एक दिन गाँव के सभी कुत्तोने मिलकर एक आसोसियशन का निर्माण किया उस असोसीयसन का नेत्रत्व 'टॉमी' नाम के कुत्ते ने किया. टॉमी ने चौपाल के सभी कुतों को इक्कठा किया और टॉमीने आपना भाषण भौंकने लगा.
" एहां उपस्थित साथियों को प्रणाम अब मैं कुछ अहम मुद्दों पर चर्चा करेंगे. मेरा सबसे पहले आप लोगों को एक बात
पूछना चाहता हूँ की यह आदमी ल़ोग जब भी किसी बुरे आदमी को गाली देने का हैं तो हमारे नाम से ही गाली क्यूँ देते हैं? उदहारण के लिए 'कुत्ते कमीने ' इस शब्द का प्रयोग किया करते हैं और यह हमारे लियें शर्म की बात हैं. अब हमने भी यह सोच रखा हैं की किसी भी कुतों को गाली देना हैं तो आजसे हम भी आदमी के नाम से गाली दिया करेंगे जैसा की 'आदमी कमीने'. मेरे कुतों, हमारा सबसे पहले यह हक बनता हैं की जो फिल्मोमे काम करे वाले ल़ोग हमेशाही इस भाषा का प्रयोग किया करते हैं. लेकिन क्यूँ क्या हम वफादार होते हैं इस लियें? आदमी लोगों का एक बहुत ही बड़ा सिनेमा हैं जिसका नाम हैं शोले वहां तो हीरो अपने हेरोइन को कहता हैं 'बसंती इन कुत्तों के सामने मत नाच' मुझे तो उस फिल्म में दूर दूर कोई कुत्ता नज़र नहीं आता फिर भी इस भाषा का प्रयोग ओ भी गुंडों के लिए यह कतई शोभा नहीं देता और हमारा पहला उद्देश यह हैं की हम उस शोले पिक्चर का बहिष्कार करंगे".
एक कुत्ता उठकर भौंका..
"लेकिन हम बहिष्कार करे तो कैंसे? क्यूँ की आदमी बहुत ही चालाक और बेईमान होता हैं और हम जैसे वफादार कुत्तों को भी कमीने शब्द का प्रयोग किया करता हैं. असल बात यह हैं के ओ खुद कमीना होता हैं"
टॉमी आगे बोला..
"आज से हम एक प्लान के मुताबिक काम करंगे अगर कहाँ भी शोले का पोस्टर दिखाई दिए तो पहले उसे फाड़ देंगे. शोले का नहीं बल्कि उस हीरो का हर एक पोस्टर्स फाड़ देंगे जिसनेभी इस शब्द का प्रयोग किया हो"
और एक कुत्ता उठकर भौंका
"अगर हमने ऐसा किया तो कमीने आदमी लोग हमें छोड़ देंगे क्या"
टॉमी भौंका..
"ओ कमीने आदमी ल़ोग हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सकते क्यूँ की हम यह काम रातमें किया करंगे. और रात में अगर कोई चोर आदमी किसी के घर में घुसा तो भौंकना नहीं. और जब सब ल़ोग आराम से सोये होते हैं तो तभी हम जोर जोर से भौंकना चालू रखेंगे और कमीने आदमीयों नींद हराम कर देंगे".
एक और कुत्ता उठाकर भौंकने लगा
"सुना हैं उस कमीने आदमियोने फैसला किया हैं की बिजली के खम्बे उखाड़ देने वाले हैं इस हालात में हम क्या करेंगे?
टॉमी भौंका..
"कोई बात नहीं कुछ ल़ोग कार तो घर के बहार ही पार्क करंगे ना"
"लगता हैं उसके लिए भी एक नया नियम आने वाला हैं जैसा की जिसके एहां पार्किंग की सुविधा हैं सिर्फ वही ल़ोग कार लिया करंगे"
"डरने की कोई बात नहीं हम गेट कूदकर अन्दर जायेंगे और हमारा काम करेंगे अगर गेट कूद ना सके तो कम्पौंड की दिवार का इस्तमाल किया करंगे. मेरे प्यारे कुत्तों कुछ और समस्या रहे तो अभी बोल दो"
सभी कुत्तोने हाँ भर दी और जोश जल्लोष के साथ नाचभौंकना चालू किया .....
रोहन यह देख रहा था और ओ भी खुशीसे उन कुत्तों के साथ नाच रहा था..रोहन उठो... रोहन..माँ की आवाज़ ने रोहन को जगा दिया. रोहन मन ही मन में सोचने लगा की कितना अच्छा सपना था "कुत्ते कमीने"
Friday, April 30, 2010
Friday, April 16, 2010
मुंबई का ऑक्सिजन
जिसे सोना था ओ बैठे हुए हैं, जिसे बैठना था ओ खड़े हैं, जिसे खड़े रहना था ओ चल रहे हैं, जिसे चलना था ओ दौड़ रहे हैं और जिसे दौड़ना था उससे भी तेज सवारी पकड़ते हैं। यही हैं मुंबई इसे हम मायानगरी भी कहते हैं। अगर हम पुरे हिन्दुस्तान का मुआयना किया तो यह बात सामने आती हैं की हिंदुस्तान सिर्फ दो तरह के ल़ोग रहते हैं एक मुंबई में रहने वाले और दुसरे किसी और शहरमे। कहते हैं एहां ल़ोग मशीन की तरह काम करते हैं। कुछ लोगोने ने तो इसे यांत्रिक जीवन बताया हैं।
इस यांत्रिक जीवन को सरल बनाने के लिए वहां लोकल गाड़ियाँ हैं उसे हम मुंबई की रक्तवाहिकाएँ कहते हैं। मुंबई का जलवा देखकर यह मालूम पड़ता हैं की उसमे यात्रा करने वाले लोग यानी रक्त कोशिकाएं जो इस पुरे शहर को ऑक्सिजन सप्लाय करती हैं। सोचने वाली बात यह हैं की आखिर मुंबई का ऑक्सीजन हैं क्या? मुंबई का ऑक्सिजन यानि पैसा, यह पैसा ही मुंबई को आबाद किया हैं और यह पैसा आता हैं हर एक इंसान के खून पसिनेकी कमाई से। एहां काम करने वाला हर इंसान मशीन की तरह काम करता हैं। अपने जीवन शैली साथ साथ उस शहर की तरक्की का हिस्स्सा बन जाता हैं ।
एहां लोगों का एकही मकसद होता हैं काम और उसी काम के लिए सुबह की लोकल पकड़ना बहुत ही जरुरी बन जाता हैं। लोकल छुट गई तो बस, इस लिए यहाँ ९० प्रतिशत ल़ोग अपने लोकल का समय निश्चित करके ही चलते हैं। जीवन का समय निश्चित हो ना हो लेकिन लोकल का समय निश्चित होनाही हैं। एहां बहुतसे ल़ोग ऐसे हैं की अपनी लोकल समय पे पकड़ने के लिए रेल लाइन क्रास करते हैं और इसमें बहुतसे ल़ोग आपनी रक्त वाहिनियाँ को रेल के हवाले छोड़ देकर जान गवां बैठते हैं। जब ओ रेल के निचे कटते हैं तो खून उसी तरह बहता हैं जैसा की स्टेशन में रुकी हुई ट्रेन में से लोग बहार आते हैं। मुंबई में लोगों का जीने का और काम करने का तरिका बिलकुल ही अलग हैं। कहते हैं जो आदमी मुंबई में टिका तो ओ दुनिया को बिका। ल़ोग सभी शहरोंमें रहते हैं लेकिन हर शहर का एक स्टाइल हैं, दुसरे बड़े शहरों में काम तो होता हैं लेकीन मुंबई के हिसाब से कम ही होता हैं।
कई लोगोने सवाल उठाए हैं की मुंबई किसकी ? उनके लिए मेरा उत्तर एक ही हैं। मुंबई उन लोगोंकी है जो उस लोकल की भीड़से गुजरकर रोजीरोटी कमाते हैं। मुंबई तो उन लोगोंकी हैं जो लोग कामपर नहीं बल्कि युद्ध पर जा रहे हैं। मुंबई तो आम लोगोंकी हैं जो लोग रक्त कोशिकाएं बनकर पुरे मुंबई को ऑक्सिजन सप्लाय करते हैं। और एही हैं मुंबई का ऑक्सिजन जो मुंबई को ज़िंदा रखा हैं।
एहां लोगों का एकही मकसद होता हैं काम और उसी काम के लिए सुबह की लोकल पकड़ना बहुत ही जरुरी बन जाता हैं। लोकल छुट गई तो बस, इस लिए यहाँ ९० प्रतिशत ल़ोग अपने लोकल का समय निश्चित करके ही चलते हैं। जीवन का समय निश्चित हो ना हो लेकिन लोकल का समय निश्चित होनाही हैं। एहां बहुतसे ल़ोग ऐसे हैं की अपनी लोकल समय पे पकड़ने के लिए रेल लाइन क्रास करते हैं और इसमें बहुतसे ल़ोग आपनी रक्त वाहिनियाँ को रेल के हवाले छोड़ देकर जान गवां बैठते हैं। जब ओ रेल के निचे कटते हैं तो खून उसी तरह बहता हैं जैसा की स्टेशन में रुकी हुई ट्रेन में से लोग बहार आते हैं। मुंबई में लोगों का जीने का और काम करने का तरिका बिलकुल ही अलग हैं। कहते हैं जो आदमी मुंबई में टिका तो ओ दुनिया को बिका। ल़ोग सभी शहरोंमें रहते हैं लेकिन हर शहर का एक स्टाइल हैं, दुसरे बड़े शहरों में काम तो होता हैं लेकीन मुंबई के हिसाब से कम ही होता हैं।
कई लोगोने सवाल उठाए हैं की मुंबई किसकी ? उनके लिए मेरा उत्तर एक ही हैं। मुंबई उन लोगोंकी है जो उस लोकल की भीड़से गुजरकर रोजीरोटी कमाते हैं। मुंबई तो उन लोगोंकी हैं जो लोग कामपर नहीं बल्कि युद्ध पर जा रहे हैं। मुंबई तो आम लोगोंकी हैं जो लोग रक्त कोशिकाएं बनकर पुरे मुंबई को ऑक्सिजन सप्लाय करते हैं। और एही हैं मुंबई का ऑक्सिजन जो मुंबई को ज़िंदा रखा हैं।
Subscribe to:
Posts (Atom)