बताता नहीं . राकेश  की माँ यह सलाह देती हैं की मशीन (सोनोग्राफी) द्वारा परिक्षण के बाद ही उसें पोता मिला था इस लिए रोहन भी वैसाही करें .. और आगे ...) 
भाग २
            तक़रीबन पांच साल बाद रोहन अपने वतन यानि गाँव लौटा था. गाँव में तो उतना कुछ परिवर्तन नहीं हुआ था लेकीन गली गली में सीमेंट की सड़कें जरुर बनी थी. गाँव के पास एक बड़ा इमली का पेड़ था उसे गाँव के लोगोने तोड़ दिया था. क्यूंकि  पेड़ की जड़े मंदिर के दिवार में घुस रहीथी ऐसा गाँव के लोगों का कहना था. गाँव के मंदिर और उंचा हो गया था. तक़रीबन दो फर्लांग  का रास्ता चलते चलते रोहन आपने घर के द्वार पर दाखिल हुआ. दाखिल होते ही भाभीने स्वागत किया अर्चना को उठाकर गोद में लिए और उसके अंदर ले जाते ही माँ और बापू अन्दर से बहार आयें. रोहन और रेवती ने माँ बापू के चरण स्पर्श कियें. जीते रहो कहकर बेटे और बहु को आशीर्वाद दिया. माँ ने हालचाल पूछते हुए कहा.

"बेटा आने से पहले फ़ोन तो करना था और अचानक आ गया"
"नहीं माँ अर्चना का पहला  जन्म दिन गाँव में मनाना था"
"लेकिन बेटा हमारी बहुत ही तमन्ना थी दुसरा बेटा होगा"
"माँ बेटा हो या बेटी आजकल उतना फर्क नहीं हैं. चार दिन बाद १९ तारीख को अर्चना का पहाला जन्म दिन हैं सोचा इस ख़ुशी के मौके को साथ में बाटा जाएँ"
"चलो ठिक हुआ"
माने अंकिता को अन्दर ले गयी उतने में भाभी ने चाय ले आयीं कई सालों बाद रोहन को गाँव की चाय नसीब हुयी थी और ओ चुस्की लेकर चाय पी रहा था. चाय पिने के बाद रोहन ने रेवती को बहार बुलाकर कहा.

"अभी घर में किसीसे कुछ भी नहीं कहना की हमने प्लानिंग की हैं अर्चना का जन्मदिन के बाद यह बात मैं माजी को मैं  खुद कह दूंगा"
"ठीक हैं"
"मैं थोड़ा बहार जाकर अपने पुराने दोस्तों को मिल आता हूँ"

रोहन ने पिताजी को कहकर  अपना पुराना दोस्त रमेश के घर की तरफ निकल पड़ा. जैसे ही रमेश के घर गया रमेश ने उसका स्वागत किया. रमेश ने आपने पाच बेटियों का परिचय करवा दिया.यह सब देख कर रोहन को रहा नहीं और कहा.
"यार पांच बेटियां कुछ प्लानिंग किया होता"
"नहीं मुझे बेटा चाहियें था"
"अगली बार बेटा नहीं हुआ तो"
"अगली बार बेटा जरूर होगा"

उतने में जयंती यानि रमेश की पत्नी बहार आयीं चेहरे का तेज उतर गया था कुछ परेशां नज़र आ  रही थी.  उतने में रमेश को किसी का बुलावा आया और ओ जल्दी ही अता हूँ कहकर बहार गया. रोहन ने जयंती से कहा.

"क्या हाल बना रखा हैं" यह सुनतेही जयंती रो पड़ी और कहने लगी.
"भय्या ज़रा अपने दोस्त को कह दीजियेगा
"क्या कहना हैं"
"यह की दूसरी शादी ना करें"
"क्या रमेश दूसरी शादी करना चाहता हैं"
"हाँ उनको बेटा चाहियें, क्यूँ की मैं उन्हें बेटा नहीं दे सकती".
"चिंता मत करो मैं उसे समझा दूंगा"
"सूना हैं आपको दूसरी भी बेटी हुई हैं"
"हाँ! और हमें अब दो बेटियां ही हैं यानि अब बेटा नहीं होगा"
"क्यूँ और एक बार देख सकते"
"नहीं मैंने मेरे बीवी का आपरेशन करवाया हैं"
"इसका मतलब अभी बच्चा नहीं होगा"
"नहीं! लेकिन यह बात किसीसे कहना मत"
"ज़रा आप इनको बताईयेगा की दूसरी शादी ना करे"यह कहकर जयंती फिर रोने लगी
उतने में रमेश बहार से आते ही जयंती पर चिल्लाते हुए कहा तुने रोहन को क्या बतया और जयंती को घिसिटते हुए अन्दर ले गया. रोहन कुछ ना कर सका वहांसे निकलकर घर आ पहुंचा.
आखरी बार जब रोहन रमेश से मीला था उसकी दो बेटियां थी जो उसकी दूसरी बेटी लगभग अंकिता के उम्र की थी उसके बाद उसे तिन और बेटियां पैदा हुई थी.

                   आज अर्चना का पहला जन्म दिन था. घर के सभी ल़ोग सुबह से ही काम में लगे थे घर एक के माहोल में एक अजीबसी प्यार की खुशबू थी. सब ल़ोग आपने आपने काम में लगे थे शायद बापूजीके चेहरे परभी ख़ुशी झूम रही थी.  रोहन अर्चना का जन्मदिन घर में ही मनाना चाहताथा इस लिए बहार के किसी को आमंत्रित नहीं किया था.
 भाभी ने माँ जी   को अन्दर बुला लिया और कहा
"सासु माँ क्या आपको पता हैं"
"क्या हैं  बहु साफ साफ बतादे"
"छोटी बहुने आपरेशन करवाया हैं"
"यानि अब इस दो बेटियोंके बाद रोहन को बेटा नहीं होगा"
"इतना बड़ा धोका! बहु तुम्हे किसने बताया"
"सासु माँ पुरे गाँव में खबर फ़ैल गयी हैं"
"क्या यह सच  हैं"
"हाँ सासुमाँ आपके रोहने ने  खुद जयन्तीको  कहा था "
"बहु ज़रा रोहन के बापू को बुला लेना"

 इतने में बहु ने जाकर रोहन के बापू को बुलाकर लाती हैं और बापूजी को सारा मामला मालूम पड़ता हैं. फिर बापूने रोहन को आपने कमरेमें बुलाकर पूछते हैं.
"रोहन मैं ये क्या सुन रहा हूँ"
"क्या हैं बापूजी"
"क्या तुमने बहु का आपरेशन करवया हैं ओ भी दो लड्कियोंपर"
"हाँ बापूजी"
"क्या तुम्हे लड़का नहीं चाहियें"
"आजकल लड़का या लड़की में कोई अंतर नहीं होता"
"मुझे मत सिखा"
अब बापूजी की  आंखे लाल हुयी थी वह कुछ सुननेके लायक   नहीं थे गुस्से में कुछ भी कदम उठा सकते थे उनके मुह से बहार आने वाले शब्द भी रुक  गए थे बापूजी ने गहरी सास ली और कहा.
":बेटा तुमने ऐसा क्यूँ किया"
"बापूजी यह मेरा ही फैसला था"
"तुम दूसरी शादी कर लो"
"नहीं मैं रेवती को धोका नहीं दे सकता"
"ठीक हैं तुम्हारा येही फैसला हैं तो मेरा फैसला भी सुनो  तुम्हे अगर मेरे जायदाद में का हिस्सा चाहिए तो मेरी बात तुम्हे माननी पड़ेगी"
"नहीं पिताजी मैं ऐसा नहीं कर सकता"
"ठीक हैं इसी समय सामान बंधो और निकलो, अब इस घर में तुम्हे कोई जगह नहीं"

 रोहन गुस्से से बहार आया सामान पैक करके रेवती और दो बेटियों के साथ घर से निकल पडा. रोहन मन ही मन सोचने लगा की उसका इस दुनिया में कोई भी नहीं और जिस गाँव में वह अपना बचपन गुजरा वही गाँव अब उसे पराया हो गया था.
(क्रमश:)

Tuesday, May 25, 2010

बेटा या बेटी १


भाग १
(इस  कहानी  में दिए गए नाम और पात्र काल्पनिक  हैं)

रोहन ने  माँ को फ़ोन लगाया और कहने लगा.

"माँ मैं रोहन   बोल रहा हूँ  शहर से"
"बोलो बेटा सब ठीक तो हैं ना , और बहु कैसी हैं"
"वही माँ घर में लक्ष्मी आयीं हैं आप दादी बन गई हैं"
"क्या पोता हुआ हैं"
"नहीं माँ पोति हुई हैं".
"दूसरी भी"
"हाँ"

फिर फ़ोन कटने की आवाज़  रोहन  सोच लिया की माँ ने फ़ोन काट  दिया  होगा और मन ही मन सोचने लगा की शायद रेवती की तबियत के  बारेमें पूछा होता.  फिर से वह लौटकर रेवती  के पास आया खाट के पास  रखे हुए स्टूल पे  बैठ गया. एक बूढी औरत रोहन  के पास आयीं और मिठाई का डिब्बा आगे करते हुए कही.

"बेटा मुह मीठा कर ले पोता हुआ हैं"
"बधाई माजी"
"क्या तुम  अकेले ही  इस अस्पताल में! प्रसवन समय अस्पताल में  औरत  का होना बहुत जरुरी हैं "
"नहीं माँ जी मदद के लिए पड़ोस की आंटी  आती  हैं सुबह और शाम" 
"बेटा निराश मत हो अगले बार लड़का जरुर होगा मेरे बहु को भी पहले दो लडकिया हुयी और अब यह लड़का लेकिन एक बात का ख़याल रहे की पहलेही इलाज कर रखना"
"इलाज़ मैं समझा नहीं"
"इलाज़ यानि ओ मशीन से पता कर लेते हैं ना की  लड़का होगा या  लड़की"
"लेकिन यह  तो कानूनन अपराध हैं और डॉक्टर ऐसा करेंगे क्या"
"अरे बेटा काहेका अपराध थोड़ा ज्यादा  पैसा देकर करवा लेना और डोक्टर भी अन्दर के अन्दर सब कर देगा
देखो अभी मेरी बहु चम्पा हैं ना ये उसका दुसरा मौक़ा हैं क्यूँ की दो लड़कियों के बाद जब ओ उम्मीदसे थी तभी मशीन टेस्ट में लड़की निकली"
"फिर"
"फिर क्या बेटे! गिरा दिया और अब यह पोता"
ऐसा कहते कहते  वृद्ध महिला   बहु के पास चली गयी क्यूँ के कुछ और ल़ोग जमा हुए थे जो सभी ल़ोग बहु को बधाई  देने आये थे.

रोहन  अब बिलकुल अकेला  हो गया था सोचा माँ का फ़ोन आयेगा लेकिन किसका भी अभी तक फ़ोन नहीं आया था वह मन ही मन सोचने लगा था क्या लड़की होना कोई गुनाह हैं ? उतने में रेवती  ने आवाज़ दी.

"सुनो घर में किसीको बताया तो नहीं ना की दो लड़कियों पर प्लानिंग की हैं"
 "नहीं! माको सिर्फ  लड़की हुई हैं इतनाही बताया हैं"
"ठीक हैं! जब हम  गाँव जायेंगे तभी बता देंगे"
"ठीक  हैं"

कुछ दिन और बीत गएँ एक दिन मार्केट वह बुढ़िया मिली और पूछ ताछ शुरू की.

'बेटा तुम एहां कैसे"
"पहले यह बताओ की आप येहाँ "
"हां मेरा बेटा अभी येही पर घर लिया हैं आनंद नगरमें "
"आनंद नगर में तो मै भी रहता हूँ"
"चलो पास में ही हैं मैं तुमे हमारे घर  ले जाती हूँ लो आ गया येही घर"

घर के अन्दर जाते ही बुढीया ने राकेश को बुलाकर परिचय करवा दिया और चम्पा बिस्तर  पर ही थी इस लिए  माँने ही चाय बना लायी और चाय पीते पीते ही रोहन ने  कहा.

"मेरा घर भी इधर पास में ही हैं कभी कभी आते जाते रहना"
"जरुर अब तो हमारा परिचय भी हो गया आत जाते रहेंगी" राकेश ने कहा.
"बेटे का नाम क्या रखा हैं"
"अरुण नाम रखा हैं जो इसके दादाजी की अंतिम इच्छा थी"

राकेश ने साथ में उसकी बड़ी  और छोटी बेटीयोंको को बुलाया और कहा.

"यह मेरी पहली बेटी रुचिका और दूसरी रक्षिता आपको कितने बच्चे हैं"
"जी मेरी दो बेटियां  हैं  अंकिता और अर्चना"

थोड़ी देर रूककर रोहन घर की ओर निकल पड़ा अब राकेश  और रोहन अच्छे दोस्त बन गए थे अब  लगतार आना जाना रहता था. ठीक  उसी तरह चम्पा और रेवती भी एक दुसरे में घुल मिल गए थे और साथ  में दोनों परिवार के बच्चे भी.
(क्रमश:)